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Скачать или смотреть !! वरूथिनी एकादशी व्रत पूजा विधि तथा वरुथिनी एकादशी व्रत कथा 26 April 2022 !! Acharya Shri B.k.jha

  • Sarv Dev Anushthanam
  • 2022-04-24
  • 336
!! वरूथिनी एकादशी व्रत पूजा विधि तथा वरुथिनी एकादशी व्रत कथा 26 April 2022 !!  Acharya Shri B.k.jha
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Описание к видео !! वरूथिनी एकादशी व्रत पूजा विधि तथा वरुथिनी एकादशी व्रत कथा 26 April 2022 !! Acharya Shri B.k.jha

!! वरुथिनी एकादशी व्रत कथा !!


धर्मरा‍ज युधिष्ठिर बोले कि हे भगवन्! वैशाख मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या नाम है, उसकी विधि क्या है तथा उसके करने से क्या फल प्राप्त होता है? आप विस्तारपूर्वक मुझसे कहिए, मैं आपको नमस्कार करता हूँ। श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे राजेश्वर! इस एकादशी का नाम वरुथिनीहै। यह सौभाग्य देने वाली, सब पापों को नष्ट करने वाली तथा अंत में मोक्ष देने वाली है।

 

इस व्रत को यदि कोई अभागिनी स्त्री करे तो उसको सौभाग्य मिलता है। इसी वरुथिनी एकादशी के प्रभाव से राजा मान्धाता स्वर्ग को गया था। वरुथिनी एकादशी का फल दस हजार वर्ष तक तप करने के बराबर होता है। कुरुक्षेत्र में सूर्यग्रहण के समय एक मन स्वर्णदान करने से जो फल प्राप्त होता है वही फल वरुथिनी एकादशी के व्रत करने से मिलता है। वरूथिनी‍ एकादशी के व्रत को करने से मनुष्य इस लोक में सुख भोगकर परलोक में स्वर्ग को प्राप्त होता है।

 

शास्त्रों में कहा गया है कि हाथी का दान घोड़े के दान से श्रेष्ठ है। हाथी के दान से भूमि दान, भूमि के दान से तिलों का दान, तिलों के दान से स्वर्ण का दान तथा स्वर्ण के दान से अन्न का दान श्रेष्ठ है। अन्न दान के बराबर कोई दान नहीं है। अन्नदान से देवता, पितर और मनुष्य तीनों तृप्त हो जाते हैं। शास्त्रों में इसको कन्यादान के बराबर माना है।

वरुथिनी एकादशी के व्रत से अन्नदान तथा कन्यादान दोनों के बराबर फल मिलता है। जो मनुष्य लोभ के वश होकर कन्या का धन लेते हैं वे प्रलयकाल तक नरक में वास करते हैं या उनको अगले जन्म में बिलाव का जन्म लेना पड़ता है। जो मनुष्य प्रेम एवं धन सहित कन्या का दान करते हैं, उनके पुण्य को चित्रगुप्त भी लिखने में असमर्थ हैं, उनको कन्यादान का फल मिलता है।


हे राजन्! जो मनुष्य विधिवत इस एकादशी को करते हैं उनको स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है। अत: मनुष्यों को पापों से डरना चाहिए। इस व्रत के महात्म्य को पढ़ने से एक हजार गोदान का फल मिलता है। इसका फल गंगा स्नान के फल से भी अधिक है। 

वरुथिनी एकादशी वैशाख मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को मनाई जाती है। इस व्रत को करने से मनुष्य को सभी पापों से मुक्ति मिलती है। इस दिन व्रत करके जुआ खेलना, नींद, पान, दातुन, परनिन्दा, क्षुद्रता, चोरी, हिंसा, रति, क्रोध तथा झूठ को त्यागने का माहात्म्य है। ऐसा करने से मानसिक शांति मिलती है। इस व्रत को करने वाले को हविष्यान खाना चाहिए तथा व्रती के परिवार के सदस्यों को रात्रि को भगवद् भजन करके जागरण करना चाहिए।

 

भविष्योत्तर पुराण में कहा गया है-

कांस्यं मांसं मसूरान्नं चणकं कोद्रवांस्तथा।

शाकं मधु परान्नं च पुनर्भोजनमैथुने।।

 

इससे तात्पर्य यह है कि कांस्य पात्र, मांस तथा मसूर आदि का ग्रहण नहीं करें। एकादशी को उपवास करें और इस दिन जुआ और निद्रा का त्याग करें। रात को भगवान का नाम स्मरण करते हुए जागरण करें और द्वादशी को मांस, कांस्य आदि का परित्याग करके विधि विधान से पारण करें।

 

शुभ फलों की प्राप्ति होती है

 

शास्त्रों में कहा गया है कि इस व्रत को करने से दुखी को सुख मिलता है तथा राजा के लिए स्वर्ग का मार्ग खुलता है। सूर्य ग्रहण के समय दान करने से जो फल प्राप्त होता है, वही फल इस व्रत को करने से प्राप्त होता है। इस व्रत को करने से मनुष्य लोक और परलोक दोनों में सुख पाता है और अंत समय में स्वर्ग जाता है। इस व्रत को करने से व्यक्ति को हाथी के दान और भूमि के दान करने से अधिक शुभ फलों की प्राप्ति होती है।

 

इस व्रत की महिमा

 

इस व्रत की महिमा का पता इसी बात से चलता है कि सभी दानों में सबसे उत्तम तिलों का दान कहा गया है और तिल दान से श्रेष्ठ स्वर्ण दान कहा गया है और स्वर्ण दान से भी अधिक शुभ इस एकादशी का व्रत करने का उपरान्त जो फल प्राप्त होता है, वह कहा गया है। भगवान विष्णु का प्यार और स्नेह के इच्छुक परम भक्तों को दोनों दिन एकादशी व्रत करने की सलाह दी जाती है।

 
वरूथिनी एकादशी व्रत पूजा विधि (Varuthini Ekadashi Vrat Puja Vidhi) 

1. एकादशी के दिन व्रत करने वाले व्यक्ति को सुबह सूर्योदय से पूर्व उठना चाहिए। किसी पवित्र सरोवर , नदी या तालाब में स्नान करना चाहिए।

2. एकादशी के दिन कलश की स्थापना करके श्रीफल अर्थात् नारियल, आम के पत्ते, लाल रंग की चुनरी या कलाई नारा बांधें।

3.इसके बाद कलश देवता एवं भगवान मधुसूदन की धूप-दीप जला कर पूजा करें।

4.भगवान विष्णु को मिष्ठान, ऋतुफल यानी खरबूजा, आम आदि चढ़ाकर भजन कीर्तन एवं मंत्र जाप करना चाहिए।

5.इसके बाद ब्राह्मणों को भोजन कराएं और अपने साम्थर्य के अनुसार उन्हे भेट और दक्षिणा दे और उनका आर्शीवाद लें



एकादशी तिथि की शुरुआत  26 अप्रैल दिन मंगलवार सुबह 01 बजकर 36 मिनट पर आरंभ हो रही है. 


एकादशी तिथि का समापन 27 अप्रैल दिन बुधवार रात्रि 12 बजकर 46 मिनट पर होगा. 


उदयातिथि के अनुसार एकादशी तिथि का व्रत  26 अप्रैल, मंगलवार के दिन रखा जाएगा. 


पारण का समय- 27 अप्रैल को सुबह 6 बजकर 41 मिनट से लेकर सुबह 08 बजकर 22 मिनट के बीच होगा.  


इस दिन का शुभ समय दोपहर 11 बजकर 52 मिनट से शुरु होकर दोपहर 12 बजकर 44 मिनट तक रहेगा. 


वरुथिनी एकादशी त्रिपुष्कर योग:


पंचाग के अनुसार वरुथिनी एकादशी के दिन त्रिपुष्कर योग का निर्माण हो रहा है. इस योग में किए गए दान और पुण्य का विशेष महत्व है. कहते हैं इस योग में दान आदि करने से  कई गुना ज्यादा फल की प्राप्ति होती है. बता दें कि इस दिन त्रिपुष्कर योग देर रात 12 बजकर 46 मिनट से शुरु हो रहा है, जो अलगे दिन 27 अप्रैल को सुबह 05 बजकर 43 मिनट तक रहेगा. 

Om namo narayana 🙏🌹🙏
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