*चोल प्रशासन*
चोल साम्राज्य (9वीं से 13वीं शताब्दी) का प्रशासन एक संगठित और विकेंद्रीकृत प्रणाली थी, जो कुशलता और सुव्यवस्था के लिए प्रसिद्ध थी। इस प्रशासनिक प्रणाली में राजा सर्वोच्च शासक था, लेकिन उसने प्रशासन चलाने के लिए मंत्रियों, अधिकारियों और स्थानीय निकायों की सहायता ली।
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*1. राजा एवं केंद्रीय प्रशासन*
*राजा (Samrat/Ko/Perumal):*
चोल राजा राज्य का सर्वोच्च शासक था और उसे दैवीय अधिकार प्राप्त थे।
वह न्यायिक, सैन्य, धार्मिक और प्रशासनिक कार्यों का प्रमुख था।
राजा को "इराजकेसरी," "परकेसरी," और "कोप्पेरुंजिंगन" जैसे उपाधियाँ दी जाती थीं।
*मंत्रिपरिषद:*
राजा को एक मंत्रिपरिषद की सहायता प्राप्त थी, जिसमें मुख्यतः प्रधान मंत्री, सेनाध्यक्ष, न्यायधीश और राजस्व अधिकारी शामिल थे।
*अधिकारियों की श्रेणियाँ:*
1. *पेरुंधर (Perundaram)* – उच्च पदस्थ अधिकारी
2. *सिरुंधर (Sirundaram)* – निम्न स्तर के अधिकारी
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*2. प्रांतीय प्रशासन*
चोल साम्राज्य को प्रशासनिक रूप से चार स्तरों में विभाजित किया गया था:
1. *मंडलम (Mandalam)* – सबसे बड़ी प्रशासनिक इकाई, जो एक प्रांत के बराबर थी। इसे एक राजकुमार या उच्च अधिकारी संचालित करता था।
2. *वलनाडु (Valanadu)* – मंडलम के अंतर्गत आने वाली इकाई, जिसे वलनाडु प्रमुख द्वारा शासित किया जाता था।
3. *नाडु (Nadu)* – स्थानीय प्रशासन की महत्वपूर्ण इकाई, जिसमें ग्रामों का समूह शामिल होता था।
4. *ग्राम (Ur/Village)* – प्रशासन की सबसे छोटी इकाई, जो स्वायत्त रूप से कार्य करता था।
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*3. ग्राम प्रशासन (स्थानीय स्वशासन)*
चोल प्रशासन की सबसे विशिष्ट विशेषता *स्थानीय स्वशासन* थी, जिसे "उर" और "सभाएँ" नियंत्रित करती थीं।
*(A) उर (Ur)*
सामान्य गाँवों की सभा, जहाँ सभी भूमिधारी किसान निर्णय लेते थे।
छोटे किसानों और सामान्य नागरिकों का इसमें मुख्य योगदान था।
*(B) सभा (Sabha or Mahasabha)*
वे गाँव जहाँ ब्राह्मणों का वर्चस्व था (ब्राह्मदया गाँव) वहाँ सभा का गठन किया जाता था।
सभा के सदस्य उच्च योग्यता प्राप्त होते थे और इन्हें "वर्षा" (Ballot System) के माध्यम से चुना जाता था।
सभा विभिन्न समितियों में विभाजित होती थी, जैसे:
1. *धर्मवर्ण समिति (Dharmavarna Committee)* – धार्मिक और दान-संबंधी कार्यों की देखरेख
2. *वारियम (Variyam)* – कर और राजस्व का प्रबंधन
3. *तोट्टवरियम (Tottavariyam)* – सिंचाई और जल व्यवस्था
*(C) नगरम् (Nagaram)*
यह शहरी प्रशासन का केंद्र था और व्यापारियों द्वारा संचालित किया जाता था।
नगरम् में व्यापारिक गिल्डों (guilds) की भूमिका महत्वपूर्ण थी।
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*4. न्याय व्यवस्था*
न्याय का अंतिम अधिकार राजा के पास था।
स्थानीय स्तर पर *धर्मशासन (Dharmasastras)* और परंपरागत कानूनों के अनुसार न्याय किया जाता था।
गाँव स्तर पर पंचायतों को न्यायिक अधिकार प्राप्त थे।
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*5. सैन्य प्रशासन*
चोलों की सैन्य व्यवस्था मजबूत थी और इसमें *पदाति (Infantry), अश्वारोही (Cavalry), रथ (Chariot) और नौसेना (Navy)* शामिल थे।
चोलों की नौसेना दक्षिण-पूर्व एशिया तक अपने अभियानों के लिए प्रसिद्ध थी।
नौसैनिक शक्ति का नियंत्रण *कडारम (Kadarams) और उड्डियार (Udiyar)* जैसे अधिकारियों के हाथ में था।
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*6. राजस्व प्रशासन*
मुख्य कर *"लैंड टैक्स" (स्थल कर)* था, जो उत्पादन का लगभग *1/6 भाग* होता था।
व्यापार और व्यापारिक गतिविधियों पर भी कर लगाया जाता था।
राजस्व संग्रहण और भूमि की देखभाल के लिए विशेष अधिकारी होते थे जिन्हें *निझपट्टार (Nirvpathar)* कहा जाता था।
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*निष्कर्ष*
चोल प्रशासन एक संगठित, विकेंद्रीकृत और स्वायत्त प्रणाली थी, जिसमें ग्राम पंचायतों को विशेष स्थान प्राप्त था। स्थानीय प्रशासन में जनता की भागीदारी इसे अन्य समकालीन प्रशासनिक व्यवस्थाओं से अलग बनाती थी। विशेष रूप से, चोलों की *नौसैनिक शक्ति* और *स्थानीय स्वशासन* प्रणाली भारत के मध्यकालीन इतिहास में एक महत्वपूर्ण योगदान मानी जाती है।
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*प्रमुख विशेषताएँ (संक्षेप में):*
✅ *विकेंद्रीकृत शासन* – स्थानीय प्रशासनिक इकाइयों की शक्ति अधिक थी।
✅ *स्थानीय स्वशासन* – गाँव सभा और महा सभा की महत्वपूर्ण भूमिका।
✅ *सशक्त नौसेना* – दक्षिण-पूर्व एशिया तक प्रभावी अभियानों के लिए प्रसिद्ध।
✅ *राजस्व प्रणाली* – भूमि कर प्रमुख कर प्रणाली थी।
✅ *न्याय व्यवस्था* – ग्राम पंचायतों को न्यायिक अधिकार प्राप्त थे।
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by shekher sir
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