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ath vishnu sahasranamam / vishnu sahasranaam
विश्वं विष्णुर्वपट्कारो भूतभव्यभवत्प्रभुः । भूतकृद् भूतभृद्भावो भूतात्मा भूतभावनः ।१४।
ॐ सच्चिदानन्दस्वरूप, १ विश्वम्-समस्त जगत्के कारणरूप, २ विष्णुः-सर्वव्यापी, ३ वषट्कारः-जिनके उद्देश्य से यज्ञ में वषट् क्रिया की जाती है, है, ऐसे ऐसे यज्ञस्वरूप, ४ भूतभव्यभवत्प्रभुः-भूत, भविष्यत् और वर्तमान के स्वामी, ५ भूतकृत्-रजोगुण का आश्रय लेकर ब्रह्मारूप से सम्पूर्ण भूतों की रचना करने वाले, ६ भूतभृत्-सत्त्वगुण का आश्रय लेकर सम्पूर्ण भूतों का पालन-पोषण करने वाले, ७ भावः-नित्यस्वरूप होते हुए भी स्वतः उत्पन्न होने वाले, ८ भूतात्मा-सम्पूर्ण भूतों के आत्मा अर्थात् अन्तर्यामी, ९ भूतभावनः-भूतों की उत्पत्ति और वृद्धि करनेवाले ॥१४॥
पूतात्मा परमात्मा च मुक्तानां परमा गतिः । अव्ययः पुरुषः साक्षी क्षेत्रज्ञोऽक्षर एव च ॥१५॥
१० पूतात्मा-पवित्रात्मा, ११ परमात्मा-परमश्रेष्ठ नित्य शुद्ध-बुद्ध-मुक्तस्वमाव, १२ मुक्तानां परमा गतिः- मुक्त पुरुषर्षों की सर्वश्रेष्ठ गतिस्वरूप, १३ अव्ययः-कभी विनाश को प्राप्त न होनेवाले, १४ पुरुषः-पुर अर्थात् शरीर में शयन करनेवाले, १५ साक्षी-बिना किसी व्यवधानकै सब कुछ देखने वाले, १६ क्षेत्रज्ञः-क्षेत्र अर्थात् समस्त प्रकृतिरूप शरीर को पूर्णतया जानने वाले, १७ अक्षरः-कभी क्षीण न होनेवाले ।। १५ ।।
योगो योगविदां नेता प्रधानपुरुषेश्वरः । नारसिंहवपुः श्रीमान्केशवः पुरुषोत्तमः ॥१६॥
१८ योगः-मन सहित सम्पूर्ण ज्ञानेन्द्रियों के निरोधरूप योग से ग्राप्त होनेवाले, १९ योगविदां नेता-योग को जाननेवाले भक्तों के योगक्षेमादि का निर्वाह करने में अग्रसर रहनेवाले, २० प्रधानपुरुषेश्वरः- प्रकृति और पुरुष के स्वामी, २१ नारसिंहवपुः मनुष्य और सिंह दोनों के जैसा : शरीर धारण करनेवाले नरसिंहरूप, २२ श्रीमान्- वक्षःस्थल में सदा श्री को धारण करने वाले, २३ केशवः- (क) ब्रह्मा, (अ) विष्णु और (ईश) महादेव-इस प्रकार त्रिमूर्तिस्वरूप, २४ पुरुषोत्तमः-श्नर और अक्षर' इन दोनोंसे सर्वथा उत्तम ॥ १६ ॥
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