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Скачать или смотреть जटायु से भेंट। पंचवटी निवास। शूर्पणखा प्रसंग | Ramayan Katha

  • Bharat Ki Amar Kahaniyan
  • 2025-10-24
  • 47860
जटायु से भेंट। पंचवटी निवास। शूर्पणखा प्रसंग | Ramayan Katha
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Описание к видео जटायु से भेंट। पंचवटी निवास। शूर्पणखा प्रसंग | Ramayan Katha

"दण्डकवन में राम, लक्ष्मण और सीता की भेंट महर्षि अगस्त्य से होती है। यहाँ अभूतपूर्व दृश्य उपस्थित होता है। तीनों अगस्त्य को प्रणाम करते हैं तो अगस्त्य उन्हें भी प्रणाम करते हैं। राम और अगस्त्य भी परस्पर एक दूसरे से आशीष लेते और देते हैं। वस्तुतः महर्षि अगस्त्य जानते हैं कि देवताओं के उद्देश्य को पूरा करने हेतु स्वयं भगवान विष्णु, शेषनाग और देवी लक्ष्मी उनके आश्रम पधारे हैं। राम धरती पर अवतरित होने का उद्देश्य पूर्ण करें, इसके लिये महर्षि अगस्त्य उन्हें पंचवटी में कुटिया बनाकर रहने का परामर्श देते हैं। यहाँ से राक्षसों की छावनी निकट है। अगस्त्य दिव्य शक्ति से जान लेते हैं कि राम के सामने अब संकटों का दौर शुरू होने वाला है इसलिये वे उन्हें अनेक दैवीय अस्त्र शस्त्र प्रदान करते हैं। इसमें विश्वकर्मा द्वारा निर्मित भगवान विष्णु का धनुष शामिल है जो अकाट्य है। वे राम लक्ष्मण को अक्षय तुण्डीर देते हैं, इसमें रखे चारों बाण शत्रु का नाश करने के बाद तुण्डीर में वापस आ जाते हैं। महर्षि अगस्त्य तीनों लोकों पर जीत दिलाने में सक्षम तलवार लक्ष्मण को देते हैं। वे शिव का वो अमोघ बाण भी राम को देते हैं जिससे उन्होंने त्रिपुरासुर का वध किया था। राम पंचवटी को रवाना होते हैं। गोदवारी नदी के पास उन्हें गिद्धराज जटायु मिलते हैं। देवासुर संग्राम में जटायु की राजा दशरथ से मित्रता हो गयी थी। जटायु उन्हें बताते हैं कि महर्षि कश्यप के दो पुत्र थे। एक पुत्र गरूण भगवान विष्णु की सेवा में गये तो दूसरा पुत्र अरूण भगवान सूर्य में लीन हो गये। जटायु इन्हीं अरूण के पुत्र हैं। जटायु उन्हें पंचवटी की रक्षा का वचन देते हैं। लक्ष्मण पंचवटी में बहुत ही सुन्दर पर्णकुटी का निर्माण करते हैं। वनवास को बारह वर्ष बीत चुके हैं। सीता शेष दो वर्ष पंचवटी में रहने की इच्छा व्यक्त करती हैं। राम माता कौशल्या को याद कर बहुत अधीर होते हैं। अब वनवास का शेष समय काटना राम और कौशल्या दोनों के लिये कठिन साबित हो रहा है। लेकिन राम के जीवन की सबसे कठिन परीक्षा की घड़ी मुँह बाये खड़ी हो जाती है। एक दिन आकाश मार्ग से जाते समय राक्षसी शूर्पणखा पंचवटी में ध्यानमग्न राम को देखती है। वह उनपर मोहित हो जाती है। शूर्पणखा एक सुन्दर नारी का रूप रखकर राम के रामने आती है और उनका ध्यान भंग कर अपना परिचय देती है। शूर्पणखा कहती है कि वह महर्षि पुलत्स्य के पौत्र व ऋषि विश्रवा के पुत्र रावण की बहन है। वह अपने भाईयों कुम्भकरण, खर व दूषण के बारे में भी बताती है और राम के समक्ष प्रणय निवेदन करती है। राम शूर्पणखा को अपनी पत्नी सीता का परिचय देते हैं। शूर्पणखा सीता को खा जाने अथवा उन्हें दासी बनाकर रखने का विकल्प देकर राम पर विवाह के लिये पुनः जोर देती है। राम शूर्पणखा को उकसाते हुए मना करते हैं। तभी शूर्पणखा की कामुक दृष्टि लक्ष्मण पर पड़ती है। अब वह उनके समक्ष विवाह का प्रस्ताव लेकर जाती है। लक्ष्मण शूर्पणखा से कहते हैं कि वो अपने भाई के दास है, शूर्पणखा को दास और स्वामी के बीच का अन्तर समझना चाहिये। लक्ष्मण शूर्पणखा को फिर से राम के पास जाकर प्रणय प्रस्ताव रखने को कहते हैं। शूर्पणखा इससे अकुला जाती है। उसे लगता है कि सीता के कारण राम उसका प्रणय प्रस्ताव अस्वीकार कर रहे हैं। वो अपने असली राक्षसी रूप में आकर सीता पर हमला करती है। तभी राम का संकेत पाकर लक्ष्मण तलवार से शूर्पणखा की नाक काट देते हैं। शूर्पणखा इस अपमान का बदला लेने की चेतावनी देकर वहाँ से चली जाती है। राम कुछ बुरा घटने को लेकर सशंकित होते हैं। वे लक्ष्मण को सचेत रहने को कहते हैं।
श्री राम को देख कर जब शूर्पणखा उनसे विवाह करने की बात करती है तो श्री राम उसे मना कर देते हैं और कहते हैं की मैंने एक पत्नी के साथ जीवन बिताने का प्रण लिया है इसलिए मैं तुमसे विवाह नहीं कर सकता। शूर्पणखा यह सुनकर माता सीता को मारने के लिए आगे बड़ती हैं तो लक्ष्मण उसे रोक देते हैं और श्री राम उसकी इस उदंडता पर लक्ष्मण को शूर्पणखा की नाक काटने को कहते हैं। लक्ष्मण शूर्पणखा की नाक काट देते हैं।

भारत की अमर कहानियाँ में आपको मिलती हैं ऐसी कथाएँ जो न केवल अनोखी हैं, बल्कि हमारी संस्कृति की अमूल्य धरोहर भी हैं। ये कहानियाँ शाश्वत हैं क्योंकि ये हमारे मन-मस्तिष्क पर गहरा प्रभाव छोड़ती हैं।

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