13 गोकर्णोपाख्यान का प्रारंभ आत्मदेव ब्राह्मण और धुंधली की कथा (श्रीमद् भागवत महापुराण) Shrimad

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भागवत का उद्देश्य और महात्मय, 13 गोकर्णोपाख्यान का प्रारंभ आत्मदेव ब्राह्मण और धुंधली की कथा | भागवत का अर्थ है भक्ति ज्ञान, वैराग्य : कथाचार्य

भागवत पुराण (Bhaagwat Puraana) हिन्दुओं के अट्ठारह पुराणों में से एक है। इसे श्रीमद्भागवतम् (Shrimadbhaagwatam) या केवल भागवतम् (Bhaagwatam) भी कहते हैं। इसका मुख्य वर्ण्य विषय भक्ति योग है, जिसमें कृष्ण को सभी देवों का देव या स्वयं भगवान के रूप में चित्रित किया गया है। इसके अतिरिक्त इस पुराण में रस भाव की भक्ति का निरुपण भी किया गया है। परंपरागत तौर पर इस पुराण के रचयिता वेद व्यास को माना जाता है।

श्रीमद्भागवत भारतीय वाङ्मय का मुकुटमणि है। भगवान शुकदेव द्वारा महाराज परीक्षित को सुनाया गया भक्तिमार्ग तो मानो सोपान ही है। इसके प्रत्येक श्लोक में श्रीकृष्ण-प्रेम की सुगन्धि है। इसमें साधन-ज्ञान, सिद्धज्ञान, साधन-भक्ति, सिद्धा-भक्ति, मर्यादा-मार्ग, अनुग्रह-मार्ग, द्वैत, अद्वैत समन्वय के साथ प्रेरणादायी विविध उपाख्यानों का अद्भुत संग्रह है।

अष्टादश पुराणों में भागवत नितांत महत्वपूर्ण तथा प्रख्यात पुराण है। पुराणों की गणना में भागवत अष्टम पुराण के रूप में परिगृहीत किया जाता है (भागवत 12.7.23)। भागवत पुराण में महर्षि सूत जी उनके समक्ष प्रस्तुत साधुओं को एक कथा सुनाते हैं। साधु लोग उनसे विष्णु के विभिन्न अवतारों के बारे में प्रश्न पूछते हैं। सूत जी कहते हैं कि यह कथा उन्होने एक दूसरे ऋषि शुकदेव से सुनी थी। इसमें कुल बारह स्कन्ध हैं। प्रथम स्कन्ध में सभी अवतारों का सारांश रूप में वर्णन किया गया है।

प्रथम स्कन्ध
इसमें भक्तियोग और उससे उत्पन्न एवं उसे स्थिर रखने वाला वैराग्य का वर्णन किया गया है।

द्वितीय स्कन्ध
ब्रह्माण्ड की उत्त्पत्ति एवं उसमें विराट् पुरुष की स्थिति का स्वरूप।

तृतीय स्कन्ध
उद्धव द्वारा भगवान् का बाल चरित्र का वर्णन।

चतुर्थ स्कन्ध
राजर्षि ध्रुव एवं पृथु आदि का चरित्र।

पंचम स्कन्ध
समुद्र, पर्वत, नदी, पाताल, नरक आदि की स्थिति।

षष्ठ स्कन्ध
देवता, मनुष्य, पशु, पक्षी आदि के जन्म की कथा।

सप्तम स्कन्ध
हिरण्यकश्यिपु, हिरण्याक्ष के साथ प्रहलाद का चरित्र।

अष्टम स्कन्ध
गजेन्द्र मोक्ष, मन्वन्तर कथा, वामन अवतार

नवम स्कन्ध
राजवंशों का विवरण। श्रीराम की कथा।

दशम स्कन्ध
भगवान् श्रीकृष्ण की अनन्त लीलाएं।

एकादश स्कन्ध
यदु वंश का संहार।

द्वादश स्कन्ध
विभिन्न युगों तथा प्रलयों और भगवान् के उपांगों आदि का स्वरूप।

Shrimad Bhagwat Mahapuran

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