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  • Aham Bhakti
  • 2023-07-25
  • 41
मलमास या अधिक मास की कथा
मलमास की प्रचलित कथाहिरण्यकश्यप का अमर होनाअधिक मास की प्रहलाद कथाअधिक मास 13 माह काब्रह्मा जी का वरदानतपस्या का फलमलमास के स्वामी
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Описание к видео मलमास या अधिक मास की कथा

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दैत्यराज हिरण्यकश्यप अमर होना चाहता था। इसके लिए उसने कठोर तप किया। उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने उसे दर्शन दिए और वरदान मांगने को कहा। हिरण्यकश्यप ने ब्रह्माजी ने कहा कि आपके बनाए किसी भी प्राणी, न मनुष्य से और न पशु से मेरी मृत्यु ना हो। न दैत्य से और न देवताओं से। न भीतर मरूं, न बाहर मरूं। न दिन में न रात में। आपने जो 12 माह बनाए न उनमें, न किसी अस्त्र से न किसी शस्त्र से, न पृथ्वी पर न आकाश पर। किसी युद्ध में भी मुझे कोई मार न पाए। आपने जितने भी प्राणी बनाएं हैं उनमें मैं एकक्षत्र सम्राट हूं। तब ब्रह्माजी ने कहा- तथास्थु ।



प्राणी बनाएं हैं उनमें मैं एकक्षत्र सम्राट हूं। तब ब्रह्माजी ने कहा- तथास्थु ।

इस वरदान के बाद हिरण्यकश्यप के अत्याचार बढ़ गए। वो चाहता था कि विष्णु जी का कोई भी भक्त धरती पर न रहे। तब श्रीहरि की माया से उसका पुत्र प्रहलाद ही उनका भक्त बन गया। विष्णु जी ने प्रहलाद की जान बचाने के लिए सबसे पहले 12 माह को 13 माह में बदल दिया। इस अधिक माह को अधिमास कहा गया। विषअणु जी ने नृसिंह अवतार लिया और शाम के समय देहरी पर अपने नाखुनों से उसका वध कर दिया।इसके बाद हर चंद्रमास के हर महीने के लिए एक देवता निर्धारित हैं। लेकिन कोई भी इस अधिमास का देवता नहीं बनाना चाहता था। ऐसे में ऋषि-मुनियों ने भगवान विष्णु से इस मास का अधिपति बनने का आग्रह किया। उन सभी ने कहा कि वो इस मास का भार अपने ऊपर लें जिससे यह मास पवित्र बन सके। तब भगवान विष्णु ने इसे स्वीकार कर लिया। इस तरह यह मलमास के साथ पुरुषोत्तम मास भी कहलाया गया।

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