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Скачать или смотреть मां दुर्गा का मानस पुजा। Durga Maa Ka Manas Puja.#@meripyarimataji

  • meri pyari mata ji
  • 2025-09-28
  • 42
मां दुर्गा का मानस पुजा। Durga Maa Ka Manas Puja.#@meripyarimataji
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Описание к видео मां दुर्गा का मानस पुजा। Durga Maa Ka Manas Puja.#@meripyarimataji

#मां दुर्गा मानस पुजा #
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मां दुर्गा की मानस पूजा एक मानसिक पूजा है जिसमें भक्त अपनी कल्पना से मां दुर्गा को गंगाजल से स्नान कराता है, वस्त्र पहनाता है, और मंत्र व फूलों से उनकी असीमित भक्ति व्यक्त करता है। इस पूजा में कोई भौतिक वस्तुएँ नहीं होतीं, बल्कि पूरी तरह से मन और भक्ति का उपयोग किया जाता है, जिससे भक्त को हजार गुना अधिक फल प्राप्त होता है, जैसा कि वर्णित है

माता त्रिपुरसुन्दरि! तुम भक्तजनोंकी मनोवाञ्छा पूर्ण करनेवाली कल्पलता हो। माँ! यह पादुका आदरपूर्वक तुम्हारे श्रीचरणों में समर्पित है, इसे ग्रहण करो। यह उत्तम चन्दन और कुङ्कुमसे मिली हुई लाल जलकी धारासे धोयी गयी है। भाँति-भाँतिकी बहुमूल्य मणियों तथा मँगोंसे इसका निर्माण हुआ है और बहुत-सी देवाङ्गनाओंने अपने कर-कमलोंद्वारा भक्तिपूर्वक इसे सब ओर से धो-पोछकर स्वच्छ बना दिया॥1॥

माँ! देवताओंने तुम्हारे बैठनेके लिये यह दिव्य सिंहासन लाकर रख दिया है, इसपर विराजो यह वह सिंहासन है, जिसकी देवराज इन्द्र आदि भी पूजा करते हैं। अपनी कान्तिसे दमकते हुए राशि - राशि सुवर्णसे इसका निर्माण किया गया है। यह अपनी मनोहर प्रभासे सदा प्रकाशमान रहता है। इसके सिवा, यह चम्पा और केतकीकी सुगन्धसे पूर्ण अत्यन्त निर्मल तेल और सुगन्धयुक्त उबटन है, जिसे दिव्य युवतियाँ आदरपूर्वक तुम्हारी सेवामें प्रस्तुत कर रही हैं, कृपया इसे स्वीकार करो॥2॥

देवि! इसके पश्चात् यह विशुद्ध आँवलेका फल ग्रहण करो। शिवप्रिये! त्रिपुरसुन्दरि! इस आँवलेमें प्रायः जितने भी सुगन्धित पदार्थ हैं, वे सभी डाले गये हैं; इससे यह परम सुगन्धित हो गया है। अतः इसको लगाकर बालोंको कंघीसे झाड़ लो और गङ्गाजी की पवित्र धारामें नहाओ। तदनन्तर यह दिव्य गन्ध सेवामें प्रस्तुत है, यह तुम्हारे आनन्दकी वृद्धि करनेवाला हो॥3॥

सम्पत्ति प्रदान करनेवाली वरदायिनी त्रिपुरसुन्दरि! यह सरस शुद्ध कस्तूरी ग्रहण करो। इसे स्वयं देवराज इन्द्रकी पत्नी महारानी शची अपने कर-कमलोंमें लेकर सेवामें खड़ी हैं। इसमें चन्दन, कुङ्कम तथा अगुरुका मेल होनेसे और भी इसकी शोभा बढ़ गयी है। इससे बहुत अधिक गन्ध निकलनेके कारण यह बड़ी मनोहर प्रतीत होती है॥4॥
माँ श्रीसुन्दरि! यह परम उत्तम निर्मल वस्त्र सेवामें समर्पित है, यह तुम्हारे हर्षको बढ़ावे। माता! इसे गन्धर्व, देवता तथा किन्नरोंकी प्रेयसी सुन्दरियाँ अपने फैलाये हुए कर-कमलोंमें धारण किये खड़ी हैं। यह केसरमें रँगा हुआ पीताम्बर है। इससे परम प्रकाशमान सूर्यमण्डलकी शोभामयी दिव्य कान्ति निकल रही है, जिसके कारण यह बहुत ही सुशोभित हो रहा है॥5॥

तुम्हारे दोनों कानोंमें सोनेके बने हुए कुण्डल झिलमिलाते रहें, कर-कमलकी एक अङ्गुलीमें अँगूठी शोभा पावे, कटिभागमें नितम्बोंपर करधनी सुहाये, दोनों चरणोंमें मञ्जीर मुखरित होता रहे, वक्षःस्थलमें हार सुशोभित हो और दोनों कलाइयोंमें कंकन खनखनाते रहें। तुम्हारे मस्तकपर रखा हुआ दिव्य मुकुट प्रतिदिन आनन्द प्रदान करे। ये सब आभूषण प्रशंसाके योग्य हैं॥6॥

धन देनेवाली शिवप्रिया पार्वती! तुम गलेमें बहुत ही चमकीली सुन्दर हँसली पहन लो, ललाटके मध्यभागमें सौन्दर्यकी मुद्रा (चिह्न) धारण करनेवाले सिन्दूरकी बेंदी लगाओ तथा अत्यन्त सुन्दर पद्मपत्रकी शोभाको तिरस्कृत करनेवाले नेत्रोंमें यह काजल भी लगा लो, यह काजल दिव्य औषधियों से तैयार किया गया है॥7॥

पापोंका नाश करनेवाली सम्पत्तिदायिनी त्रिपुरसुन्दरि! अपने मुखकी शोभा निहारनेके लिये यह दर्पण ग्रहण करो। इसे साक्षात् रति रानी अपने कर-कमलोंमें लेकर सेवामें उपस्थित हैं। इस दर्पणके चारों ओर मूँगे जड़े हैं। प्रचण्ड वेगसे घूमनेवाले मन्दराचलकी मथानीसे जब क्षीरसमुद्र मथा गया, उस समय यह दर्पण उसीसे प्रकट हुआ था। यह चन्द्रमाकी किरणोंके समान उज्ज्वल है॥8॥

भगवान् शंकरकी धर्मपत्नी पार्वतीदेवी! देवाङ्गनाओंके मस्तकपर रखे हुए बहुमूल्य रत्नमय कलशोंद्वारा शीघ्रतापूर्वक दिया जानेवाला यह निर्मल जल ग्रहण करो। इसे चम्पा और गुलाल आदि सुगन्धित द्रव्योंसे सुवासित किया गया है तथा यह कस्तूरीरस, चन्दन, अगुरु और सुधाकी धारासे आप्लावित है॥9॥

मैं कह्लार, उत्पल, नागकेसर, कमल, मालती, मल्लिका, कुमुद, केतकी और लाल कनेर आदि फूलोंसे, सुगन्धित पुष्प-मालाओंसे तथा नाना प्रकारके रसोंकी धारासे लाल कमलके भीतर निवास करनेवाली श्रीचण्डिका देवीकी पूजा करता (करती) हूँ॥10॥

श्रीचण्डिका देवि! देववधुओंके द्वारा तैयार किया हुआ यह दिव्य धूप तुम्हारी प्रसन्नता बढ़ानेवाला हो। यह धूप रत्नमय पात्रमें, जो सुगन्धका निवासस्थान है, रखा हुआ है; यह तुम्हें सन्तोष प्रदान करे। इसमें जटामासी, गुग्गुल, चन्दन, अगुरु-चूर्ण, कपूर, शिलाजीत, मधु, कुङ्कुम तथा घी मिलाकर उत्तम रीतिसे बनाया गया है॥11॥

देवी त्रिपुरसुन्दरी! तुम्हारी प्रसन्नताके लिये यहाँ यह दीप प्रकाशित हो रहा है। यह घीसे जलता है; इसकी दीयटमें सुन्दर रत्नका डंडा लगा है, इसे देवाङ्गनाओंने बनाया है। यह दीपक सुवर्णके चषक- (पात्र-) में जलाया गया है। इसमें कपूरके साथ बत्ती रखी है। यह भारी - से- भारी अन्धकारका भी नाश करनेवाला है॥12॥

श्रीचण्डिका देवि! देववधुओंने तुम्हारी प्रसन्नताके लिये यह दिव्य नैवेद्य तैयार किया है, इसमें अगहनीके चावलका स्वच्छ भात है, जो बहुत ही रुचिकर और चमेली की सुगन्धसे वासित है। साथ ही हींग, मिर्च और जीरा आदि सुगन्धित द्रव्योंसे छौंक बघारकर बनाये हुए नाना प्रकारके व्यञ्जन भी हैं, इसमें भाँति-भाँतिके पकवान, खीर, मधु, दही और घीका भी मेल है॥13॥

माँ! सुन्दर रत्नमय पात्रमें सजाकर रखा हुआ यह दिव्य ताम्बूल अपने मुखमें ग्रहण करो। लवंगकी कली चुभोकर इसके बीड़े लगाये गये हैं, अतः बहुत सुन्दर जान पड़ते हैं, इसमें बहुत- पानके पत्तोंका उपयोग किया गया है। इन सब बीड़ोंमें कोमल जावित्री, कपूर और सोपारी पड़े हैं। यह ताम्बूल सुधाके माधुर्यसे परिपूर्ण है॥14॥

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