7 बगला प्रत्यंगिरा पाठ करे ब्रह्माण्ड की अन्तिम शक्ति कोई शक्ति नहीं जो प्रत्यंगिरा के सामने ठहर सके

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श्री बगला प्रत्यंगिरा कवच , lयह ब्रह्माण्ड की अन्तिम शक्ति है lसंसार में कोई शक्ति नहीं जो प्रत्यंगिरा के सामने ठहर सके l


बिपरीत महाकाली, अपराजिता, पुर्णचण्डी, अथर्वण भद्रकालि, निकुम्भिला, बिरोधिनि आदि इनके हि नाम है l यह भगबान शरभ की महाबिरोधिनि शक्ति है जिसके सामने स्वयं भगबान भि ठहर नहीं पाए थे lयह ब्रह्माण्ड की अन्तिम शक्ति है lसंसार में कोई शक्ति नहीं जो प्रत्यंगिरा के सामने ठहर सके l


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वर्तमान कलियुग में जातकों को नाना प्रकार के तापों से परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। जातकों के मन में हमेशा अशांति का वातावरण छाया रहता है आखिर वह क्या करे जिससे मन को शांति तो मिले ही साथ ही यश, वैभव, कीर्ति, शत्रुओं से छुटकारा, ऋण से मुक्ति और ऊपरी बांधाओं से मुक्ति। प्राचीन ऋषि-मुनियों ने मां भद्रकाली, दक्षिणकाली या महाकाली की घनघोर तपस्या कर जातकों को इन सभी वस्तुओं से छुटाकर कीर्ति की पताका लहराई थी।

बहुत कम जातक जानते होंगे मां प्रत्यंगिरा के बारे में, मां प्रत्यंगिरा का भद्रकाली या महाकाली का ही विराट रूप है। कितना ही बड़ा काम क्यों न हो अथवा कितना बड़ा शत्रु ही क्यों न हो, सभी का मां चुटकियों में शमन कर देती हैं। आप भी मां प्रत्यंगिरा की सच्चे मन से साधना आराधना जप करके यश, वैभव, कीर्ति प्राप्त कर सकते हैं।

स्तोत्रम प्रारंभ करने से पूर्व प्रथम पूज्य श्रीगणेश, भगवान शंकर-पार्वती, गुरुदेव, मां सरस्वती, गायत्रीदेवी, भगवान सूर्यदेव, इष्टदेव, कुलदेव तथा कुलदेवी का ध्यान अवश्य कर लें। यह स्तोत्र रात्रि 10 बजे से 2 के मध्य किया जाए तो तत्काल फल देता है।

विनियोग
अस्य श्री बगला प्रत्यंगिरा मंत्रस्य नारद ऋषि स्त्रिष्टुप छन्दः प्रत्यंगिरा ह्लीं बीजं हूं शक्तिः ह्रीं कीलकं ह्लीं ह्लीं ह्लीं ह्लीं प्रत्यंगिरा
मम शत्रु विनाशे विनियोगः ।

मंत्र
ओम् प्रत्यंगिरायै नमः प्रत्यंगिरे सकल कामान् साधय: मम रक्षां कुरू कुरू सर्वान शत्रुन् खादय-खादय, मारय-मारय, घातय-घातय ॐ ह्रीं फट् स्वाहा।

बगला प्रत्यंगिरा कवच

ॐ भ्रामरी स्तम्भिनी देवी क्षोभिणी मोहनी तथा ।
संहारिणी द्राविणी च जृम्भणी रौद्ररूपिणी ।।
इत्यष्टौ शक्तयो देवि शत्रु पक्षे नियोजताः ।
धारयेत कण्ठदेशे च सर्व शत्रु विनाशिनी ।।
ॐ ह्रीं भ्रामरी सर्व शत्रून् भ्रामय भ्रामय ॐ ह्रीं स्वाहा ।
ॐ ह्रीं स्तम्भिनी मम शत्रून् स्तम्भय स्तम्भय ॐ ह्रीं स्वाहा ।
ॐ ह्रीं क्षोभिणी मम शत्रून् क्षोभय क्षोभय ॐ ह्रीं स्वाहा ।
ॐ ह्रीं मोहिनी मम शत्रून् मोहय मोहय ॐ ह्रीं स्वाहा ।
ॐ ह्रीं संहारिणी मम शत्रून् संहारय संहारय ॐ ह्रीं स्वाहा ।
ॐ ह्रीं द्राविणी मम शत्रून् द्रावय द्रावय ॐ ह्रीं स्वाहा ।
ॐ ह्रीं जृम्भणी मम शत्रून् जृम्भय जृम्भय ॐ ह्रीं स्वाहा ।
ॐ ह्रीं रौद्रि मम शत्रून् सन्तापय सन्तापय ॐ ह्रीं स्वाहा ।

(इति श्री रूद्रयामले शिवपार्वति सम्वादे बगला प्रत्यंगिरा कवचम्)

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