हिंदी भजन |भाग : ३| राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज भजन| निवडक भजन | BHAJAN SANGRAH |GURUKUNJ ASHRAM MOZRI

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२१.
भज-भज गुरु के नाम सदा । तेरा सिध्द बनेगा काम सदा, भाई ।।
उसको लगता न पैसा -अधेला कोई । उसको लगता न तीरथ -मन्दर कहीं ।।
प्रेम -तारी ,चढा,दिल को आगे बढा ।करले अपनी नजर को, श्याम सदा ।।
पंथ उसको नहीं , अन्त उसको नहीं ।जात उसको नहीं, उम्र भी तो नहीं ॥
उसमें होती लगन,सारा दम हो मगन ।प्यारा, डोले गगनभर, राम सदा ।।
गले मोहब्बत की माला चढाओ भले ।तनमें सेवा की कफनी रंगाओ भले ॥
त्याग का भस्म है,काम की कश्म हैं । कहता तुकड्या,मिलेगा आराम सदा ।।

२२.
जय-जय सद्गुरु दीनदयाल ! दरससे हरष भयो ।।टेक।।
लाखो जन्म करे पुन जाके, तब पाये महाराज ।
धन्य भये हम आज मिले तुम, सिध्द भये सब काज ।।१।।
टूट गयो अग्यान - अंधेरा, छायो बोध - प्रकाश ।
रुप तुम्हार नजरमो भायो, पाप भये सब नाश ।।२।।
किसबिध महिमा गाउँ तुम्हारी ? बाणी न पहुँचे जाय ।
तन-मन-धनसे करूँ आरती, हिरदय-बीच बसाय ।।३।।
चौदा भुवन प्रकाश तुम्हारा, ध्वजा खडी चहूँ धाम ।
स्वर्ग - मृत्यु - पाताल तिहूँसे, तुमही हो उपराम ।।४।।
यह तन थाल नयनकी बाती, तार सदा उजराय।
तुकड्यादास दरसका भूखा, यही पद हरदम पाय ।।५।।

२३.
मोहे गुरु - चरणका ध्यास रहे !
झूठ व्यापोंसे मन ये उदास रहे ! ।।
कोई आओ सुजन,करने पूरा वचन ।
मेरा है जिसमें मन,उसमें करदो मगन ।।
छूट जाये ये जान,कोई आवे तूफान ।
गुरुकि भक्ति का मनमें,उल्हास रहे।।
कोई आशा नहीं, अब रही पास में ।
एकही है उमंग,सदा रहें दास में ।।
मुझको छायी नशा,दिल गुरुसे हँसा ।
चाहे रोना हो तो, वही आस रहे ।।
दिलसे गुरुका हो ध्यान,मुखमें गुरुका हो गान ।
उसमें रंग जाये प्राण, कोई भावे न शान ।।
फिरके आशा नहीं, ये जगत में कोई ।
कहता तुकड्या,फकिरी लिबास रहे ।।

२४.
सुना मैने गुरुजन से, प्रभू सब कि भरा घट में | जिधर देखूं उधर वो है मंदर में और मस्जिद मे ॥
मेरा तो ख्याल होता है वहि सब खेल करता है । प्रजा राजा वही बनकर, मजा करता है झंझट में ॥
अगर वो हाल जो सच है, हम को भुल क्यों ऐसी । की हम हिंदू वो मुस्लीम है, जुदा कैसे खुदा हक में॥
कहि दिवाना होकर के खुद हि मस्ती को पाता । कहे तुकड्या गुरुजन सें पता पाता है घट घट में ॥

२५.
सत्‌गुरु नाम तुम्हारा, दिलसे पियारा।
जो जपता है जनम सुधारा ।।
पापीसे भी पापी हो कोई,जिसको जगा तिहूँ लोकमें नाही ।
गुरु-चरणोंसे प्रेम लगाई,देवत मंत्र अपारा,होत उजारा।
जो जपता है, जनम सुधारा ।।
पारसमणि लोहा सुधरावे, कनक बनाकर कीमत लावे।
लेकिन सत्‌गुरु किरपा पावे, आप समान उजारा,देकर तारा।
जो जपता है, जनम सुधारा ।।
सब देवनका देव गुरु है, सब साधनका साध्य गुरु है।
सब विद्याका ग्यान गुरु है, ऐसा वेद पुकारा, शास्त्र अधारा।
जो जपता है, जनम सुधारा ।।
ऐसा नाम जपे नहिं प्राणी, करता हैं जीवन की हानी।
तुकड्यादास ने गायी कहानी, अनुभव ले सौ बारा,बचन हमारा।
जो जपता है, जनम सुधारा ।।

२६.
गलेमें क्यों पहनी माला ? बदनपर भस्म चढा डाला।।
लगाया चन्दन का टीला ! पीता प्याला, प्याला शराबवाला ! ।।
करता तीरथ जा-जाके, नहाता गंगामें बाके।
दर्शन साधू-संतोके करता सीर झुका करके।।
फिरभी अक्कल नहिं आयी, पीकर पडता हैं नाला।
पीता प्याला, प्याला शराबवाला! ।।
जिसने शराब घर लाया, उसने घरही उजडाया ।
किसने इन्सानी पाया? पिया तो जिन्दगिसे खोया ।।
तुझको किसने सिखाया हैं ? घरका मुंह करने काला ।
पीता प्याला, प्याला शराबवाला ! ।।
किसको तुझे फँसाना था, तेरा सब धन लुटाना था।
तुझे दुनियाँसे मिटाना था, चारोंमे नाक कटाना था!
इसी कारणसे छंद दिया, वारे तू भोला-भाला।
पीता प्याला, प्याला शराबवाला ! ।।
तेरा घर नहिं था ऐसा, तमाशा तुने किया कैसा ।
गँवाया शराब में पैसा, फिरता मुरदे के जैसा ।।
तुकड्यादास कहे, सुनले ! लगा दे,व्यसनोंको ताला ।
पीता प्याला, प्याला शराबवाला ! ।।

२७.
ऐ मानव सुनले बात, व्यसन को छोड दे सारे ॥
तेरा और बडेगा नाम, प्यारे कर नेकी से काम ॥धृ॥
शराब गांजा पीकर किसने, जिवन सफल बनाया ?
--- किया है तन को धन को ,आखिर दुर्गती पाया रे ।
लाखो का बिगडा थाट, उतर गये यम राजा के घाट ॥
जुआ सट्टा चाय और सुट्टा, सब है बट्टा भाई ।
इसके मारे कोई ना सुखिया, लाखो देत गवाई रे।
तू समज बुज सव तोड, हटा दे इसका --------॥
आज हि किसने घर बेचा है, शौक निभाने अपना ।
बिन घरबार रहेगा भुका, कहा ना उसने माना रे ।
तू होगा आखिर चोर, कहके क्या होगा शिरजोर ॥

२८.
जनम -जनम के हैं दुखियारे, अब न दुखाओ मनको -
अब न दुखाओ मनको ! ॥
कहिं कीटक बनकर पग-नीचे, जान गमायी हमने ।
कहीं श्वान हाथी और घोडे, बन दुख पाया हमने ।।
कहीं अजगर जंबूक, नेवला, बन भूमिगत था बाँसा ।
जहाँ दिखे वहिं मार पडा था, ऐसा हुआ तमासा ! ।।
अब तो आये मानव बनकर, कुछ थे भाग हमारे ।
गरचे अब भी नहिं प्रभु पाये,कालके चक्र सँवारे ! ।।
इस कारण हम शरण प्रभूको, तारो नाथ हमारे ! ।
तुकड्यादास नहीं गति फिरसे, मानव जनम बिसारे ।।

२९.
ये गरीबी तो खानेको मौताज है ।
और अमीरी तो चैनोंमें सरताज है ।।
एक तो कष्ट के मारे बेजार है ।
दुसरा व्यसनोंमें भूला नचे यार है ।।
देश क्या चाहता, सुनलों अन्दाज है ।।
देश तो चाहता है कि गरिबी हटे ।
आँख से ना दिखे किसके कपडे फटे।।
खाने -पीने और शिक्षण मिले साज है।।
जो बडे हैं, निगा उनकी नीचे करो ।
वो भी इन्सान होकर रखो साँवरो ।।
सब बराबर हो दुनियाँका गण-राज है।।
धर्म -नामोंमें नहीं कोई कर्तव्य हो ।
सन्त-साधू भी जनता पढाते रहो।।
कहता तुकड्या तभी देश सरताज है।।

३०.
जोगी दर्शन दे, दर्शन दे, दर्शन दे ।।
दुखिया हूँ तेरे द्वारपे आया।
अर्पण करने तुझको काया।
मिल जाना,मत ठुकरा दे ।।
यादमें तेरी रहत दिवाना ।
बन बन घुमता हूँ मस्ताना ।
जान मेरी मत गमवा दे ।।
किसको है संसार पियार।
किसको है धन-मोह अपारा।
मुझमें फ॒कीरी जगवा दे ।।
तुकड्यादास कहे दर्शन से ।
छूट जाऊँगा माया डरसे ।
तेरी नजर अब बरसन दे ।।

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