सुंदर काण्ड - रामायण | रामलीला | 2023 | रामायण खण्ड

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हनुमान सीता माता जी खोज करते हुए अशोक वाटिका पहुँच वृक्ष में छिप कर राम कथा का गान करते हैं। एक वानर को सामने देखकर सीता इसे रावण की कोई नयी माया समझती हैं। तब हनुमान सीता को राम की मुद्रिका देते है और रावण द्वारा हरण के समय उनके द्वारा पल्लू में बाँधकर आभूषण फेंकने की घटना व उस पल्लू से जुड़े राम सीता के व्यक्तिगत पलों वर्णन भी करते हैं। हनुमान के अपना विशाल रूप दिखाने पर सीता को भरोसा हो जाता है। हनुमान लंका के सैन्यबल की थाह लेने के साथ अपनी लीला से शत्रु को भयभीत भी करना चाहते हैं और पनी भूख मिटाने के लिए अशोक वाटिका से फल तोड़कर तहस-नहस करते है। इस प्रकरण में रावण का छोटा पुत्र अक्षय कुमार उनके हाथों मारा जाता है। तब रावण का ज्येष्ठ पुत्र मेघनाथ हनुमान को बेड़ियों में जकड़ कर राजसभा में ले जाता है। राजसभा में हनुमान रावण की खिल्ली उड़ाते हुए सहस्रबाहु से युद्ध में रावण की हार व महाराज बालि द्वारा छह माह तक काँख में दबाए रखने का जिक्र करते है। हनुमान अपना परिचय देने के साथ ही भरी राजसभा में रावण का भरपूर तिरस्कार करते हैं व उसे विनाश का मार्ग छोड़कर प्रभु राम की शरण में जाने के कहते है। हनुमान की बातों से रावण भड़क जाता है और मंत्रीगणो के कहने पर हनुमान की पूँछ में आग लगा अंग-भंग का आदेश देता है। सैनिक हनुमान की पूछ में तेल से भीगा कपड़ा लपेटते हैं। हनुमान अपनी पूँछ काफी बड़ी कर लेते हैं। दासियों द्वारा हनुमान की दशा का पता चलने पर पर सीता अग्निदेव से हनुमान के लिये शीतल होने की प्रार्थना करती हैं। सैनिक जैसे ही पूँछ में आग लगाते हैं, हनुमान इसे छोटी कर लेते हैं और बन्धन तोड़कर हवा में उड़ जाते हैं। वे जलती पूँछ से लंका के महल और प्राचीरों में आग लगाते हैं। पूरी लंका धृ-धू कर जलने लगती है। हनुमान समुद्र के जल से अपनी जलती पूँछ बुझा कर माता सीता के पास आते हैं। वह सीता से कहते हैं कि वे उन्हें ऐसी कोई निशानी दें जिससे प्रभु राम को विश्वास हो जाये कि वह सीता माता से मिलकर आये हैं। तब सीता हनुमान को अपना आभूषण चूड़ामणी देने के साथ कौवे जयन्त से जुड़ा का प्रसंग बताती है कि किस प्रकार इन्द्र के पुत्र जयन्त द्वारा कौवे का रूप धारण कर उनके पैर में चोंच मारने पर श्री राम ने सरकण्डे के बाण चलाया व उसकी एक आँख फोड़कर उसे दण्डित किया, लेकिन प्राणदान दे दिया। हनुमान सीता माता को धीरज रखने का ढाँढस बँधा कर वापस किष्किंधा को रवाना होते हैं। लंका दहन उपरान्त रावण मंत्री परिषद की बैठक बुलाता है। रावण का नाना माल्यवान रावण को सीता के प्रति अपना हठ त्यागने का परामर्श देता है किन्तु रावण नाना का तिरस्कार करता है। विभीषण द्वारा बार-बार राम और हनुमान का पक्ष लेने मंत्रीगण सन्देह व्यक्त करते हैं कि विभीषण की हनुमान से मिलीभगत थी अन्यथा हनुमान द्वारा लगायी गयी आग से सभी के महल भस्म हो गये किन्तु विभीषण का घर बचा रहा। रावण क्रोधित होकर विभीषण को लात मार कर लंका से बाहर निकल जाने को आदेश देता है। विनाश काले, विपरीत बु़द्धि, विभीषण आखिरी बार रावण को समझाने जाते हैं लेकिन रावण की बुद्धि, रावण का साथ नहीं देती। विभीषण लंका को छोड़ अपने विश्वस्त चार साथियों के साथ का समुद्र पार तट पर पहुँच कर वानरों के साथ युद्धाभ्यास कर रहे सुग्रीव को अपना परिचय और मंतव्य बताते है। विभीषण के बारे में जानकर सुग्रीव राम लक्ष्मण और समस्त मंत्री के विचार विमर्श करते है। मंत्रीगण रावण का भाई होने के कारण विभीषण के साथ शत्रुवत व्यवहार करने का परामर्श देते हैं लेकिन हनुमान राम को बताते हैं कि राक्षसकुल का होने पर भी विभीषण लंका में माता सीता के परम हितैषी हैं। लक्ष्मण राम से कहते हैं कि जो संकट में अपने भाई को छोड़ दे, उस पर भरोसा नही किया जा सकता। किन्तु राम का तर्क है कि हर भाई भरत और लक्ष्मण के समान निष्ठावान नहीं हो सकता, शरणागत का त्याग करना पाप है। राम विभीषण को लाने के लिये युवराज अंगद को भेजते हैं। विभीषण राम के समक्ष पहुँच अपनी शरण की प्रार्थना करता है। राम विभीषण को मित्र का स्थान देते हुए लंकेश कह कर सम्बोधित करते है और कहते हैं कि रावण की मृत्यु समीप है, वानर सेना आम लंकावासियों को हानि नहीं पहुँचायेगी। राम अपनी छावनी में ही सागर जल से विभीषण का राज्याभिषेक करते हैं और लंका राज्य उन्हें सौंपते हैं। रावण का एक गुप्तचर शार्दूल वानर वेश में सब कुछ देखता है और सारा हाल रावण तक पहुँचाता है।
|| जय सियाराम ||

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