किष्किन्धा काण्ड - रामायण | रामलीला | 2023 | रामायण खण्ड

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सुग्रीव किष्किन्धा पर्वत पर धनुर्धारी दो तपस्वियों के देखे जाने की सूचना पर सुग्रीव हनुमान को उनकी सच्चाई पता करने के लिए भेजते है। हनुमान ब्राह्मण का रूप धारण कर राम लक्ष्मण के समक्ष पहुँच उनका ऋष्यमूक पर्वत शिखर पर आने का कारण पूछते है। अधिक प्रश्न करने के कारण लक्ष्मण झुँझला जाते हैं इस पर राम ब्राह्मण से सुग्रीव के स्थान पर हनुमान से मिलवाने के आग्रह करते है। हनुमान उनका परिचय जानकर अपने वास्तविक वानर रूप में आ जाते हैं और अपना आकार बड़ा कर राम लक्ष्मण को अपने कन्धे पर बैठाकर आकाश मार्ग से ऋष्यमूक पर्वत की चोटी पर स्थित सुग्रीव के गुप्त ठिकाने पर ले जाते है। सुग्रीव राम व लक्ष्मण को अपने विश्वासपात्र ऋक्षराज जामवन्त, नल व नील से परिचय कराते है। जामवन्त राम के समक्ष सीता की खोज के बदले सुग्रीव को उनके भाई बालि द्वारा छीना गया राज्य और पत्नी वापस दिलाने की शर्त रखते है। लेकिन राम निस्वार्थ भाव से सुग्रीव की ओर मित्रता का हाथ बढ़ा पहले उसको खोया राज्य व पत्नी वापस दिलाने की अग्निशपथ लेते हैं। सुग्रीव राम को कुछ दिनों पूर्व आकाश मार्ग से एक राक्षस द्वारा दक्षिण दिशा में ले जाई जा रही एक स्त्री द्वारा सहायता के लिये पुकारने व उसके फेंकी गई आभूषण की पोटली के बारे बताते है। राम सीता के आभूषण पहचान जाते हैं। उधर बालि की पत्नी तारा को उसका पुत्र अंगद हनुमान को धनुर्धारी राम और लक्ष्मण को कन्धे पर बैठाकर सुग्रीव से मिलवाने की बात बताता है। तारा बालि किसी षड्यन्त्र रचे जाने की आशंका व्यक्त करती है। बालि तारा को अपनी शक्ति पर भरोसा दिलाता है। सुग्रीव राम को अपने भाई बालि से शत्रुता होने का कारण, बालि द्वारा अपनी पत्नी रूमा का जबरन छीनने और ऋष्यमूक पर्वत में छिप कर रहने का वजह बताते है। सुग्रीव राम को बालि के बल के बारे में बताकर सावधान करते हैं कि बालि को यह वरदान प्राप्त है कि वो जिससे युद्ध करेगा, उसका आधा बल बालि को मिल जायेगा। साथ ही राम को बताते है कि एक बार दुन्दभि नामक विशाल भैंसासुर ने समुद्र को युद्ध के लिये ललकारा। समुद्र ने उससे लड़ने में असमर्थता व्यक्त की और उसे हिमवान के पास लड़ने भेजा। हिमवान ने भी युद्ध करने की बजाय दुन्दभि को बालि से मुकाबला करने को कहा। बालि ने युद्ध में दुन्दभि को मार दिया। दुन्दभि की हड्डियों का ढांचा गुफा के बाहर पड़ा है। सुग्रीव बताते हैं कि यहाँ ताड़ के सात पेड़ हैं जिन्हें बालि बाण से भेद सकता है। राम अपने पैर की एक ठोकर से दुन्दभि के ढांचे को कोसों दूर फेंक देते हैं और एक बाण से ताड़ के सातों पेड़ काटकर गिरा देते हैं। राम के कहने पर सुग्रीव बालि के महल के बाहर जाकर उसे युद्ध के लिये ललकारता है। सुग्रीव और बालि में युद्ध को होता है। युद्ध में बालि सुग्रीव पर हावी होता है तब पेड़ों के पीछे से राम उस पर बाण से आघात करते हैं। बालि घायल होकर पूछता है कि छिपकर वार करके राम ने कौन सी मर्यादा का पालन किया है? राम बालि से कहते हैं कि वह आज मरते समय धर्म का बात कह रहा है जबकि जीवन भर वो अधर्म के कार्य करता रहा इसलिए पापकर्मो के कारण उसे मनुस्मृति के अनुसार मृत्युदण्ड दिया गया है। बालि को अपने अपराधों का बोध होता है और राम के चरण पर गिर मोक्ष की कामना करते हुए प्राण त्याग देता है। सुग्रीव और उसके मंत्रीगण व वानर सेना सीता की खोज का विचार विमर्श कर चारो दिशाओं मे निकल जाते है। जामवन्त हनुमान को बताते है कि उनका नाम हनुमान व पवनपुत्र क्यो पड़ा, वह भगवान शंकर के ग्यारहवें रूद्र हैं और साथ ही उनको उनकी अपार शक्ति की याद दिलाते है जो वह बाल्यकाल में उनके नटखटपन के कारण एक ऋषि द्वारा श्राप के कारण भूल चुके है। जामवन्त व समस्त वानर सेना मिलकर उनको उनकी दिव्य शक्ति की याद दिलाते है उन्होने किस प्रकार बाल्यकाल में सूर्य को फल समझ कर निगल लिया था और जिसके कारण तीनों लोको में अंधियारा छा गया था। हनुमान को अपनी शक्ति का आभास होता है और विशाल स्वरुप धर आकाश मार्ग से समुद्र पार लंका की ओर चल देते है। मार्ग में मैनाक पर्वत द्वारा विश्राम का निवेदन अस्वीकार कर आगे बढ़ते है। तभी अचानक राक्षसी सुरसा उन्हें अपना आहार बनाने के लिये मुख खोले आती है। हनुमान बुद्धि का सहारा ले सुरसा के मुख में प्रवेश कर फुर्ती से बाहर निकल कर उसको मिले ब्रह्मा के वरदान की रक्षा भी करते है। आगे एक और विचित्र बाधा सिहिका निशाचरी जो आकाश में उड़ने वाले पंछियों को उनकी परछायी से पकड़ कर खा जाती थी वह हनुमान को अपने मुख में रख लेती है तब हनुमान गदा प्रहार से उसका मस्तिष्क फाड़कर बाहर निकल आते हैं। इस प्रकार हनुमान सात योजन समन्दर पार करके लंका की धरती पर उतरते है।
|| जय सियाराम ||

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