शिवजी को युगल स्वरूप परब्रह्म परमात्मा के दर्शन ।Radha Madhav Chintan ।LordsRadha Krishna ।

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शिवजी को युगल स्वरूप परब्रह्म परमात्मा के दर्शन । Madhav Chintan ।LordsRadha Krishna ।

एकबार भगवान् शंकरने नारदजीसे कहा- 'देवर्षि ! । मैं भगवान्के मन्त्रका जप और उनका ध्यान करता हुआ बहुत समयतक कैलासपर रहा। तब भगवान्ने प्रकट होकर मुझे दर्शन दिये और वर माँगनेको कहा। मैंने ने बारम्बार प्रणाम करके उनसे प्रार्थना की- 'कृपासिन्धो ! आपका जो सर्वानन्दमय समस्त आनन्दोंका आधार नित्य - मूर्तिमान् रूप है, जिसे विद्वान् लोग निर्गुण, निष्क्रिय, न शान्त ब्रह्म कहते हैं, हे परमेश्वर ! मैं उसी रूपको अपनी आँखोंसे देखना चाहता हूँ।
भगवान्ने कहा- 'आप यमुनाजीके पश्चिम तटपर टोर मेरे वृन्दावनमें जाइये, वहाँ आपको मेरे स्वरूपके दर्शन वे होंगे। इतना कहकर भगवान् अन्तर्धान हो गये। मैंने उसी बसे क्षण मनोहर यमुनातटपर जाकर देखा - समस्त देवताओंके न- ईश्वरों-के-ईश्वर भगवान् श्रीकृष्ण मनोहर गोपवेश इस धारण किये हुए हैं, उनकी सुन्दर किशोर-अवस्था है, चुके श्रीराधाजीके कन्धेपर अपना अति मनोहर बायाँ हाथ रखे वे सुन्दर त्रिभंगीसे खड़े मुसकरा रहे हैं। आपके चारों ओर गोपियोंका मण्डल है, शरीरकी कान्ति सजल धा- जलदके सदृश स्निग्ध श्यामवर्ण है। आप अखिल कल्याणके एकमात्र आधार हैं। इसके बाद भगवान् श्रीकृष्णने अमृतोपम मधुर वाणीमें मुझसे कहा- शंकरजी ! आपने अब मेरा यह परम अलौकिक रूप देखा है, सारे उपनिषद् मेरे इस घनीभूत निर्मल प्रेममय सच्चिदानन्दघनरूपको ही निराकार, निर्गुण, सर्वव्यापी, निष्क्रिय और परात्पर ब्रह्म कहते हैं। मुझमें प्रकृतिसे उत्पन्न कोई गुण नहीं है और मेरे गुण अनन्त हैं- उनका वर्णन नहीं हो सकता। मेरे ये गुण तात्त्विक दृष्टिसे सिद्ध नहीं होते। इसीलिये ये सब मुझको निर्गुण कहते हैं। महेश्वर ! मेरे इस रूपको चर्मचक्षुओंके द्वारा कोई देख नहीं सकता, इसलिये वेद इसको अरूप या निराकार कहते हैं। मैं अपने चैतन्यांशके द्वारा सर्वव्यापी हूँ। बयमें इसलिये विद्वान् लोग मुझको ब्रह्म कहते हैं और मैं इस दर्शन विश्वप्रपंचका रचयिता नहीं हूँ, इसलिये पण्डितगण मुझको निष्क्रिय बतलाते हैं। शिव ! वस्तुतः सृष्टि आदि कोई भी कार्य मैं स्वयं नहीं करता, मेरे अंश (ब्रह्मा- विष्णु-रुद्र) ही मायागुणोंके द्वारा सृष्टि-संहारका कार्य किया करते हैं।

देवर्षि ! भगवान्के इस प्रकार कहने और कुछ अन्य उपदेश करनेपर मैंने उनसे पूछा- 'नाथ ! आपके इस युगलस्वरूपकी प्राप्ति किस उपायसे हो सकती है, इसे कृपा करके बतलाइये।' भगवान्ने कहा- हम दोनोंके शरणापन्न होकर जो गोपीभावसे हमारी उपासना करते हैं, उन्हींको हमारी प्राप्ति होती है, अन्य किसीको नहीं -

गोपीभावेन देवेश स मामेति न चेतरः ।

एक सत्य बात और है - वह यह है कि पूरे प्रयत्नके साथ इस भावकी प्राप्तिके लिये श्रीराधिकाकी उपासना करनी चाहिये। हे रुद्र ! यदि आप मुझे वशमें करना चाहते हैं तो मेरी प्रिया श्रीराधिकाजीकी शरण ग्रहण कीजिये
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