139. परिवार के प्रकार्य एवं महत्त्व Functions and importance of family

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व्यक्ति और समाज के लिए परिवार एक महत्त्वपूर्ण संस्था है।
एण्डरसन के अनुसार, "एक कार्यात्मक इकाई के रूप में परिवार इतनी महत्त्वपूर्ण संस्था है कि सभी समाज परिवार के माध्यम से ही अपने मान्यता प्राप्त लक्ष्यों को पाने का प्रयत्न करते हैं।"
परिवार के कारण ही मानव बर्बरता और असभ्यता के युग से सभ्यता के युग में प्रवेश कर एक सभ्य प्राणी बन सका है। जिसके पास संस्कृति है, ज्ञान है और आविष्कार करने की क्षमता है। परिवार अपने सदस्यों को दूसरों के प्रति सहानुभूति, त्याग, प्रेम, स्नेह की सीख देता है और सामूहिक जीवन के महत्त्व को स्वीकार करता है। परिवार समाजीकरण करने वाली एक महत्त्वपूर्ण संस्था है। परिवार अपने सदस्यों का धार्मिक पथ-प्रदर्शन, मनोरंजन और विभिन्न विपत्तियों के विरुद्ध संरक्षण प्रदान करता हैं।
किंग्सले डेविस ने कहा है कि "परिवार के सभी कार्य इतने स्वतन्त्र प्रकृति के होते हैं कि उन सभी कार्यों को अन्य संस्थाओं के द्वारा भी पूरा किया जा सकता है लेकिन परिवार के अतिरिक्त ऐसी कोई संस्था नहीं है जिसमें इन कार्यों को असीमित उत्तरदायित्व की भावना के साथ किया जाता हो।"
इस आधार पर यह आवश्यक हो जाता है कि सामाजिक जीवन के लिए परिवार द्वारा किये जाने वाले महत्त्वपूर्ण कार्यों का संक्षिप्त विवेचन करके इसके समाजशास्त्रीय महत्त्व को समझा जाये ।
1. प्राणीशास्त्रीय कार्य
1. यौन इच्छाओं की पूर्ति - विवाह संस्कार के बाद पति-पत्नि को यौन संबंधों की स्वीकृति। परिवार, द्वारा इसकी व्यवस्था। यह स्वीकृति नियमहीन एवं निर्बाध रूप से समाज में नहीं दी जा सकती, क्योंकि ऐसे संबंधों का परिणाम सन्तानोत्पत्ति।
2. संतानोत्पत्ति - यौन संतुष्टि का अंतिम परिणाम संतानोत्पत्ति । स्त्री-पुरुष में माँ बनने की स्वाभाविक मूल प्रवृत्ति। परिवार के बाहर संतानोत्पत्ति अवैध, समाज ऐसी संतानों को स्वीकार नहीं करता। वैध संतानों को ही पदाधिकार एवं उत्तराधिकार प्राप्त होता है।
3. प्रजाति की निरंतरता - परिवार ने मानव जाति को अमर बनाया। मानव शरीर नाशवान, नयी पीढ़ी को जन्म देकर परिवार एवं समाज में मानव की निरंतरता को बनाये रखा गया।
2. शारीरिक कार्य:
1. शारीरिक रक्षा - वृद्धावस्था, बीमारी, दुर्घटना, असहाय अवस्था, आदि की अवस्था में परिवार द्वारा सदस्यों की देखरेख एवं सेवा।
2. बच्चों का पालन पोषण- मानव शिशु का शैशवकाल अन्य प्राणियों की तुलना में लम्बा होता है, इस अवधि में परिवार द्वारा उसका पालन पोषण।
3. भोजन की व्यवस्था - सदस्यों के शारीरिक अस्तित्व के लिये भोजन की व्यवस्था परिवार द्वारा।
4. आवास एवं वस्त्र की व्यवस्था - सर्दी, गर्मी एवं वर्षा से परिवार द्वारा सदस्यों की रक्षा एवं आवास, वस्त्र की व्यवस्था।
3. आर्थिक कार्य:
1. उत्तराधिकार का निर्धारण - प्रत्येक समाज में सम्पत्ति एवं पदों के नयी पीढ़ी को हस्तांतरण की व्यवस्था। परिवार द्वारा यह कार्य सम्पन्न। पितृ सत्तात्मक परिवार में उत्तराधिकार, पिता से पुत्र को एवं मातृ सत्तात्मक परिवार में माता से पुत्री को।
2. श्रम विभाजन - पुरुष, स्त्री एवं बच्चों के कार्यों का विभाजन। श्रम विभाजन का आधार यौन एवं आयु। शक्ति एवं परिश्रम साध्य कार्य पुरुषों को, स्त्रियों द्वारा गृह कार्य।
3. उत्पादन का केन्द्र - आदिम समाजों में अधिकांश उत्पादन कार्य परिवार द्वारा। आदिम अवस्था में शिकार पश्चात् कृषि सम्पूर्ण उत्पादन का कार्य परिवार द्वारा। आय के बिना भोजन, वस्त्र एवं अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति सम्भव नहीं। इनकी पूर्ति के लिये सदस्यों द्वारा मिलकर उत्पादन।
4. सम्पत्ति की सुरक्षा - प्रत्येक परिवार के पास जमीन, जेवर, औजार, नगद, आभूषण, पशु, दुकान आदि के रूप में चल-अचल सम्पत्ति इनकी सुरक्षा परिवार द्वारा।
4. सामाजिक कार्य:
1. पद निश्चित करना - एक व्यक्ति का समाज में क्या स्थान होगा यह इस बात पर निर्भर की उसका जन्म किस परिवार में हुआ। अनेक प्रदत्त पद जन्म के आधार पर प्राप्त होते है।
2. समाजीकरण - बालक परिवार में रहकर रीति-रिवाजों, प्रथाओं, रूढ़ियों, संस्कृति का ज्ञान प्राप्त करता है। बालक का व्यक्तित्व वैसा होगा जैसा उसका परिवार होगा।
3. सामाजिक सुरक्षा- सदस्यों पर शारीरिक, मानसिक, आर्थिक सामाजिक विपत्ति के समय परिवार द्वारा सुरक्षा।
4. सामाजिक नियंत्रण - मुखिया का सदस्यों पर नियंत्रण। परिवार सदस्यों को मान्य सामाजिक प्रथाओं, परम्पराओं, रूढ़ियों, रीतियों, कानूनों के अनुरूप आचरण करने को प्रेषित करता है।
5. सभ्यता एवं संस्कृति का हस्तांतरण
6. जीवनसाथी का चुनाव - परिवार की प्रतिष्ठा के आधार पर जीवन साथी का चुनाव।
7. प्रेम की शिक्षा - पारिवारिक प्रेम-विशुद्ध एवं स्वार्थ रहित होता है। माता-पिता बालक एवं परिवार के अन्य सदस्यों से प्रेम करते है, बालक उनका अनुसरण करता है।
8. सामंजस्य की शिक्षा - परिवार के सदस्य एक-दूसरे के सुख-दुःख को अपना सुख-दुःख मानते हैं। पति-पत्नि का संबंध सामंजस्य का अनुपम उदाहरण। इस आधार पर बालक परिस्थितियों से अनुकूलन करना सीखता है।
9. आज्ञा-पालन की सीख - मुखिया के आदेशों का अन्य व्यक्तियों द्वारा पालन बालक पर इसका प्रभाव। परिवार में रहकर बालक दया, स्नेह, प्रेम, सहानुभूमि, त्याग, बलिदान, आज्ञा-पालन, कर्त्तव्य परायणता की शिक्षा प्राप्त करता है।
10. मानव अनुभवों का हस्तांतरण - पुरानी पीढ़ी अपने ज्ञान एवं अनुभवों को हस्तांतरण नयी पीढ़ी को करती है, जिससे नयी पीढ़ी को भूल एवं सीख की लम्बी प्रक्रिया से नहीं गुजरना पड़ता।

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