अनदेखा भारत — Interesting Facts Of Rani Ki Vav, पाटन (गुजरात), रानी की वाव (बावड़ी) — EP#7 4k Hindi

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अनदेखा भारत — Interesting Facts Of Rani Ki Vav, पाटन (गुजरात), रानी की वाव (बावड़ी) — EP#7 4k Hindi


रानी की बाव भारतीय गुजरात राज्य के पाटन जिले में स्थित है। यह राज्य अपनी संस्कृति और व्यापारिक गतिविधियों के लिए पूरे देश में प्रसिद्ध है। गुजराती भाषा में बावड़ी (सीढ़ीदार कुआँ) को बाव कहते हैं इसलिए इसे रानी की बाव कहा जाता है। जुलाई 2018 में भारत के केंद्रीय बैंक आरबीआई (भारतीय रिज़र्व बैंक) द्वारा जारी किये गए 100 के नए नोट पर एक ऐतिहासिक स्थल का चित्र छापा गया है। इस ऐतिहासिक बावड़ी की भव्य नक्काशी, कलाकृति और प्रतिमाओं की खूबसूरती यहाँ आने वाले सैलानियों का न केवल मन मोह लेती है, बल्कि अपने वैभवशाली इतिहास का बोध कराती है।


रानी की वाव का इतिहास: (Rani Ki Vav History in Hindi)
इस ऐतिहासिक और अनोखी बावड़ी का निर्माण सोलंकी राजवंश के राजा भीमदेव प्रथम की पत्नी ने अपने पति राजा भीमदेव की याद में लगभग सन 1063 में कराया था। राजा भीमदेव को गुजरात के सोलंकी राजवंश का संस्थापक भी माना जाता है। गुजरात के प्राकृतिक भूगर्भीय बदलावों के कारण यह बहुमूल्य धरोहर लगभग 700 सालों तक गाद की परतों के नीचे दबी हुई थी जिसे बाद में भारतीय पुरातत्व विभाग द्वारा खोजा गया था।

रानी की वाव के बारे में रोचक तथ्य: (Interesting Facts about Rani Ki Vav in Hindi)


इस ऐतिहासिक और भव्य बावड़ी का निर्माण वर्ष 1063 ई. में सोलंकी राजवंश की रानी उदयामती द्वारा अपने स्वर्गवासी पति राजा भीमदेव की याद में करवाया गया था।
यह बावड़ी भारतीय राज्य गुजरात के पाटन जिले में स्थित है ऐसा माना जाता है की यह लुप्त हो चुकी सरस्वती नदी के तट पर स्थित है।
इस बावड़ी का निर्माण मारू–गुर्जर स्थापत्य शैली में किया गया है, जो इसकी उत्कृष्टता को ओर भी भव्य बना देता है।


इस बावड़ी के पश्चिमी छोर पर प्रमुख शिल्पकारिता मौजूद है जोकि इसका कुआँ है और जिसका व्यास लगभग 10 मीटर और गहराई लगभग 30 मीटर है।
इस बावड़ी की लंबाई 64 मीटर, चौड़ाई 20 मीटर और गहराई 27 मीटर है।
यह बावड़ी भारत में स्थित सबसे बड़ी बावड़ियो में से एक है, यह लगभग 6 एकड़ के क्षेत्रफल में फैली हुई है।


रानी की वाव मारू-गुर्जरा वास्तुकला में एक कॉम्प्लेक्स में बनाई गई थी। इसके अंदर एक मंदिर और सीढियों की 7 कतारें भी बनी हुई हैं जिसमें 500 से भी ज्यादा मूर्तिकलाओं का प्रदर्शन किया गया गया है।


बावड़ी के नीचे एक छोटा दरवाजा भी है, जिसके भीतर 30 किलोमीटर लम्बी एक सुरंग भी है, लेकिन फ़िलहाल इस सुरंग को मिटटी और पत्‍थरों से बंद कर दिया गया है।
रानी–की–वाव वर्षा और अन्य जल संग्रह प्रणाली का उत्कृष्ट उदाहरण है, यह एक ऐसी प्रणाली है जिसे पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में बहुत ही पसंद किया जाता हैं।
बावड़ी के अन्दर भगवान विष्णु से संबंधित बहुत सी कलाकृतियां और मूर्तियां बनी हुई है। यहां पर भगवान विष्णु के दशावतार के रूप में ही मूर्तियों का निर्माण किया गया है, जिनमे मुख्य रूप से कल्कि, राम, कृष्णा, नरसिम्हा, वामन, वाराही और दूसरे मुख्य अवतार भी शामिल हैं।


साल 1980 में इसे एएसआई ने साफ करके इसका जिम्मा अपने सर पर लिया, सालों से इसमें गाद भरा हुआ था। करीब 50-60 वर्षों पहले यहां पर काफी आयुर्वेदिक पौधे पाए जाते थे, तब इस वाबडी से लोग बीमारियों को दूर करने के लिए पानी लेने आते थे।
साल 2001 में इस बावड़ी से 11वीं और 12वीं शताब्दी में बनी दो मूर्तियां चोरी कर ली गईं थी। इनमें एक मूर्ति गणपति की और दूसरी ब्रह्मा-ब्रह्माणि की थी।
प्राचीन स्मारक एवं पुरातत्व स्थल अधिनियम 1958 के अनुसार यह संपत्ति राष्ट्रीय स्मारक के तौर पर संरक्षित है, जिसमें 2010 में संशोधन किया गया था।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को विश्व प्रसिद्ध बावड़ी के प्रबंधन की जिम्मेदारी सौपी गयी है।


चूंकि यह बावड़ी भूकंप वाले क्षेत्र में स्थित है इसलिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग को जोखिम के समय की तैयारियों एवं आपदा प्रबंधन को लेकर बहुत सतर्क रहना पड़ता है।
इस भव्य बावड़ी की संरचना, इतिहास और कलाकृति को देखते हुये वर्ष 2014 में इसे यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर स्थल की सूची में शामिल किया गया था। यूनेस्को ने इस बावड़ी को भारत में स्थित सभी बावड़ियों की रानी के खिताब से नवाजा है।
साल 2016 में देश की राजधानी दिल्ली में हुई इंडियन सेनीटेशन कॉन्फ्रेंस में इस वाबड़ी को ‘क्लीनेस्ट आइकोनिक प्लेस’ के पुरस्कार से नवाजा गया था।
2016 के भारतीय स्वच्छता सम्मेलन में रानी की वाव को भारत का “सबसे स्वच्छ प्रतिष्ठित स्थान” कहा गया था।


रानी की वाव 64 मीटर लंबी, 20 मीटर चौड़ी व 27 मीटर गहरी है। ये वाव मारू-गुर्जर शैली की स्टाइल में बनी है, जो अच्छे प्रपोशन, डिटेल्स, टेक्नीक, और खूबसूरती के लिए फेमस है।


इसका आकार मंदिर से उल्टा है, यानी डोम नीचे से ऊपर की ओर है। इसमें नीचे से ऊपर की और 7 सीढियों की लेयर हैं। हर लेयर में बहुत हाई क्वालिटी की आर्टिस्टिक कलाकृतियों बनी हैं।


500 से ज्यादा बड़े और हजार से भी ज्यादा छोटे स्कल्पचर हैं, जो सभी धर्मों और माइथोलॉजी को दर्शाते हैं।


वाव के आखिरी में एक टैंक है जिसमें पानी जमा किया जाता था। ये सात मंजिला बिल्डिंग थी, अब 5 मंजिल ही सुरक्षित हैं।


दुनिया भर से लोग आते हैं देखने

रानी की वाव का निर्माण 11वीं सदी में सोलंकी शासक राजा भीमदेव की याद में उनकी पत्नी रानी उदयमती ने करवाया था।
माना जाता है कि बावड़ी में बने सुरंग का यूज युद्ध के दौरान राजा और उनकी फैमिली को सुरक्षित निकालने के लिए किया जाता था।
30 किलोमीटर लंबी इस रहस्यमयी सुरंग का दूसरा छोर पाटण के सिद्धपुर में खुलता है।

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