Riyaz Session, Raag Marva swar abhyas and Raag Madhuwanti bandish....

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स्वर संकेतन
स्वरस पंचम वर्ज्य। ऋषभ कोमल, मध्यम तेजरा। शेष सभी शुद्ध स्वर।
जाति शाधव - शाधव
थाट मारवा
वादी/संवादी ऋषभ/धैवत
समय आज का चौथा प्रहर : दिन का चतुर्थ प्रहर
विश्रान्ति स्थान आर; डी; - डी; आर;
मुखिया-अंग एस ; , एन , डी एस , एन आर ; आर जीएमडी; डीएमजी आर; , एन, डी आर एस;
आरोह-अवरोह एस, डी, एन आर जीएमडीएन एस '- एस' एनडीएमजी आर एस; , एन, डीएस, एन आर एस;
राग का वर्णन: यह बहुत ही मधुर राग है। इस राग में ऋषभ और धैवट क्रमशः वादी और संवादी स्वर माने जाते हैं और इसलिए इन स्वरों पर अत्यधिक बल दिया जाता है और इन्हें न्यास स्वर के रूप में प्रयोग किया जाता है। राग पुरिया राग मारवा के समान है। लेकिन राग पुरिया में गंधार और निषाद पर अधिक बल दिया गया है। इस राग में आरोह-अवरोह में षडज ( स ) का लंघन तथा गांधार और निषाद के अल्पपत्वा का प्रचलन है।Aroha and Avaroha
Arohana: 'Ni Re Ga Ma Dha Ni Re' S'

Keeping the key in C, in the Western scale this would roughly translate to: B D♭ E F♯ A B D♭ C

Avarohana: Re' Ni Dha Ma Ga Re 'Ni 'Dha Sa

The Ma is actually Ma Tivratara, which is a perfect fourth above Re komal (which is 112 cents above Sa)[1])

Vadi and Samvadi
The Vadi is komal Re, while the Samvadi is shuddh Dha. Notice that these do not form a perfect interval. So V.N.Paṭvardhan [2] says "It is customary to give Re and Dha as vādi and saṃvādi, but seen from the point of view of the śāstras (treatises) it is not possible for re and Dha to be saṃvādī (i.e. consonant) to each other. For this reason, in our opinion it is proper to accept Dha as vādī and Ga as saṃvādī" [3] On the other hand if Ga receives too much emphasis, it would create the impression of raga Puriya[4]

Pakad or Chalan
Sa is omitted within a taan; it may only be used at the end of a phrase and even then is used infrequently. Bhatkhande gives the pakad as Dha Ma Ga Re, Ga Ma Ga, Re, Sa. Patwardan has shown the mukhya ang as Re Ga Ma Dha, Dha Ma Ga Re, but points out that the raga is also clearly indicated by: 'Ni Re Ga Ma Dha, Dha Ma Ga Re 'Ni Re Sa.[5]

The chalan given by Ruckert is: 'Ni 'Dha Re 'Ni 'Dha 'Ma 'Ni 'Dha 'Ni 'Dha Sa Re Ga Ma Dha Ma Ni Dha Ma Ga Re Sa 'Ni 'Dha Re Sa
राग मारवा माधुर्य से परिपूर्ण राग है। इस राग में रिषभ और धैवत प्रमुख स्वर हैं। जिस पर बार बार ठहराव किया जाता है, जिससे राग मारवा स्पष्ट होता है। इस राग का विस्तार क्षेत्र सीमित है। राग पूरिया इसका सम प्राकृतिक राग है। परंतु राग पूरिया में गंधार और निषाद पर ज्यादा न्यास किया जाता है। इस राग का विस्तार मध्य सप्तक में ज्यादा किया जाता है। इस राग को गाने से वैराग्य भावना उत्पन्न होती है।

यह स्वर संगतियाँ राग मारवा का रूप दर्शाती हैं - सा ; ,नि ,ध ,नि रे१ ; ग म् ध ; म् ग रे१ ; ,नि ,ध रे१ सा ; म् ध ; ध नि रे१' नि ध ; म् ध ; म् ग रे१ ; ग रे१ ,नि ,ध रे१ सा ;
थाट- मारवा
जाति- षाडव-षाडव
वादी- कोमल ऋषभ (रे)
संवादी- धैवत (ध)
गायन समय- दिन का चतुर्थ प्रहर
विकृत स्वर- कोमल रे , तीव्र म
वर्ज्य स्वर- पंचम(प)

आरोह :- .नि रे, ग म ध, नि रें सां |
अवरोह :- रें नि ध, म ग रे, ग म ग रे सा |
पकड़ :- ध म ग रे, ग म ग, रे सा |

राग मारवा विशेषता
1- राग मारवा अपने ही थाट का आश्रय राग है, क्युकी इसी राग के आधार पर इसके थाट का नाम रक्खा गया है |
2- इस राग में रे को al और म तीव्र लगाया जाता है और पंचम अर्थात ” प ” इस राग में नही लगाया जाता है |
3- इस राग में मींड का काम अधिक होता है |
4- राग मारवा में आरोह करते समय हमेशा षडज अर्थात “सा” स्वर का कम प्रयोह होता है क्युकी इस राग में आरोह में ”सा” दुर्बल है |

Raag marwa Swar Vistar
सा, .नि रे s .नि .ध .नि रे ग रे s सा, .नि रे ग म’ ध, ध s , म’ ध s म’ ग रे म’ ध s म’ ध,

नि रें नि ध s नि रें गं रें नि ध, म’ ध सां (सां) रें रें नि ध नि नि ध म’ ध s म’ ग रे, रे ध s

म’ ग रे ग रे, .नि रे सा |

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