प्रगतिवादी काव्य धारा की प्रमुख विशेषताएँ/प्रवृत्तियां||प्रगतिवाद के प्रमुख कवि एवं उनकी रचनाऐं||

Описание к видео प्रगतिवादी काव्य धारा की प्रमुख विशेषताएँ/प्रवृत्तियां||प्रगतिवाद के प्रमुख कवि एवं उनकी रचनाऐं||

प्रगतिवाद:-

हिंदी साहित्य में 1936 ई० से 1943 ई० के बीच के काल को प्रगतिवाद के नाम से जाना जाता है। हिन्दी में प्रगतिवाद का आरंभ 'प्रगतिशील लेखक संघ' द्वारा 1936 ई० में लखनऊ में आयोजित उस अधिवेशन से होता है जिसकी अध्यक्षता प्रेमचंद ने की थी। इसमें उन्होंने कहा था, "साहित्य का उद्देश्य दबे-कुचले हुए वर्ग की मुक्ति का होना चाहिए।"
प्रगतिवाद वास्तव में छायावाद की प्रतिक्रिया है। छायावाद जहां कल्पना पर बल देता था वही प्रगतिवाद यथार्थ का चित्रण करता है। संक्षेप में यह कहा जा सकता है कि राजनीति के क्षेत्र में जो साम्यवाद है,सामाजिक क्षेत्र वह समाजवाद, दर्शन के क्षेत्र में द्वंद्वात्मक भौतिकवाद और साहित्य के क्षेत्र में वह प्रगतिवाद है।

प्रगतिवाद की प्रमुख प्रवृत्तियां/विशेषताएं:-
1️⃣ शोषकों के प्रति घृणा
2️⃣ शोषितों का करुण गान
3️⃣ क्रांति की भावना
4️⃣ सामाजिक जीवन का चित्रण
5️⃣ रूढ़ियों का विरोध
6️⃣ नारी चित्रण
7️⃣ मानवतावाद
8️⃣ विश्व समस्याओं का चित्रण

प्रगतिवाद के प्रमुख कवि और उनकी रचनाएं:-
के बारे मे जानकारी दी गई हैं।

Комментарии

Информация по комментариям в разработке