Anjum Rahbar Lucknow 13_Feb_1986 (Classic Mushayra)

Описание к видео Anjum Rahbar Lucknow 13_Feb_1986 (Classic Mushayra)

دل میں سلگی ہوئی غم کی آگ اشک آنکھوں سے ڈھلتے ہوئے
ہم نے دیکھا ہے برسات میں اک مکاں آج جلتے ہوئے

दिल में सुलगी हुई ग़म की आग अश्क आंखों में ढलते हुए
हम ने देखा है बरसात में एक मकां आज जलते हुए

خوف آتا ہے یہ سوچ کر اپنے گھر سے نکلتے ہوئے
آج کل دیر لگتی نہیں شہر کی رُت بدلتے ہوئے

ख़ौफ़ आता है ये सोच कर अपने घर से निकलते हुए
आज कल देर लगती नहीं शहर की रुत बदलते हुए

اپنی شُہرت کے انجام کا مجھ کو احساس ہونے لگا
شام وقت دیکها ہے جب میں نے سورج ڈھلتے ہوئے

अपनी शोहरत के अंजाम का मुझको एहसास होने लगा
शाम के वक़्त देखा है जब मैंने सूरज को ढलते हुए
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ملنا تھا اتفاق بچھڑنا نصيب تھا
وہ اِتنی دور ہوگیا جتنا قریب تھا

मिलना था इत्तेफ़ाक़ बिछड़ना नसीब था
वो इतनी दूर हो गया जितना क़रीब था

میں اس کو دیکھنے کو ترستی ہی رہ گئی
جس شخص کی ہتھیلی میں میرا نصيب تھا

मैं उसको देखने को तरसती ही रह गयी
जिस शख़्स की हथेली में मेरा नसीब था

بستی کے سارے لوگ ہی آتش پرست تھے
گھر جل رہا تھا اور سمندر قریب تھا

बस्ती के सारे लोग ही आतिश परस्त थे
घर जल रहा था और समंदर क़रीब था

مریم کہاں تلاش کرے اپنے خون کو
ہر شخص کے گلے میں نشانِ صلیب تھا

मरयम कहां तलाश करे अपने ख़ून को
हर शख़्स के गले में निशान ए सलीब था

دفنا دیا گیا مجھے چاندی کی قبر میں
میں جس کو چاہتی تھی وہ لڑکا غریب تھا

दफ़ना दिया गया मुझे चांदी की क़ब्र में
मैं जिसको चाहती थी वो लड़का ग़रीब था

انجؔم میں جیت کر بھی یہی سوچتی رہی
جو ہار کر گیا ہے بہت خوش نصيب تھا

انجؔم رہبر
अंजुम मैं जीत कर भी यही सोचती रही
जो हार कर गया है बहुत ख़ुशीनसीब था

अंजुम रहबर

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