Anjum rahbar best mushaira 1991

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lets know with Muin

मिलना था इत्तिफ़ाक़ बिछड़ना नसीब था 
वो उतनी दूर हो गया जितना क़रीब था 

मैं उस को देखने को तरसती ही रह गई 
जिस शख़्स की हथेली पे मेरा नसीब था 

बस्ती के सारे लोग ही आतिश-परस्त थे 
घर जल रहा था और समुंदर क़रीब था 

मरियम कहाँ तलाश करे अपने ख़ून को 
हर शख़्स के गले में निशान-ए-सलीब था 

दफ़ना दिया गया मुझे चाँदी की क़ब्र में 
मैं जिस को चाहती थी वो लड़का ग़रीब था 

अंजुम रहबर

उम्मीद करता हूँ ये ग़ज़ल आपको अच्छी लगी होगी

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