Class 20 - तत्त्वार्थ सूत्र | प्रमाण और नय से क्या होता है? |

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Class 20 - तत्त्वार्थ सूत्र | TatvarthSutra With Graphic Animation | #मुनिश्री108प्रणम्यसागरजीमहाराज
ओं अर्हं नमः
आज की कक्षा का एक quick revision कर लेते हैं

आज हमने जाना कि ज्ञान का फल कथंचित भेद रूप है और कथंचित अभेद रूप
कारण विपर्यास और भेदाभेद विपर्यास के बाद तीसरा विपर्यास है -
स्वरूप विपर्यास अर्थात वस्तु के स्वरूप के विषय में विपरीत मान्यता
जैसे विज्ञान अद्वैतवाद का मानना है कि ज्ञेय कुछ भी नहीं है, ज्ञान ही सब कुछ है
किन्तु ज्ञान बिना ज्ञेय के नहीं होता
अद्वैत का मतलब है कि दो नहीं है, एक ही चीज है
ऐसे ही ब्रह्म अद्वैतवादी मानते हैं कि एक ब्रह्म ही है; उसके अलावा कुछ नहीं है
ऐसी मिथ्या श्रद्धा के कारण से ये मिथ्या ज्ञान कहलाते हैं


अज्ञान का नाश होने पर ही राग-द्वेष का नाश सम्भव है
जो जीव विपर्यासों के साथ जीते हैं उनके अंदर मिथ्यात्व के कारण से विपरीतता आ जाती है

सूत्र-३३ में हमने नयों के बारे में जाना

प्रथम अध्याय में मोक्षमार्ग बताने के बाद सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञान पर चर्चा हुई
सम्यग्ज्ञान में हमने जाना कि “प्रमाण नयै रधिगम:”
वस्तु को प्रमाण और नय दोनों से जानने से ही अधिगम अर्थात सम्यग्ज्ञान होता है
अतः यह अध्याय हमें ज्ञान को सम्यक् बनाने के लिए सम्यग्दर्शन पर ध्यान देने और तत्त्व निर्णय करने के लिए प्रेरित करता है

हमने जाना पूर्ण वस्तु का ज्ञान प्रमाण कहलाता है
और वस्तु के किसी एक अंश को ग्रहण करके, उसके किसी एक गुण धर्म को जानना नय ज्ञान कहलाता है

पहला नय है ‘नैगम नय’
नैगम अर्थात संकल्प
इसमें अपने मन में संकल्प करके वस्तु में वे संकल्पित गुण मानकर कथन करते हैं

भूत नैगम नय में past में हुई चीजों को वर्तमान में संकल्प करके करते हैं जैसे भगवान महावीर के लिए दीपावली पर मोक्ष लाडू चढ़ाना
भावी नैगम नय में जो भविष्य में होगा उसको पहले से ही कह देते हैं जैसे हम दिल्ली जा रहे हैं जबकि हम अभी तैयार हो रहे थे
वर्तमान नैगम नय में कोई भी वस्तु बन गई है या अधूरी है उसको पूरा मान कर कहना जैसे भात अभी अंगीठी पर है मगर संकल्प के वश से कहना कि यह भात है

हमने समझा कि संग्रह नय में सब वस्तुओं का एक साथ संग्रह करके कहते हैं
जैसे दुनिया में द्रव्य
तो व्यवहार नय में संग्रह में व्यवहार अर्थात भेद करते हैं
जैसे द्रव्य के भेद हैं जीव और अजीव
इसी तरह जीव के भेद हैं संसारी और मुक्त
ऐसे ही जब तक भेद सम्भव हो तब तक व्यवहार नय चलेगा

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