Devprayag Sangam Uttarakhand । देवप्रयाग गंगा के दिव्य दर्शन अलकनदा और - भागीरथी का सबसे पवित्र संगम

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Devprayag Sangam Uttarakhand।
देवप्रयाग गंगा के दिव्य दर्शन अलकनदा और - भागीरथी का सबसे पवित्र संगम।

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आइए! चलें पंच प्रयागों में श्रेष्ठ देवप्रयाग की सैर पर। आज हम देवप्रयाग के सामाजिक, सांस्कृतिक, एतिहासिक एवं पौराणिक स्वरूप से आपका परिचय करा रहे हैं। यह वही स्थान है, जहां अलकनंदा व भागीरथी अपना नाम त्यागकर देवी गंगा के रूप में प्रकट होती हैं।
ऋषिकेश से 72 किमी दूर स्थित देवप्रयाग नगर ने आधुनिक युग में भी अपने पुराने वैभव को नहीं खोया है।
यह उत्तराखण्ड में कुमाऊ हिमालय के केंद्रीय क्षेत्र में टिहरी गढ़वाल ज़िले में स्थित एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थान है।
भारत व नेपाल के 108 दिव्य धार्मिक स्थलों में देवप्रयाग का नाम आदर से लिया जाता है। यहीं अलकनंदा व भागीरथी नदी के संगम पर गंगा का उद्भव होता है। इसी कारण देवप्रयाग को पंच प्रयागों में सबसे अधिक महत्व मिला। 'स्कंद पुराण' के केदारखंड में देवप्रयाग पर 11 अध्याय हैं। कहते हैं कि ब्रह्मा ने यहां कई वर्षों तक भगवान विष्णु की आराधना कर उनसे सुदर्शन चक्र प्राप्त किया। इसीलिए देवप्रयाग को ब्रह्मतीर्थ व सुदर्शन क्षेत्र भी कहा गया। मान्यता यह भी है कि मुनि देव शर्मा के  सेंकड़ों वर्षों तक तप करने के बाद भगवान विष्णु यहां प्रकट हुए। उन्होंने देव शर्मा को त्रेतायुग में देवप्रयाग लौटने का वचन दिया और रामावतार में देवप्रयाग आकर उसे निभाया भी। कहते हैं कि श्रीराम ने ही मुनि देव शर्मा के नाम पर इस स्थान को देवप्रयाग नाम दिया। देवप्रयाग के पूर्व में धनेश्वर, दक्षिण में तांडेश्वर, पश्चिम में तांतेश्वर व उत्तर में बालेश्वर मंदिर और केंद्र में आदि विश्वेश्वर मंदिर स्थित हैं। 
यह समुद्र की सतह से 830 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। इसका सबसे निकटतम शहर ऋषिकेश है।

कथा

दोनों ओर ऊँचे पहाड़ों से घिरा यह संगम भगवान श्रीराम की हज़ारों साल पुरानी स्मृतियों को आज भी अपने में समेटे हुए है। कथा है कि जब लंका विजय कर राम लौटे तो जहां राक्षसी शक्ति के संहार का यश उनके साथ जुड़ा था, वहीं रावण वध के बाद ब्राह्मण हत्या का प्रायश्चित दोष भी उन्हें लगा। ऋषि-मुनियों ने उन्हें सुझाया कि देवप्रयाग में भागीरथी और अलकनंदा के संगम तट पर तपस्या करने से ही उन्हें ब्राह्मण हत्या के दोष से मुक्ति मिल सकती है। श्रीराम मर्यादा पुरुषोत्तम थे। वे ब्राह्मण हत्या का कलंक लेकर कैसे जी सकते थे। इसलिए उन्होंने ऋषि-मुनियों का आदेश शिरोधार्य कर इस स्थान को अपनी साधना स्थली बनाया और यहीं एक शिला पर बैठकर दीर्घ अवधि तक तप किया।
जब राजा भगीरथ ने गंगा को पृथ्वी पर उतरने को राजी कर लिया तो 33 करोड़ देवी-देवता भी गंगा के साथ स्वर्ग से उतरे। तब उन्होंने अपना आवास देवप्रयाग में बनाया, जो गंगा की जन्म भूमि है। गढ़वाल क्षेत्र मे मान्यता अनुसार भगीरथी नदी को 'सास' तथा अलकनंदा नदी को 'बहू' का दर्जा दिया है

देवप्रयाग पहुंचने के लिए उत्तराखण्ड परिवहन की बस सेवा ली जा सकती है। साथ ही यात्री अपनी निजी गाड़ी से भी यहाँ पहुंच सकते हैं। इसका निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश है और निकटतम हवाई अड्डा जौली ग्रांट है, जो देहरादून में स्थित हैं। देश की राजधानी दिल्ली से इस स्थान की दूरी लगभग 275 किलोमीटर है।












































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