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Скачать или смотреть 1224)गीता प्रणीत कर्मयोग | Hindi | Arvind P Patil

  • Kadsiddha Maharaj Bodhamrut!
  • 2025-09-01
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1224)गीता प्रणीत कर्मयोग |  Hindi |  Arvind P Patil
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Описание к видео 1224)गीता प्रणीत कर्मयोग | Hindi | Arvind P Patil

🕉👏श्री सद्गुरुकृपा -(प्र. १२२४ दि. १/९/२५ ) योगेश्वर भगवान गीता में अर्जुन को कर्मयोग का प्रबोधन करते हैं । इस प्रवचन में हम कुछ महत्वपूर्ण बातें समझ लेंगे ।
एक कर्म और दूसरा योग- नित्य नैमित्तिक कर्म-
योग याने प्रवृत्ति कैसी है- योग्य कृति- स्वधर्मके अनुसार कृती होनी चाहिए- भगवान अर्जुन को बताते हैं, तुम क्षत्रिय हो इसलिए युद्ध करना यह तुम्हारा स्वधर्म है- जब हम पंच महायज्ञ करते है तब उसमे, देवयज्ञ, पितृ यज्ञ, ब्रह्म यज्ञ, मनुष्य यज्ञ तथा भूत यज्ञ आता हैं- समत्वम योग उच्यते- हमारी प्रवृत्ति कैसी होनी चाहिये? भगवान बताते है-
सुखदुःख समे कृत्वा लाभालाभौ जयाजयौ ।
ततो युद्धाय युज्यस्व नैव पापमवाप्स्यसि ॥
हमारी भावना ईश्वरार्पणमस्तु यही होनी चाहिये । इसके बाद जो कुछ प्राप्त होता हैं उसमें प्रसाद भावना होनी चाहिये ।
पत्रं पुष्पं फलं तोयं ये मे भक्त्या प्रयच्छति - भक्ति भाव से भगवान को अर्पित है- ये बातें सद्गुरु काडसिद्ध स्वामी जैसे आत्मज्ञानी महापुरुष के सानिध्य मे जाकर सिखने चहिए ।
मेरे गुरुजीने जो मुझे बताया वही ज्यादासे ज़्यादा लोगों को बतानेका कार्य मै करता हूँ । सद्‌गुरु से जो कुछ मुझे मिलता हैं उसका प्रसाद करके मैं ग्रहण करता हूँ ।
समर्पण भावना और प्रसाद भावना महत्वपूर्ण होती हैं ।
यही बात भगवान अर्जुन को कहते है ।
अहंकार नहीं ममकार नहीं और आसक्ति भी नहीं, ऐसा जीवन हमें जीना चाहिए । इससे कर्मयोग सिद्ध होता हैं । जय
काडसिद्ध । जय काडसिद्ध ॥

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