| Govind Dev Mandir | इस मंदिर के विशालकाय दीपक की चमक देखकर, औरंगजेब ने तुड़वा दी इसकी 4 मंजिलें

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इस मंदिर के विशालकाय दीपक की चमक देखकर, औरंगजेब ने तुड़वा दी इसकी 4 मंजिलें

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स्थानीय इतिहासकारों का मानना है कि भगवान गोविंद देव अर्थात श्रीकृष्ण का यह मंदिर वृंदावन के सबसे पुराने मंदिरों में से एक है। वैष्णव संप्रदाय के इस मंदिर का निर्माण राजा मानसिंह ने सन् 1590 में कराया था। गोविंद देव मंदिर का निर्माण सनातन गुरु और महान कृष्णभक्त श्री कल्याणदास जी की देखरेख में हुआ था। हालाँकि मंदिर निर्माण का पूरा खर्च राजा मानसिंह द्वारा ही उठाया गया था। निर्माण के समय मंदिर 7 मंजिला हुआ करता था और सबसे ऊपरी मंजिला पर एक विशालकाय दीपक का निर्माण कराया गया था और इस दीपक में प्रतिदिन बाती की लौ को जलाए रखने के लिए 50 किलोग्राम से अधिक देसी घी का उपयोग होता था।

यही कारण था मंदिर कई किलोमीटर (किमी) दूर से ही दिखाई देता था। मंदिर के इसी विशालकाय दीपक की चमक इसकी शत्रु साबित हुई। मंदिर के इस दीपक की लौ को देखकर तत्कालीन मुगल आक्रांता औरंगजेब के मन में ईर्ष्या का भाव उत्पन्न हो गया और इस भव्य मंदिर की सुंदरता उसे खटकने लगी। इसी ईर्ष्या और हिंदुओं के प्रति अपनी घृणा के चलते उसने अंततः एक दिन अपनी सेना को इस गोविंद देव मंदिर को तोड़ने का आदेश दे दिया। किसी दैवीय कृपा के कारण मंदिर के पुजारी को औरंगजेब की इस योजना का भान हो गया और उन्होंने मंदिर में स्थापित भगवान गोविंद की पुरातन प्रतिमा को वृंदावन से बहुत दूर, जयपुर भेज दिया, जहाँ उनकी स्थापना कनक बाग में स्थित गोविद देव मंदिर में हुई।

खैर, औरंगजेब अपनी सेना के साथ मंदिर को तोड़ने पहुँचा। मंदिर की भव्यता इतनी थी कि औरंगजेब की सेना 4 मंजिल ही गिरा सकी। इसके बाद औरंगजेब ने मंदिर को खंडित और अपवित्र करने के प्रयास में यहाँ नमाज पढ़ी और शेष बचे मंदिर पर मस्जिद की संरचनाएँ और गुंबद आदि बनवा दिए। हालाँकि 1873 तक मंदिर उसी अवस्था में रहा, जिस अवस्था में औरंगजेब द्वारा इसे छोड़ा गया था लेकिन इसके बाद मंदिर का जीर्णोद्धार प्रारंभ हुआ और मंदिर के साथ छेड़छाड़ करते हुए औरंगजेब ने जो निर्माण किया था, उसे हटा दिया गया और मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया। मंदिर 200 फुट लंबा और 120 फुट चौड़ा था। साथ ही मंदिर की ऊँचाई 110 फुट थी।

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