3/24 | योग: काल और महाकाल | Indian_Civilization | Yoga: Time & Beyond

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वेद कहता है पिंड में ब्रह्मांड है. इसलिए, शरीर पर ध्यान करके, व्यक्ति ब्रह्मांड का ज्ञान प्राप्त कर सकता है।
यह कल्पना करना कठिन है कि प्राचीन भारतीयों ने पृथ्वी की आयु की गणना कैसे की? ब्रह्मांड में, जो यहां दिखाई देता है वह वास्तव में वहां नहीं हो रहा है। योग में चेतना की स्वरुप स्थिति काल से परे कही गयी है। पृथ्वी की वैज्ञानिक आयु जितना ब्रह्मा का एक दिन है। प्राचीन भारतीय टाइम डाइलेशन की अवधारणा को जानते थे। आइंस्टीन ने २०वीं शताब्दी में अपने सापेक्षतावाद के सिद्धांत में इस अवधारणा का आविष्कार किया। बलराम और रेवती विवाह और प्राचीन टाइम डाइलेशन की कहानी।

आर्यभट्ट ने महाभारत युद्ध की तिथि 18 फरवरी 3102 ईसा पूर्व बताई थी। संसार का कालचक्र दुख का कारण है। यह अस्तित्व में क्यों आया? ब्रह्मा जी संसार रचने के लिए अपनी पैदा की हुई इच्छा के पीछे दौड़े। संसार की रचना को रोकने के लिए शिव, सृष्टिकर्ता ब्रह्मा को एक तीर से मारना चाहते थे। काल से एक क्षण से चूक हो और काल उत्पन्न हो गया।

ऋग्वेद कहता है, रुद्र ही शिव का उग्र रूप अग्नि है। अग्नि ही संसार की चेतना है। समाधिस्थ शिव, हजारों वर्षों से योग का परिचय देते रहे हैं। शिव हमारी शुद्ध निर्लिप्त चेतना हैं। प्राचीन भारतीयों के लिए अर्थ को भौतिक सम्पदा नहीं पुरुषार्थ कहा । पुरुषार्थ पूर्ण होने पर वैराग्य अर्थात संसार से वैराग्य प्रकट होता है। तीव्र वैराग्य में आत्मास्थ हो जाना ही योग है ।

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अध्याय ४ - भारत : क्या है इसका प्राचीन स्वरुप?
   • 4/24 | भारत का प्राचीन स्वरुप? | Indi...  
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संक्षिप्त विवरण ---
वृत्तचित्रों की शृंखला : भारतीय सभ्यता : सातत्य और परिवर्तन

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इस वृत्तचित्र का उदेश्य भारत के ज्ञान - विज्ञान, कलाओं और जीवन के वैज्ञानिक व आध्यात्मिक महत्व को प्रामाणिक रूप से प्रस्तुत करना है। महारास की भारतीय संस्कृति की यह भव्य प्रस्तुति केवल मंत्रमुग्ध नहीं करती । भविष्य के लिए नई दृष्टि देती है। भारतीयों की प्रकृति श्रद्धा, मानव और पृथ्वी दोनों को उपभोक्तावाद से बचा सकती है। प्रकृति की विविधता और उसकी आन्तरिक एकता, मानव की भी वास्तविकता है। विविधता का उत्सव मनाती महारास की भारतीय संस्कृति हज़ारों वषों तक जीवन को सत्य,समृद्धि और सौन्दर्य से तृप्त करती रही है। यह फिल्म श्रृंखला इसे भारतीय दर्शन, प्राचीन स्थापत्य व लोक कलाओं से दर्शाती है।
पश्चिम के आक्रमणकारी भारत की देव विविधता और कलाओं के प्रति घृणा से भरे हुए थे। उनके आक्रमण युद्घ नहीं थे क्रूर हत्याकांड थे। उन्होंने विश्वविद्यालयों को जलाकर भारत के ज्ञान - विज्ञान की निरन्तरता को अवरुद्ध कर दिया।
भारत का मध्यकालीन विनाश और उपनिवेशिक शोषण मानवता की बहुत बड़ी हानि है। भारतीयों के स्वस्थ जीवन का आधार उनकी समग्र दृष्टी रही है।
अखण्ड दृष्टि का पुननिर्माण कठिन है। लेकिन अपनी सभ्यता के पुननिर्माण की अदम्य इच्छा भारतीयों के मन में आज भी है। भारतीय आज भी प्राचीन सभ्यता के उच्च स्वरुप को बनाए रखना चाहते हैं। इस फिल्म का निर्माण उसी इच्छा का परिणाम है।

विशेष :
- १० वर्षों का अनुसंधान और फिल्मांकन
- १४१ भारतीय स्थल, संग्रहालय और पुस्तकालय
- ५२ विदेशी स्थल और संग्रहालय
- ३० उच्चकोटि के विद्वानों का योगदान - इतिहास, दर्शन, पुरातत्व, संस्कृत, कला, मस्तिष्क विज्ञान , योग आदि क्षेत्र से।
भारत की अदभुत मूर्तिकला, नृत्य, संगीत, चित्रकला, मंदिर स्थापत्य ज्ञान और आनन्द को पैदा करने वाला है यह वृत्तचित्र।

प्रस्तुतकर्ता : श्रीमती सूरज एवं श्री वल्लभ भंशाली
शोध और निर्देशन : डॉ दीपिका कोठारी एवं रामजी ओम
विद्वान : प्रो मिनाक्षी जैन, डा. कोनराड एल्स्ट, प्रो. मक्खन लाल
निर्माता : विशुद्धि फिल्म्स एवं देश अपनाएं सहयोग फाउंडेशन
लेखन एवं फिल्मांकन: रामजी ओम
संकलन : संतोष राउत
पार्श्व संगीत : टूटन बी रॉय
website : www.vishuddhifilms.com

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00:00 मानव और पौधों में एक चेतना का प्रकाश है।
01:46 भारतीयों द्वारा पृथ्वी की आयु और काल गणना
06:34 महाभारत युद्ध की तिथि और कालचक्र
08:48 सृजनकर्ता ब्रह्मा, आदियोगी और योग
12:22 भारत पुरुषार्थ की कर्मभूमि

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