Live Riyaz Session with guruji Sanjay dewale Raag Bairagi Bhirava (18/08/2024)

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🌹SWAR Sanskar
🙏🌹🇮🇳Sanjay Devle

राग बैरागी भैरव, जिसे बैरागी के नाम से भी जाना जाता है, एक हिंदुस्तानी शास्त्रीय राग है जो भैरव थाट से संबंधित है। इसकी शांतता और ध्यान की गुणवत्ता इसकी विशेषता है, जो इसे सुबह के प्रदर्शन के लिए उपयुक्त बनाती है, आमतौर पर सुबह 6 बजे से 9 बजे के ब

#संरचना और विशेषताएँ

**वह**:भैरव
**जाति**: औडव (अर्थात् यह आरोही और अवरोही दोनों पैमानों में पाँच स्वरों का उपयोग करता है)
**आरोहण (आरोही स्केल)**: सा, कोमल रे, मा, पा, कोमल नी, सा'
**अवरोहण (घटता पैमाना)**: सा', कोमल नी, पा, मा, कोमल रे, सा
**वादी (सबसे महत्वपूर्ण नोट)**: मध्यम (मा)
**समावदी (दूसरा सबसे महत्वपूर्ण नोट)**: षडज (सा)

राग का पकड़ या विशिष्ट वाक्यांश "नी रे मा पा, नी पा नी, नी मा रे नी रे सा" है, जो प्रदर्शन के दौरान राग की पहचान करने में मदद करता है[3]।

#मनोदशा और उपयोग

राग बैरागी भैरव अपनी शांत और भक्तिपूर्ण मनोदशा के लिए जाना जाता है, जो अक्सर शांति और आत्मनिरीक्षण की भावना पैदा करता है। यह आमतौर पर भक्ति संगीत में उपयोग किया जाता है और इसे आध्यात्मिक और दैवीय गुणवत्ता वाला माना जाता है। कोमल (मुलायम) रे और कोमल नी का उपयोग इसे एक विशिष्ट और सुखदायक ध्वनि देता है

#mकर्नाटक और पश्चिमी समकक्ष

कर्नाटक संगीत में राग बैरागी भैरव का समकक्ष राग रेवती है। पश्चिमी संगीत में बैरागी भैरव के समान पैमाना इनसेन पैमाना है

सांस्कृतिक महत्व

राग बैरागी भैरव पारंपरिक गुरु-शिष्य (शिक्षक-छात्र) परंपरा में गहराई से निहित है और इसे अक्सर भारतीय शास्त्रीय संगीत में मूलभूत प्रदर्शनों के हिस्से के रूप में सिखाया जाता है। इसकी सादगी और गहराई इसे शुरुआती और अनुभवी कलाकारों दोनों के लिए पसंदीदा बनाती है, जो सुधार और अभिव्यक्ति के लिए एक समृद्ध कैनवास प्रदान करती है।

कुल मिलाकर, राग बैरागी भैरव भारतीय शास्त्रीय संगीत परंपरा का एक सर्वोत्कृष्ट हिस्सा है, जो शांति और भक्ति की गहरी भावना व्यक्त करने की क्षमता के लिए मनाया जाता है।

#बैरागी भैरव #इंडियनक्लासिकलम्यूजिक #राग #मॉर्निंगराग #भक्तिम्यूजिक #मेडिटेशनलम्यूजिक #हिंदुस्तानीक्लासिकल
साभार राजेन्द्र पारीख जी .
Bairagi (raga), also known as Bairagi bhairav, is a Hindustani classical raga.

Thaat: Bhairav

Jati: Audav

Aaroh: sa, komal re, ma, pa, komal ni sa*

Avroh: sa*, komal ni, pa, ma, komal re, sa

Pakad: ni re ma pa, ni pa ni, ni ma re ni re sa

Vadi: ma

Samvadi: Sa

Bairagi (raga)
Thaat Bhairav
Time of day 6AM – 9AM
Arohana Sa re ma Pa ni Sa‘
Avarohana Sa‘ni Pa ma re Sa
Pakad m-P-n-P-m-r;‘n r S
Vadi Madhyam (ma)
Samavadi Shadj (Sa)
Synonym Bairagi Bhairav
Bairagi (raga)
Thaat Bhairav
Time of day 6AM – 9AM
Arohana Sa re ma Pa ni Sa‘
Avarohana Sa‘ni Pa ma re Sa
Pakad m-P-n-P-m-r;‘n r S
Vadi Madhyam (ma)
Samavadi Shadj (Sa)
Synonym Bairagi Bhairav


Raag Description: This Raag is said to be introduced by Pt. Ravi Shankar. It is a very melodious Raag and appropriate for devotional songs. This Raag is very simple in its framework and discipline so artists have full liberty to sing in all the three octaves. This Raag belongs to Bhairav Thaat. Following are the illustrative combinations:

राग भैरव प्रभात बेला का प्रसिद्ध राग है। इसका वातावरण भक्ति रस युक्त गांभीर्य से भरा हुआ है। यह भैरव थाट का आश्रय राग है। इस राग में रिषभ और धैवत स्वरों को आंदोलित करके लगाया जाता है जैसे - सा रे१ ग म रे१ रे१ सा। इसमें मध्यम से मींड द्वारा गंधार को स्पर्श करते हुए रिषभ पर आंदोलन करते हुए रुकते हैं। इसी तरह ग म ध१ ध१ प में निषाद को स्पर्श करते हुए धैवत पर आंदोलन किया जाता है। इस राग में गंधार और निषाद का प्रमाण अवरोह में अल्प है। इसके आरोह में कभी कभी पंचम को लांघकर मध्यम से धैवत पर आते हैं जैसे - ग म ध१ ध१ प।

इस राग में पंचम को अधिक बढ़ा कर गाने से राग रामकली का किंचित आभास होता है इसी तरह मध्यम पर अधिक ठहराव राग जोगिया का आभास कराता है। भैरव के समप्रकृतिक राग कालिंगड़ा व रामकली हैं।

करुण रस से भरपूर राग भैरव की प्रकृति गंभीर है। इस राग का विस्तार तीनों सप्तकों में किया जाता है। इस राग में ध्रुवपद, ख्याल, तराने आदि गाये जाते हैं। इस राग के और भी प्रकार प्रचलित हैं यथा - प्रभात भैरव, अहीर भैरव, शिवमत भैरव आदि। यह स्वर संगतियाँ राग भैरव का रूप दर्शाती हैं -

भैरव राग राग भैरव थाट का राग है। यह राग भैरव थाट के नाम जैसे होने से इसे भैरव थाट का आश्रय राग कहा जाता है। इस राग में सात स्वर लगते हैं, इसलिये इसकी जाति सम्पूर्ण (सम्पूर्ण-सम्पूर्ण) मानी जाती है। इस राग में रे और ध स्वर कोमल लगते हैं जिसे इस प्रकार दर्शाया जाता है

1) कोमल रिषभ :- रे , 2)कोमल धैवत:-ध । इस राग का वादी स्वर "ध" और सम्वादी स्वर "रे" है, इसी कारण यह उत्तरांंगवादी राग कहलाता हैं । इस राग को गाने बजाने का समय प्रातःकालीन संधि प्रकाश(सुबह 4 से 7 बजे तक) है।

आरोह:- सा रे ग म प ध नी सां।

अवरोह:- सां नी ध प म ग रे सा।

पकड़:- ग म ध ध प, ग म रे रे सा।

चलन: - सा ग म प ध ध प, म ग म रे सा
राग बैरागी हा भारतीय शास्त्रीय संगीतातील एक राग आहे.

बैरागी
राग बैरागी को पंडित रवि शंकर जी ने प्रचलित किया है। यह बहुत ही कर्णप्रिय राग है और भक्ति रस से परिपूर्ण है। इस राग में किसी भी तरह का बन्धन नही है, इसलिये यह तीनों सप्तकों में उन्मुक्त रूप से गाया जा सकता है। यह राग भैरव थाट के अंतर्गत आता है। यह स्वर संगतियाँ राग बैरागी का रूप दर्शाती हैं -

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