क्या जाने किन लबों पर ,कल मेरी दास्ताँ हो | Krishan Bihari 'Noor'| शेरोअदब का "नूर’’ | Urdu Poetry |

Описание к видео क्या जाने किन लबों पर ,कल मेरी दास्ताँ हो | Krishan Bihari 'Noor'| शेरोअदब का "नूर’’ | Urdu Poetry |

Channel- Sunil Batta Films
Documentary- Krishan Bihari 'Noor'
Produced & Directed by Sunil Batta, Voice- Navneet Mishra, Music- Anjani Tiwari & Krishan Swaroop, Camera-Chandreshwar Singh Shanti, Singer- Anjani Tiwari, Script- Yogesh Praveen, Production- Dhruv Prakesh, Camera Asst.- Runak Pal, Kuldeep Shukla.

Synopsis-
21वीं सदी की ग़ज़ल के नये अंदाज में कृष्ण बिहारी नूर के शायराना कमाल हमेशा पुरनूर होते रहेंगे। ‘‘जनाबे कृष्ण बिहारी नूर’’ ने अपने कलम से सफरनामा लिखा तो उसकी शुरूआत इस तरह की है -
मुझसे ही आज सुन लो
मेरे तमाम दुख सुख
क्या जाने किन लबों पर
कल मेरी दास्ताँ हो
शेरो अदब का ये पुरनूर नक्षत्र रकाबगंज लखनऊ में मुहल्ला गौस नगर में 8 नवम्बर सन् 1925 को श्री कुंज बिहारी श्रीवास्तव जी के आंगन में उदीयमान हुआ। कृष्ण बिहारी अमीनाबाद इण्टर कालेज के स्टूडेण्ट थे। उम्र महज 16 साल की थी जब उन्होंने अदब की राह को देखा, जिन्दगी की एक सच्ची राह, जिसकी इज्जत में शेर है-
रास्तों पे चलने वाला फिर कहीं अटका नहीं
कोई राह रो आज तक इस राह पे भटका नहीं
नूर साहब का मानना था कि कविता कविता होती है, छन्द हो ग़ज़ल हो, पोएम हो उसकी आत्मा एक होती उसे वो अलग-अलग नहीं मानते थे। पानी पानी ही रहता है उसे चाहे जिस नाम से पुकारा जाये।
योरोपियन पोएट्री में किसी प्रेमी की मद भरी निराशा योरोपियन काव्य की जान रही है लेकिन हिन्दुस्तान के पास उस गम को खुशी में बदलने के हजार नुस्खे है जिस तरह मीरा का हलाहल और नूर साहब की शायरी में भी वही वही लबरेज है -
काश ऐसा तालमेल
सुकूतो सदा में हो
उसको पुकारूँ मैं
तो उसी को सुनाई दे।




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