बासी भात में खुदा का साझा

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मुंशी प्रेमचंद ने इस कहानी में दीनानाथ, उसके मन में उठते पछतावे और खुद को सही ठहराने की उधेड़बुन को दर्शाया गया है। यह कहानी उसके द्वारा किए गए एक गलत काम के बाद के मानसिक संघर्ष और विचारों की गहराई को समझने का प्रयास करती है।दीनानाथ ने एक ऐसा काम किया, जिसे वह सही मानता था, लेकिन समय के साथ उसके मन में इस निर्णय पर संशय उठने लगा। उसे अपनी गलती का अहसास होने लगा और मन में पछतावे की आग सुलगने लगी। कभी वह सोचता कि उसने जो किया, वो हालातों के हिसाब से सही था, लेकिन फिर उसका अंतर्मन उसे बार-बार यह एहसास कराता कि शायद वह रास्ता गलत था।वह स्वयं को सही साबित करने के लिए कई तर्क देने की कोशिश करता, मगर हर तर्क उसे पहले से ज्यादा उलझा देता। यह उधेड़बुन उसे चैन से जीने नहीं देती। मन का बोझ और पछतावे की भावना उसे घेर लेती है, और वह इस अनसुलझे सवाल से जूझता रहता है कि क्या उसका निर्णय वास्तव में सही था या वह एक गलती थी?

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