एक सुनहरी सुबह, कैलाश पर्वत की चोटी पर सूरज की पहली किरणें बर्फ़ीले पत्थरों पर नाच रही थीं। शिवोहम, एक छोटा-सा नटखट बच्चा, भोलेनाथ के ध्यानवान मुद्रा में बैठे शरीर के पास पहुँचा। उसकी आँखें चमकती त्रिशूल पर टिक गईं। "अरे वाह! ये त्रिशूल तो मेरे खिलौने वाले लाइटसेवर से भी ज़्यादा चमकदार है!" वह उछलकर त्रिशूल की ओर बढ़ा, पर उसका हाथ पहुँचने से पहले ही भोलेनाथ की आँखें खुल गईं। "संभल कर, शिवोहम! यह त्रिशूल खिलौना नहीं, समुद्र मंथन का साक्षी है," उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, पर शिवोहम ने ज़िद पकड़ ली।
भोलेनाथ ने त्रिशूल को हल्का कर दिया। शिवोहम ने उसे घुमाया, और जैसे ही त्रिशूल ने हवा को छुआ, ज़मीन पर सुनहरी रेखाएँ बन गईं—एक चमकता हुआ इंद्रधनुष! "देखो, भोलेनाथ! मैंने आकाश को ज़मीन पर उतार दिया!" शिवोहम ने गर्व से कहा। भोलेनाथ ने उसके सिर पर हाथ फेरा, "तुम्हारी कल्पना तो समुद्र से भी गहरी है, बेटा!"
तभी शिवोहम की नज़र भोलेनाथ की जटाओं पर पड़ी, जो हवा में लहरा रही थीं। "ये तो असली जंगल की लताएँ हैं! चलो, इन पर चढ़कर बादलों को छूने का मज़ा लें!" वह जटाओं से लिपट गया और झूलने लगा। भोलेनाथ ने अपनी जटाओं को हिलाया, तो शिवोहम हवा में उछलता हुआ हँसने लगा। "लगता है मैं पक्षी बन गया हूँ!" उसने चिल्लाते हुए कहा।
तभी शिवोहम की नज़र शिव के माथे पर सजे चाँद पर टिकी। "ये गोल-गोल चीज़ क्या है? लगता है कोई जादुई फुटबॉल!" उसने चाँद को छूने की कोशिश की। भोलेनाथ ने उसे गोद में बैठाते हुए कहा, "यह चंद्रमा है, शिवोहम। यह अमृत का प्रतीक है, पर आज तुम्हारा खिलौना बनेगा!"
शिवोहम ने चाँद को ज़मीन पर रखा और ज़ोर से लात मारी। चाँद हवा में उछला और बादलों के बीच से गुज़रता हुआ आकाश के पार चला गया! "गोल! मैंने तो शनि ग्रह तक मार दिया!" शिवोहम ने खुशी से उछलते हुए कहा। पर चाँद वापस नहीं आया। भोलेनाथ ने गंभीर होते हुए कहा, "चाँद बिना आकाश अधूरा है। चलो, उसे ढूँढ़ने चलते हैं!"
नंदी बैल की पीठ पर सवार होकर वे बादलों के राज्य की ओर चले। रास्ते में उन्हें एक बादल मिला जो रोया जा रहा था। "मेरा रंग गायब हो गया है!" बादल ने सिसकते हुए कहा। शिवोहम ने त्रिशूल से बादल को छुआ, और वह फिर से सफ़ेद हो गया। "धन्यवाद, छोटे जादूगर!" बादल ने खुश होकर उन्हें एक इंद्रधनुषी रास्ता दिखाया।
इंद्रधनुष के अंत में एक विशालकाय बादल का महल था, जहाँ चाँद फँसा हुआ था। महल के द्वार पर एक बादल-दैत्य खड़ा था। "चाँद तुम्हें तभी मिलेगा जब तुम मेरी पहेली सुलझाओगे!" दैत्य ने गुर्राते हुए कहा।
*पहेली:* "बिना पंखों के उड़ता हूँ, बिना मुँह के गाता हूँ। बताओ मैं कौन हूँ?"
शिवोहम ने सोचते हुए कहा, "तुम... हवा हो!"
दैत्य हँसा, "ग़लत! मैं तुम्हारा प्यारा सा चाँद हूँ!" और महल गायब हो गया। चाँद शिवोहम के हाथ में था!
भोलेनाथ ने समझाया, "यह दैत्य नहीं, तुम्हारी ही परछाई थी। डर असली दुश्मन होता है!"
वापसी पर, शिवोहम ने चाँद को शिव के माथे पर वापस रख दिया। "आज का सबसे बड़ा खजाना यही है कि तुमने डर को हराया," भोलेनाथ ने गर्व से कहा।
थककर शिवोहम शिव की गोद में सो गया। भोलेनाथ ने लोरी गाई:
*"सो जाओ छोटे सूरज, सपनों में उड़ो,
कल फिर खेलेंगे, नया राज़ ढूँढ़ो..."*
चाँद ने मुस्कुराकर अपनी चांदनी से शिवोहम को ढक लिया। और कैलाश पर्वत पर फिर शांति छा गई... 🌙✨
*भाग 1: बादलों के राज्य का रहस्य*
शिवोहम और भोलेनाथ नंदी की पीठ पर सवार होकर बादलों के राज्य की ओर बढ़े। रास्ते में उन्हें एक विशालकाय इंद्रधनुषी झरना दिखाई दिया, जिससे नीले, हरे और सुनहरे पानी की धाराएँ बह रही थीं। शिवोहम ने उत्सुक होकर पूछा, "यह झरना किसने बनाया? क्या यहाँ कोई जादूगर रहता है?"
भोलेनाथ ने मुस्कुराते हुए कहा, "यह झरना बादलों के आँसू हैं, जो खुशी में बहते हैं।"
तभी एक छोटा-सा बादल, जिसका नाम मेघू था, उनके सामने आया। मेघू रोया जा रहा था, "मेरी बहन *बादली गायब हो गई है! वह हमेशा गाना गाती थी... क्या आप उसे ढूँढ़ने में मेरी मदद करेंगे?"*
शिवोहम ने तुरंत हामी भर दी, "चलो, भोलेनाथ! हमें बादली को ढूँढ़ना है!"
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*भाग 2: गायब बादली की खोज*
मेघू ने बताया कि बादली को एक रहस्यमय काला बादल उठा ले गया है, जो राज्य के सारे रंग चुरा रहा है। शिवोहम ने त्रिशूल उठाया और बोला, "चलो, उस काले बादल को सबक सिखाते हैं!"
वे एक विशालकाय बादल के महल में पहुँचे, जहाँ काला बादल अंधेरा बैठा था। उसकी आँखें लाल थीं, और वह गुर्राया, "रंगों की ज़रूरत नहीं! सब कुछ काला-सफ़ेद होना चाहिए!"
शिवोहम ने साहस जुटाते हुए कहा, "तुम गलत हो! रंगों के बिना दुनिया उदास हो जाएगी!"
अंधेरा ने एक पहेली दी:
*"मैं न आग हूँ, न पानी,
मुझमें छिपा है अमृत का राज़,
बताओ मैं कौन हूँ?"*
शिवोहम ने सोचते हुए कहा, "तुम... चाँद हो!"
अंधेरा चिल्लाया, "ग़लत! मैं तुम्हारा डर हूँ!" और उसने शिवोहम को एक काली गुफ़ा में धकेल दिया।
*भाग 3: अंधेरे की गुफ़ा और रोशनी का राज़*
गुफ़ा में घुप्प अंधेरा था। शिवोहम ने डरते हुए भोलेनाथ को पुकारा, "मुझे यहाँ से निकालो!"
तभी उसे चाँद की एक किरण दिखाई दी। उसने त्रिशूल से उस किरण को छुआ, और पूरी गुफ़ा रोशनी से भर गई! अंधेरा चीख़ता हुआ गायब हो गया।
बाहर आकर शिवोहम ने देखा कि भोलेनाथ ने अंधेरे को अपने त्रिशूल से बाँध रखा है। "डर तभी तक है जब तक तुम उसका सामना नहीं करते," भोलेनाथ ने समझाया।
मेघू की बहन बादली मुक्त हो गई, और उसने आकाश में इंद्रधनुषी गाना गाया। सारे बादल नाचने लगे!
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