मुस्कुरा के रोये (दिलकश ग़ज़ल) SLOW-PACED

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मुस्कुरा के रोये (दिलकश ग़ज़ल) SLOW-PACED राजा शर्मा जी के द्वारा लिखे इस सुन्दर गीत में वक्ता आज के समाज में प्रचलित कुरीतियों और गलत प्रथाओं का बहुत ही सुन्दर चित्रण प्रस्तुत किया गया है। हम यकीन से कह सकते हैं के ये गीत आपको ज़रूर पसंद आएगा। इस गीत के दो रूप हैं जिनमे से एक में गीत को मंद गति में मंद संगीत के साथ गाया गया है जबकि दूसरे में इसी गीत को तेज़ संगीत के साथ तेज़ गति में गाया गया है। कृपया हमारे वीडियो को लाइक ज़रूर कर दीजियेगा। हो सके तो अपने दोस्तों के साथ सांझा भी कीजियेगा। The video clips used in this video have been provided by https://www.pexels.com/ कभी गम उठाके हंस दिए कभी मुस्कुरा के रोये,कभी हाल दिल किसी को अपना सुना के रोये। क्या जानता है कोई गुज़री जो संग हमारे,हंस दिए वो दिल को लेके हम दिल गँवा के रोये। लाखों ही रंग देखे आते जवानियों पर,फिर जा रहे जो देखे आंसू बहा के रोये। हँसते कभी थे जो औरों के घर जला कर,जब अपना घर जला तो दिल जला के रोये। सीखा जिन्होनें आकर दुनिया पे ज़ुल्म करना,खुद पे जब आयी तो वो बिलबिला के रोये। करते थे जो किसी पर जब अपने साथ बीती,परदे में रहने वाले पर्दा उठा के रोये। दामन जिनका भरा था औरों को लूट करके,अपना समय जो आया तो दामन फैला के रोये। परखा था इश्क को विरहा का ताप दे के,आज़माने वाले मुझको फिर आज़मा के रोये। भगवान् के पुजारी सच सच ये कह रहे हैं,काबे में जाने वाले काबे में जा के रोये। इंसान, कब्र, दिया, इतनी ही ज़िन्दगी है,मूर्ख से वो इंसान ये तीनो भुला के रोये। देखा है मैंने खुद ही इस जहाँ के अंदर,हँसते थे फूलों संग जो कलियाँ खिला के रोये।

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