CGAH3 | रामायण काल व राम वन गमन पथ (छतीसगढ़ का इतिहास) | CG Ancient History By Umang Tutorials | 𝕃𝕀𝕍𝔼

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रामायण काल: छत्तीसगढ़ के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय
कोरिया के छतौड़ा आश्रम सरगुजा का रामगढ़ जशपुर का किलकिला जांजगिर की शिवरी नारायण, कबीर धाम का पचराही गरियाबंद का राजिम धमतरी का सिहावा राजनांदगांव का मानपुर नारायणपुर बस्तर का चित्रकोट बीजापुर का भद्रकाली सुकमा का इंजरम आंध्रप्रदेश का पर्णकुटी और कर्नाटक का किष्किंधा।
चित्रकूट
प्रयाग के बाद भगवान राम मध्यप्रदेश के चित्रकूट पहुंचे थे। यही भरत राजा दशरथ की मृत्यु का समाचार लेकर यहां पहुंचे थे।
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राम वापस चलने को तैयार नहीं हुए तो भरत उनकी चरण पादुका लेकर लौट गए थे। चित्रकूट के वन में अत्रि ऋषि का आश्रम था, जिनके सानिध्य में भगवान राम ने कुछ वक्त बिताया था।

अत्रि ऋषि के आश्रम के बाद दंडकारण्य के घने जंगल शुरू होते थे।

छत्तीसगढ़ के पहले पहुंचे बस्तर वाले क्षेत्र, गुजारे 4 साल

कांकेर- जगदलपुर: मध्य छत्तीसगढ़ में करीब पांच साल बिताने के बाद प्रभु राम कंक ऋषि के आश्रम की ओर बढ़े। वर्तमान में यह इलाका कांकेर कहलाता है। वहां से केशकाल की तराई से गुजरते हुए धनोरा पहुंचे। यहां सैकड़ों राक्षसों का वध करने के बाद नारायणपुर होते हुए छोटे डोंगर पहुंचे। यहां से बारसूर होते हुए चित्रकोट गए। यहां चौमासा बिताने के बाद इंद्रावती नदी के तट पर बसे गांव नारायणपाल गए। यहां से जगदलपुर होते हुए गीदम पहुंचे।

दंतेवाड़ा-सुकमा: गीदम से वे शंखनी और डंकनी नदी के तट पर बसे दंतेवाड़ा पहुंचे। यहां से कांकेर नदी के तट से होते हुए आगे बढ़े और तीरथगढ़ पहुंचे। यहां से कुटुंबसर गए। यहां से आगे बढ़कर सुकमा होते हुए वे रामारम पहुंचे। इसके बाद कोंटा और शबरी नदी के तट से होते हुए इंजरम पहुंचे। यहां से आगे बढ़े तो छत्तीसगढ़ और आंध्रप्रदेश के तटवर्ती इलाके कोलावरम पहुंचे। यहां से आगे बढ़े तो भद्राचलम पहुंचे जो छत्तीसगढ़ में उनका आखिरी पड़ाव था, इसके बाद वे दक्षिणापथ की ओर बढ़ गए।

मध्य छत्तीसगढ़ में बिताए पांच साल

वाल्मीकि आश्रम : चंद्रपुर के बाद राम शिवरीनारायण पहुंचे। यहां चौथा चौमासा बिताया। इसके बाद खरौद फिर वहां से मल्हार गए। यहां से महानदी के तट पर चलते हुए आगे बढ़े और धमनी, नारायणपुर होते हुए तुरतुरिया स्थित वाल्मिकी आश्रम पहुंचे। कछ दिन यहां बिताने के बाद सिरपुर आए। यहां से आरंग होते हुए फिंगेश्वर के मांडव्य आश्रम पहुंचे। इसके बाद चंपारण्य होते हुए कमलक्षेत्र राजिम पहुंचे। यहां से पंचकोशी तीर्थ की यात्रा करते हुए आगे बढ़े और मगरलोड से सिरकट्‌टी आश्रम होते हुए मधुवन पहुंचे। यहां से देवपुर गए। फिर रुद्री और पांडुका होते हुए अमरतारा में अत्रि ऋषि का आश्रम पहुंचे। फिर रुद्री, गंगरेल होते हुए दुधावा होकर देवखुंट और फिर सिहावा पहुंचे।

सिहावा में बीता ज्यादा समय : शोध के नेतृत्वकर्ता डॉ. मन्नूलाल यदु का दावा है कि धमतरी जिले के पास नगरी सिहावा में राम का सबसे ज्यादा समय बीता है। इसके पीछे उनका तर्क है कि सिहावा में रहने वाले ऋषि श्रृंगी दशरथ की दत्तक पुत्री शांता के पति थे। यह स्थान उनके जीजाजी का रहा है। यहां स्थित शांता गुफा इसका प्रमाण है।
प्रवेश द्वार : भगवान राम ने छत्तीसगढ़ में सीतामढ़ी-हरचौका से प्रवेश किया। भरतपुर के पास स्थित यह स्थान मवई नदी के तट पर है। यहां गुफानुमा 17 कक्ष हैं जहां रहकर श्रीराम ने शिव की आराधना की। हरचौका में कुछ समय बिताने के बाद वे मवई नदी से होते रापा नदी पहुंचे। यहां से सीतामढ़ी घाघरा पहुंचे। कुछ दिन यहां रुकने के बाद घाघरा से कोटाडोल पहुंचे। यहां से नेउर नदी तट पर बने छतौड़ा पहुंचे, जहां भगवान राम, माता सीता और लक्ष्मण ने पहला चातुर्मास बिताया।

रामगढ़ : छतौड़ा आश्रम से देवसील होकर रामगढ़ की तलहटी से होते तीनों सोनहट पहुंचे। यहां हसदो नदी का उद्गम होता है। इसके किनारे चलते हुए तीनों अमृतधारा पहुंचे। यहां कुछ दिन रहने के बाद जटाशंकरी गुफा फिर बैकुंठपुर होते पटना-देवगढ़ आए। आगे सूरजपुर में रेणु नदी के तट पर पहुंचे। फिर विश्रामपुर होते अंबिकापुर पहुंचे। पहले सारारोर जलकुंड फिर महानदी तट से चलते हुए ओडगी पहुंचे। यहां सीताबेंगरा और जोगीमारा गुफा में दूसरा चातुर्मास बिताया।

इन ऋषियों से मिले
विश्रवा, शरभंग, वशिष्ठ, मार्कंडेय, सुतीक्ष्ण, दंतोली, रक्सगंडा, वाल्मिकी, लोमस, अत्रि, कंक, श्रृंगी, अंगिरा, गौतम, महरमंडा आदि ऋषियों से मिले। उनसे अस्त्र-शस्त्र लिए। उनसे राजनीति, समाज और अन्य विषयों के गूढ़ रहस्यों की जानकारी भी ली।

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