inherent powers of a civil Court,सिविल न्यायालय की अंतर्निहित शक्ति क्या होती है। अत्यंत महत्वपूर्ण

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In this video ,I am explaining about section 151 CPC
saving of inherent powers of court.
nothing in this code shall we came to limit or otherwise affect the inherent power of the court to make such orders as may be necessary for the ends of justice, or to prevent the abuse of the process of the court.
धारा 151 CPC क्या कहती है।
न्यायालय की अंतर्निहित शक्तियो संबंधी प्रावधान में यह कहा गया है, कि इस संहिता की कोई भी बात के बारे में यह नहीं समझा जाएगा कि वह ऐसे आदेशों की देने की न्यायालय की अंतर्निहित शक्ति को परी सीमित या अन्यथा प्रभावित करती हैं, जो न्याय के उद्देश्यों के लिए या न्यायालय के आदेश का दुरुपयोग निवारण करने के लिए आवश्यक है।
सिविल कानून बनाते समय यह सोचा गया कि भविष्य में कौईभी ऐसी परिस्थितियां बन सकती हैं ,जहां पर सिविल कोर्ट को दी गई शक्तियों के अतिरिक्त भी अन्य शक्तियों का प्रयोग न्यायालय को करना पड़ सकता है। जिनके बारे में कोई स्पष्ट प्रावधान सीपीसी में उल्लेखित नहीं है ,तो ऐसी स्थिति में न्यायालय के आदेश के दुरुपयोग को रोकने एवं न्याय के उद्देश्य की पूर्ति के लिए यह प्रावधान अंतर्गत धारा 151 सीपीसी में रखा गयाहै। धारा 151 सीपीसी न्याय के उद्देश्यो की पूर्ति के लिए एवं न्यायालय के आदेशों को दुरुपयोग को रोकने के लिए बनाई गई है। इसी प्रकार का प्रावधान क्रिमिनल न्यायालय धारा 482 सीआरपीसी में है जिसमें माननीय उच्च न्यायालय धारा 482 सीआरपीसी के अंतर्गत f.i.r. को रद्द कर सकतीहै।
इस प्रकार सीपीसी की धारा 151 ,148से152 सीपीसी तक जब भी न्यायालय की कार्यवाही के लिए न्यायालय मामले में समय बढ़ाता है ,तो न्यायालय को न्याय के उद्देश्य की पूर्ति के लिए शक्ति दी गई है, कि भले ही संहिता में कुछ प्रावधान ना लिखा गया हो , वहां पर भी न्यायालय न्याय के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए दोनों पक्षों के लिए प्रिंसिपल ऑफ इक्विटी के पालन के तहत दोनों पक्षों के साथ अन्याय ना हो, किसी अन्य व्यक्ति के साथ भी अन्याय ना हो, इस बात को देखते हुए न्यायिक उद्देश्य की पूर्ति के लिए तथा न्यायालय कीआदेशिका का दुरुपयोग रोकने के लिए इस प्रावधान का प्रयोग न्यायालय कर सकते हैं।
इस संबंध में मनोहर लाल चोपड़ा विरुद्ध सेठ हीरालाल ए .आई .आर 1962 सुप्रीम कोर्ट 527 एवं स्टेट ऑफ वेस्ट बंगाल विरुद्ध इंदिरा देवी 1977 का मामला महत्वपूर्ण है,जिसमें अंतर नहित शक्तियों के तहत को न्यायालय इस धारा 151 सीपीसी प्रयोग कर सकता है, इस बारे में बताया गया है।
कुल मिलाकर धारा 151 सीपीसी का प्रयोग न्यायालय के आदेश का के दुरुपयोग को रोकने एवं न्याय के उद्देश्य की पूर्ति के लिए किया जा सकता है ,जहां दोनों पक्षों के साथ समान जस्टिस हो ,और किसी व्यक्ति के साथ जो यदि कोई तीसरा व्यक्तिभी है तो उसके साथ भी अन्याय ना हो। इस प्रकार यह सिविल न्यायालय की अपरिमित शक्तिहै। यह प्रावधान अत्यंत उपयोगी एवं न्याय बनाया गया है।
मेरी धर्मपत्नी श्रीमती अर्चना शर्मा का यूट्यूब पर एक चैनल archanas arty hub के नाम से कृपया उस चैनल को भी आप अवश्य सब्सक्राइब करें यदि उसके वीडियो अच्छे लगे तो उसे लाइक करें, शेयर करें ।धन्यवाद।
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