श्री मद्भगवद्गीता अध्याय 3 श्लोक 14,15 विस्तृत व्याख्या साधक संजीवनी ~श्रद्धेय स्वामी रामसुख दास जी

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अन्नाद्भवन्ति भूतानि पर्जन्यादन्नसम्भवः। यज्ञाद्भवति पर्जन्यो यज्ञः कर्मसमुद्भवः॥3.14
कर्म ब्रह्मोद्भवं विद्धि ब्रह्माक्षरसमुद्भवम्। तस्मात्सर्वगतं ब्रह्म नित्यं यज्ञे प्रतिष्ठितम्॥3.15

श्री मद्भगवद्गीता अध्याय 3 श्लोक 14,15 विस्तृत व्याख्या साधक संजीवनी ~श्रद्धेय स्वामी रामसुख दास जी

Shri Mad Bhagwad Geeta chapter 3 verse 14,15 sanskrit shlok with hindi meaning and full explaination from Sadhak Sanjeevani composed by shraddhey Swami
shri Ramsukh Das ji maharaj
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