नमस्कार दोस्तों! स्वागत है आपका "सचेतन" कार्यक्रम में। और आज हम आत्मा के चार प्रमुख अनुभवों पर चर्चा करेंगे, जिन्हें चार अवस्थाएँ कहा जाता है। यह एक महत्वपूर्ण विषय है, जो हमें आत्मा के विभिन्न अनुभवों के माध्यम से जीवन के गहरे अर्थ को समझने में मदद करता है।
चार अवस्थाएँ: आत्मा का सफर
आत्मा के अनुभव को चार प्रमुख अवस्थाओं में विभाजित किया जा सकता है। ये अवस्थाएँ हमें जीवन के विभिन्न स्तरों पर हमारे अस्तित्व का अनुभव कराती हैं। आइए, जानते हैं इन चार अवस्थाओं के बारे में विस्तार से:
1. जाग्रत अवस्था (वैश्वानर):
जाग्रत अवस्था वह स्थिति है, जिसमें हम जागते हैं और अपने भौतिक संसार के अनुभवों को प्राप्त करते हैं। यह हमारी दैनिक गतिविधियों, विचारों और बाहरी दुनिया से जुड़ी होती है। इस अवस्था में हम अपनी इंद्रियों और मन का प्रयोग करके बाहरी दुनिया के साथ संपर्क में रहते हैं। यह वह अवस्था है, जहाँ हम अपनी दिनचर्या, काम, और सामाजिक जीवन में संलग्न होते हैं।
इस अवस्था में हम खुद को भौतिक शरीर और मन से जोड़ते हैं।
यह जागरूकता की सामान्य स्थिति है, जिसे हम अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में अनुभव करते हैं।
2. स्वप्न अवस्था (तैजस):
स्वप्न अवस्था वह अवस्था है, जिसमें हमारी चेतना आंतरिक अनुभवों और कल्पनाओं से जुड़ती है। इसमें हमारा मन भौतिक दुनिया से हटकर आंतरिक जगत में प्रवेश करता है, जहाँ हम सपनों के माध्यम से मानसिक और भावनात्मक अनुभवों का सामना करते हैं। यह वह स्थिति है, जहाँ हमारे विचार, कल्पनाएँ, और असंवेदनशील भावनाएँ हमें एक अलग ही दुनिया का अनुभव कराती हैं।
स्वप्न अवस्था हमारे मानसिक और आंतरिक अनुभवों से भरी होती है।
यह हमारी आंतरिक यात्रा का प्रतीक है, जहाँ हम अपनी अवचेतन भावनाओं और विचारों का अनुभव करते हैं।
3. सुषुप्ति अवस्था (प्राज्ञ):
सुषुप्ति अवस्था गहरी नींद की वह अवस्था है, जहाँ हम पूरी तरह से शारीरिक और मानसिक विश्राम का अनुभव करते हैं। इस अवस्था में हमारे मन की सभी गतिविधियाँ बंद हो जाती हैं, और हम किसी भी प्रकार के विचार, भावनाएँ, या बाहरी जगत के संपर्क में नहीं रहते। यह अवस्था एक प्रकार की अचेतनता है, जिसमें हम शांति और विश्राम का अनुभव करते हैं।
इस अवस्था में हमारे शरीर और मन दोनों ही पूर्ण आराम की स्थिति में होते हैं।
यह वह अवस्था है, जहाँ कोई भी मानसिक गतिविधि नहीं होती, और हमें केवल शांति और विश्राम का अनुभव होता है।
4. तुरीय अवस्था:
तुरीय अवस्था इन तीनों अवस्थाओं से परे की अवस्था है। यह शुद्ध चेतना की वह स्थिति है, जहाँ आत्मा अपने वास्तविक स्वरूप का बोध करती है। यह अवस्था स्वप्न, जाग्रत, और सुषुप्ति से अलग होती है, क्योंकि यहाँ न कोई विचार है, न कोई स्वप्न, और न ही कोई भौतिक अनुभव। यह केवल शुद्ध, अनंत और अद्वितीय चेतना का अनुभव है, जिसे योग और ध्यान के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है।
तुरीय अवस्था शुद्ध आत्मिक जागरूकता का प्रतीक है।
यह वह अवस्था है, जहाँ आत्मा परमात्मा से एकाकार होती है और शांति, स्थिरता, और आनंद का अनुभव करती है।
हर अवस्था का अनुभव
इन चार अवस्थाओं का अनुभव हमें यह समझने में मदद करता है कि हमारा जीवन केवल भौतिक और मानसिक अनुभवों तक सीमित नहीं है, बल्कि आत्मा की गहन चेतना में भी हम अपनी जड़ें पाते हैं। तुरीय अवस्था वह लक्ष्य है, जिसे आत्म-साक्षात्कार के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है, और यही अवस्था हमें शाश्वत शांति और आनंद की ओर ले जाती है।
आत्मा का सफर चार अवस्थाओं से गुजरता है—जाग्रत, स्वप्न, सुषुप्ति, और तुरीय। इन चार अवस्थाओं का अनुभव हमें जीवन के गहरे अर्थ को समझने और आत्म-साक्षात्कार की दिशा में आगे बढ़ने में मदद करता है। तुरीय अवस्था तक पहुँचना ही आत्मा का अंतिम लक्ष्य है, जहाँ शुद्ध चेतना का अनुभव होता है।
आज के "सचेतन" कार्यक्रम में इतना ही। हमें उम्मीद है कि आपको आत्मा की इन चार अवस्थाओं के बारे में जानकर अच्छा लगा होगा। हम फिर मिलेंगे एक नए और रोचक विषय के साथ। तब तक के लिए, ध्यान में रहें, खुश रहें, और अपनी आत्मिक यात्रा को गहराई तक ले जाएँ।
नमस्कार!
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