भरत मिलाप चित्रकूट | वनवास के दौरान, यहाँ हुआ था भैया भरत और प्रभु श्री राम का मिलाप | 4K | दर्शन🙏

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भक्तों, जय श्री राम, जय श्री सीता राम। आप सभी का हमारे तिलक परिवार की ओर से हार्दिक अभिनन्दन. भक्तो आपने सुना ही होगा, तेरा राम जी करेंगे बेडा पर उदासी मन काहे को करे, ये परम सत्य है। भक्तों. राम नाम की महिमा जिसका हमारे ग्रंथो, और संतो ने वर्णन करते हुए कहा है, यदि स्वयं सरस्वती जी, जो ज्ञान की देवी हैं अपने समस्त ज्ञान का आसरा लेकर अपनी सम्पूर्ण आयु में भगवान के नाम की महिमा का वर्णन करें तो संभव नहीं है, ऐसा मधुर राम नाम है, भक्तो हमारे ग्रंथो और संतो ने भव सागर पार करने का कलयुगी साधन केवल हरी नाम को बताया है,” जोग ना जग्य ना ज्ञाना, एक अधार राम गुण गाना”। भक्तो यही राम नाम की धुन आपको सुनाई देती है कामद गिरी पर्वत की परिक्रमा के दौरान, यहाँ अनेको भक्त साधु संत राम नाम की धुन में मस्त राम भक्ति का अमृत पान करते रहते हैं. और परिक्रमा मार्ग में ही दर्शन होते हैं प्राचीन मंदिर ""भरत मिलाप मंदिर"" के, जहाँ भरत जी और राम जी का अद्भुत प्रेम मिलाप हुआ था।

मंदिर और परिक्रमा के बारे में:
भक्तो, चित्रकूट धाम उत्तर प्रदेश के चित्रकूट ज़िले की कर्वी तहसील और मध्य प्रदेश के सतना ज़िले की सीमा पर मन्दाकिनी नदी के तट पर स्थित है, त्रेता युग में भगवान श्री राम अपने वनवास काल के दौरान लक्ष्मण जी और सीता माता के साथ यहाँ कुटिया बनाकर रहते थे और आस-पास के साधु संतो ऋषि मुनियों के दर्शन किया करते थे और उन्हें अपने दर्शन देकर उनका जीवन सफल बनाते थे, भक्तो यही वो स्थान है जहाँ भगवान राम के छोटे भाई भरत जी श्री राम जी को लेने आये थे, इसी स्थान पर बना हुआ है ये प्राचीन मंदिर ""भरत- मिलाप मंदिर"". यहाँ पर भगवन राम और भरत के, लक्ष्मण और शत्रुघ्न के और माता कौशल्या तथा सीता माता के चरण चिन्ह आज भी विध्य्मान हैं , भक्तो कहा जाता है की श्री राम और भरत जी का मिलन ऐसा हृदय विदारक था कि उनके मिलन के साक्षी ये पत्थर भी द्रवित हो गए और उन् पर अंकित हो गए भगवान के चरण चिन्ह, आज भी भगवान् के चरण चिन्हो के दर्शन यहाँ होते हैं. भक्तो, अनादि काल से कामद गिरी पर्वत की गुफाओं में अनेक ऋषि तपस्या करते रहे हैं, इस क्षेत्र में भगवान और अनेको ऋषि मुनियों के चरणों की दिव्य रज और दिव्य ऊर्जा विध्यमान होने के कारण ये दिव्य धाम में परिणित हो गया , कामद गिरी पर्वत की परिक्रमा की विशेष महत्ता है , ये परिक्रमा 5 किलोमीटर लम्बी है, भक्तो परिक्रमा में हरी नाम ध्वनि का अद्भुत आनंद होता है।

मंदिर और परिक्रमा, तथा इतिहास:
भक्तो, प्रथम मुखारविंद अर्थात भगवान् कामत नाथ के दर्शनों के पश्चात परिक्रमा प्रारम्भ होती है। परिक्रमा मार्ग में जैसे जैसे श्रद्धालु आगे बढ़ते हैं वैसे वैसे उन्हें बहुत से देवी देवताओं के मंदिरो के दर्शन प्राप्त होते हैं परिक्रमा में कुछ दूर चलने पर ही दूसरे मुखारविंद के दर्शन होते हैं, भक्तो परिक्रमा मार्ग में भक्तो की सुविधाओं के लिए शेड का निर्माण किया गया है, दूसरे मुखारविंद के बाद दर्शन होते हैं राम जानकी मंदिर के जहाँ पर आज भी तुलसीदास जी द्वारा रचित रामायण हैं। मंदिर के पास ही एक पीपल का पेड़ है कहा जाता है कि इसी पेड़ के नीचे बैठकर श्री तुलसी दास जी भजन किया करते थे, भक्तो परिक्रमा मार्ग में कुछ और आगे चलने पर साक्षी गोपाल जी का सुन्दर मंदिर है भक्तो साक्षी गोपाल जी के दर्शनों के बाद आगे चलते ही हमारा प्रवेश हो जाता है उत्तर प्रदेश की सीमा मे, और हमें दर्शन होते हैं गुरु वशिष्ठ आश्रम के, यहीं पर राम दरबार, अत्रि मुनि और माँ अनुसुइया के भी दर्शनों का लाभ मिलता है, भक्तो माँ अनुसुइया ने इसी स्थान पर त्रिदेवो ब्रह्मा, विष्णु और शिव जी को बालक रूप दिया था, इन्ही त्रिदेवो को आज भी यहाँ भक्तो के द्वारा झूला झुलाया जाता है, भक्तो आगे मार्ग में, रामायण दर्शन, प्राचीन रमा बैकुंठ कामदनाथ मंदिर के बाद दर्शन होते हैं ""भरत मिलाप मंदिर"" के भक्तो यहाँ भरत जी राम जी से मिलने के बाद श्री राम जी की चरण पादुका लेकर अयोध्या के लिए प्रस्थान कर गए थे, यहाँ मंदिर मे भगवान् श्री राम जी अपनी चरण खड़ाऊ भरत जी को दे रहे हैं ये बड़े ही सुन्दर विग्रह हैं, श्री राम जी और भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न के मिलन के विग्रह भी बड़े ही सुन्दर हैं, यहां माँ सीता जी के भी दर्शन होते हैं, भक्तो यहीं पर शिला में चिन्हित भगवान श्री राम और भरत जी के चरण चिन्हो के दर्शन भी बहुत प्यारे हैं, भरत मिलाप मंदिर के बाद परिक्रमा मार्ग में आगे दर्शन होते हैं तीसरे मुखारविंद के, भक्तो इसके बाद परिक्रमा मार्ग पर आगे बढ़ने पर हमें द्वारिकाधीश जी के महल और आगे बरहा के हनुमान जी के दर्शन होते हैं भक्तो कहा जाता है की यहाँ मंदिर में विराजित प्रतिमाये स्यवं भू प्रकट हैं, बराह मंदिर में दर्शन के बाद सरयू कुंड के दर्शन होते हैं भक्तो यहाँ से परिक्रमा मार्ग पर आगे बढ़ने पर हमें कामतानाथ जी के चौथे मुखारविंद के दर्शन होते हैं। यहीं चौथे मुखारविंद पर परिक्रमा की समाप्ति होती है .

Disclaimer: यहाँ मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहाँ यह बताना जरूरी है कि तिलक किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.

श्रेय:
लेखक: याचना अवस्थी

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