हे प्रभु मैं हूं अकिंचन- जैन भक्ति भजन

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#ऐलक_श्री_क्षीरसागर_जी_महाराज
हे प्रभु मैं हूं अकिंचन, लाया भक्ति थाल में
हे प्रभु मैं हूं अकिंचन, लाया भक्ति थाल में
पास में न और कुछ है, चरण रखता भाल में ||
नयनों की ये दो कटोरी जल वा चंदन से भरीं
छलक जाती एक पल में झलक जैसे ही मिली
जन्म मृत्यु ताप भव का में दो एक बार में
ज्ञान गुण अक्षत यह मानूं साथ ना छोड़े कभी
अर्चना के भाव को कोमल पुष्प चुन लाया अभी
चाह अक्षय पद कभी न, ना दूजी कामना संसार में
शान्त रस से जो सना नैवेद्य मानूं भाव वो
धर्म ज्योति दीप है जो हटाये तम पाप को
भोग न चाहूं ना पहनूॅं कभी मोह की माल में
भीनी भीनी गंध युत ये धूप भक्ति के लिए
समर्पण का फल में लाया भरा जो मेरे हिए
राह मुक्ति की चले बस पहुंचना हर हाल में
पद अनर्घ्य की चाह लेकर नत हुआ दरबार में

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