Pandavo ka Agyatwas Sthal, Matsya Mahajanpad ki Rajdhani : Viratnagar।। पांडवों का अज्ञातवास स्थल।।

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Pandavo ka Agyatwas Sthal, Matsya Mahajanpad ki Rajdhani : Viratnagar।। पांडवों का अज्ञातवास स्थल।।


कौरवों से जुएं में हारने के बाद पांडवों को 12 वर्ष का वनवास और 1 साल का अज्ञातवास बिताना था। 12 साल वनवास में रहने के बाद जब अज्ञातवास का समय आया तो पांडव घुमते हुए विराट नगर तक पहुंच गए।


विराट नगर राजस्थान प्रान्त के जयपुर ज़िले का एक ऐतिहासिक नगर है।

राजा विराट के ही नाम से विराट नगर है। विराट नगर राजस्थान में उत्तर में स्थित है।
यह नगरी प्राचीन मत्स्य राज की राजधानी रही है। राजस्थान की राजधानी जयपुर से क़रीब 120 कि.मी. की दूरी पर है।
विराट नगर अरावली की पहाड़ियों के मध्य में बसा है। विराट नगर से 90 किलोमीटर की दूरी पर जयपुर और 60 किलोमीटर पर अलवर, और 40 किलोमीटर पर शाहपुरा स्थित है।
मत्स्य 16 महाजनपदों में से एक है। इसमें राजस्थान के अलवर, भरतपुर तथा जयपुर ज़िले के क्षेत्र शामिल थे। महाभारत काल का एक प्रसिद्ध जनपद जिसकी स्थिति अलवर-जयपुर के परिवर्ती प्रदेश में मानी गई है। इस देश में विराट का राज था तथा वहाँ की राजधानी उपप्लव नामक नगर में थी। विराट नगर मत्स्य देश का दूसरा प्रमुख नगर था।


पांडवों ने तय किया कि इसी स्थान पर रूप बदलकर अज्ञातवास पूरा किया जा सकता है। पहले अर्जुन ने सभी के अस्त्र-शस्त्र की पोटली बनाकर शमी वृक्ष पर रख दी, इसके बाद वे विभिन्न रूप में विराट नगर के राजा विराट के पास गए। पांडवों ने इसी नगर में अपना अज्ञातवास पूरा किया, जानिए किस रूप में वे विराट नगर में रहे...

1. सबसे पहले युधिष्ठिर वेष बदलकर राजा विराट के दरबार में गए। परिचय पूछने पर युधिष्ठिर ने राजा विराट को बताया कि- मैं एक ब्राह्मण हूं, मेरा नाम कंक है। मेरा सबकुछ लुट चुका है, इसलिए मैं जीविका के लिए आपके पास आया हूं। जुआ खेलने वालों में पासा फेंकने की कला का मुझे विशेष ज्ञान है। अत: आप मुझे अपने दरबार में उचित स्थान प्रदान करें। युधिष्ठिर की बात सुनकर राजा विराट ने उन्हें अपना मित्र बना लिया और राजकोष व सेना आदि की जिम्मेदारी भी सौंप दी।
2. इसके बाद भीम राजा विराट की सभा में आए। उनके हाथ में चमचा, करछी, और साग काटने के लिए एक लोहे का छुरा था। उन्होंने अपना परिचय एक रसोइए के रूप में दिया और अपना नाम बल्लव बताया। राजा ने भीम को भोजनशाला का प्रधान अधिकारी बना दिया। इस प्रकार युधिष्ठिर और भीम को कोई पहचान न सका।
3. इसके बाद द्रौपदी सैरंध्री का वेष बनाकर दुखिया की तरह विराट नगर में भटकने लगी। उसी समय राजा विराट की पत्नी सुदेष्ण की नजर महल की खिड़की से उस पर पड़ी। उन्होंने द्रौपदी को बुलवाया और उसका परिचय पूछा। द्रौपदी ने स्वयं को काम करने वाली दासी बताया और कहा कि मैं बालों को सुंदर बनाना और गूंथना जानती हूं। चंदन या अनुराग भी बहुत अच्छा तैयार करती हूं। भोजन तथा वस्त्र के सिवा और कुछ पारिश्रमिक नहीं लेती। द्रौपदी की बात सुनकर रानी सुदेष्ण ने उसे अपने पास रख लिया।
4. कुछ समय बाद सहदेव भी ग्वाले का वेष बनाकर राजा विराट के पास गए। राजा ने सहदेव से उनका परिचय पूछा। सहदेव ने स्वयं को तंतिपाल नाम का ग्वाला बताया और कहा कि चालीस कोस के अंदर जितनी गाएं रहती हैं, उनकी भूत, भविष्य और वर्तमान काल की संख्या मुझे सदा मालूम होती है। जिन उपायों से गायों की संख्या बढ़ती रहे तथा उन्हें कोई रोग आदि न हो, वे सब भी मुझे अच्छे से आते हैं। सहदेव की योग्यता देखकर राजा विराट ने उन्हें पशुओं की देखभाल करने वालों का प्रमुख बना दिया।
5. कुछ समय बाद अर्जुन बृहन्नला के रूप में राजा विराट की सभा में गए और कहा कि मैं नृत्य और संगीत की कला में निपुण हूं। अत: आप मुझे राजकुमारी उत्तरा को इस कला की शिक्षा देने के लिए रख लें। राजा विराट ने अर्जुन को भी अपनी सेवा में रख लिया।
6. इसके बाद नकुल अश्वपाल का वेष धारण कर राजा विराट की सभा में आए। उन्होंने अपना परिचय ग्रंथिक के रूप में दिया। राजा विराट ने अश्वों से संबंधित ज्ञान देखकर उन्हें घोड़ों और वाहनों को देखभाल करने वालों का प्रमुख बना दिया। इस प्रकार पांचों पांडव व द्रौपदी अज्ञातवास के दौरान विराट नगर में रहने लगे।

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