एक माँ || मंजु आनंद की हिंदी कविता

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एक माँ || मंजु आनंद की हिंदी कविता ||
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अमर उजाला काव्य मे प्रकाशित मेरी स्वरचित कविता “एक माँ”
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“एक माँ”
एक माँ वो भी है एक माँ यह भी है,
बूढ़ी माँ की बाँह पकड़ी है,
बेटे ने बड़े ही प्यार से आदर सम्मान से,
पैर ज़मीन पर नहीं पड़ रहे हैं,
आज एक माँ के,
दिल भर आया है माँ का,
आँखे ख़ुशी से नम हैं,
ढेरो दुआएँ दे रही है माँ अपने लाडले को,
आज बेटा उसके बुढ़ापे की लाठी जो बन गया है,
एक माँ ऐसी भी है,
बूढ़ी माँ की बाँह झिंझोड़ दी है,
माँ का अपमान तिरस्कार किया है,
आज एक बेटे ने,
माँ के पैर ज़मीन में ही गड़े जा रहे हैं,
शर्म से पानी पानी हुए जा रही बूढ़ी माँ,
मानो काटो तो शरीर से खून ही ना निकले,
दिल भर आया है माँ का,
आँखों से सैलाब उमड़ने लगा है,
आज बेटा बूढ़ी माँ को,
वृद्धाश्रम छोड़ने जा रहा है,
एक बेटा वो भी है एक बेटा यह भी है,
एक माँ वो भी है एक माँ यह भी है।

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