115. सहयोग - अर्थ, परिभाषा एवं विशेषताएँ Co-operation - Meaning, Definition and Characteristics

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सहयोग वह सामाजिक प्रक्रिया है जो एक समूह में व्यक्तियों को एकता के सूत्र में बाँधती है और समाज को संगठित करती है। मनुष्य की मानसिक विशेषताएँ और विभिन्न प्रकार की आवश्यकताएँ ही उसे दूसरों से सहयोग करने की प्रेरणा देती है। जब समाज बहुत सरल था, तब सहयोग की प्रक्रिया केवल परिवार, पड़ोस, नातेदारी और गाँव में ही देखने को मिलती थी। जैसे-जैसे हमारा सामाजिक जीवन जटिल होता जा रहा है, सहयोग का यह रूप कृषि, व्यापार, उत्पादन प्रणाली, राजनीति तथा बहुत-से दूसरे संगठनों से सम्बन्धित हो गया है। सहयोग एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा बहुत-से लोग मिल-जुलकर अथवा एक-दूसरे को सहायता देकर कुछ सामान्य उद्देश्यों को पूरा करने का प्रयत्न करते हैं।

एक सामाजिक प्राणी के रूप में प्रत्येक व्यक्ति की कुछ जन्मजात तथा सामाजिक आवश्यकताएँ होती है। इनकी सन्तुष्टि पर ही उसके व्यक्तित्व का विकास निर्भर होता है। इसके बाद भी प्रत्येक व्यक्ति के सामने एक विशेष समस्या यह रहती है कि इन आवश्यकताओं को किस प्रकार पूरा किया जाये। कोई भी व्यक्ति केवल अकेले रहकर अपनी सभी आवश्यकताओं को पूरा नहीं कर सकता। इस दशा में उसके लिए यह आवश्यक होता है कि वह दूसरों के साथ मिल-जुलकर अपनी आवश्यकताओं को पूरा करे। दूसरों के साथ मिल-जुलकर काम करने की दशा का नाम ही सहयोग है।

एक प्रक्रिया के रूप में सहयोग सभी व्यक्तियों और समूहों की एक सार्वभौमिक विशेषता है। जब दो या दो से अधिक व्यक्ति अथवा समूह अपनी विभिन्न आवश्यकताओं और उद्देश्यों को पूरा करने के लिए मिल-जुलकर कार्य करते हैं, तब इस प्रकार की अन्तःक्रिया को सहयोग कहा जाता है।
सहयोग - परिभाषाएँ Co-operation - Definitions
सदरलैण्ड तथा वुडवर्ड Sutherland and Woodward के शब्दों में, "किसी समान लक्ष्य को पाने के लिए विभिन्न व्यक्तियों अथवा समूहों का एक-दूसरे से मिलकर कार्य करना ही सहयोग है।"

कुछ व्यक्तियों द्वारा संयुक्त रूप से कार्य करने के लिए उनका शारीरिक रूप से एक-दूसरे के निकट होना आवश्यक नहीं होता है। सहयोग की प्रक्रिया अप्रत्यक्ष सहयोग के रूप में भी हो सकती है।
ग्रीन (A. W. Green) का कथन है कि "सहयोग दो या दो से अधिक व्यक्तियों द्वारा कोई कार्य करने अथवा सामान्य रूप से इच्छित किसी लक्ष्य तक पहुँचने के लिए किया जाने वाला निरन्तर और सामूहिक प्रयत्न है।''
इसके स्पष्ट है कि (क) सहयोग में निरन्तरता का गुण होता है। (ख) यह सामूहिक प्रक्रिया है इसमें अनेक व्यक्तियों का सह-भाग होता है। (ग) प्रत्येक सहयोग किसी सामान्य लक्ष्य से सम्बन्धित होता है क्योंकि एक सामान्य लक्ष्य के बिना कुछ व्यक्ति भावनात्मक आधार पर एकता से नहीं बंध सकते है।

स्पष्ट है कि जब कुछ व्यक्ति किसी विशेष उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए संगठित होकर एक-दूसरे की सहायता करते हैं, तब इस प्रक्रिया को सहयोग कहा जाता है। यह ध्यान रखना आवश्यक है कि यदि कुछ व्यक्ति संगठित रूप से कार्य करने के बाद भी अपनी कुशलता में वृद्धि न कर सकें, तब एक अवधारणा के रूप में इसे सहयोग की दशा नहीं कहा जा सकता। इसका कारण यह है कि
सहयोग में कुशलता की वृद्धि के गुण का समावेश होता है।
सहयोग की विशेषताएँ Characteristics of Co-operation
1. सामूहिकता - सहयोग की प्रक्रिया में सामूहिकता के गुण का समावेश होता है। जब व्यक्ति या समूह सामूहिक रूप से मिलकर किसी लक्ष्य को प्राप्त करने का प्रयास करते हैं तभी उसे सहयोग कहा जाता है।
2. सामान्य लक्ष्य - प्रत्येक सह‌योग के पीछे कोई न कोई स्पष्ट लक्ष्य अवश्य होता है। यह लक्ष्य वह होता है जिसे परस्पर सहयोग करने वाले व्यक्ति अपने लिए महत्वपूर्ण समझते हैं। लक्ष्य की यही समानता सहयोग करने वाले व्यक्तियों को भावनात्मक रूप से जोड़े रखती है तथा उन्हें संगठित रूप से कार्य करने का प्रोत्साहन देती है।
3. कुशलता का समावेश - फेयरचाइल्ड ने यह स्पष्ट किया है कि जब अनेक व्यक्ति संगठित रूप से कार्य करके अपनी कुशलता को पहले की अपेक्षा बढ़ा लेते है, तभी इस दशा को सहयोग कहा जा सकता है। इसका तात्पर्य यह है कि यदि एक-दूसरे को सहयोग देने वाले व्यक्तियों के प्रयत्नों के बाद भी किसी कार्य को पहले की तुलना में अधिक अच्छे ढंग से न किया जा सके तो इस दशा को सहयोग नहीं कहा जा सकता।
4. सहयोग की प्रकृति प्रत्येक दशा में समान नहीं होती - सहयोग एक छोटे से क्षेत्र तक सीमित हो सकता है अथवा इसका क्षेत्र बहुत व्यापक हो सकता है। सहयोग कभी प्रत्यक्ष होता है तो कभी अप्रत्यक्ष। कभी इसका उद्देश्य अस्थायी रूप से पीड़ित व्यक्तियों की सहायता करना होता है तो कभी यह समाज की स्थायी विशेषता बनकर संस्था का रूप ले लेता है।
सहयोग के यह सभी रूप समूह की प्रकृति और एक विशेष समय की आवश्यकताओं से सम्बन्धित होते हैं।
5. ऐच्छिक सह-भाग - सहयोग में स्वेच्छा का तत्व विद्यमान होता है। इसका तात्पर्य यह है कि यदि किसी व्यक्ति को दबाव, प्रलोभन अथवा उत्पीड़न के द्वारा किसी विशेष कार्य के लिए सहयोग देने को बाध्य किया जाय तो ऐसे व्यवहार में एक सामान्य लक्ष्य का अभाव होने के कारण इसे सहयोग नहीं कहा जा सकता। सहयोग एक ऐच्छिक चेतना से उत्पन्न होता है तथा इसमें वे लोग ही सह-भाग कर सकते हैं जो एक सामान्य लक्ष्य के कारण अपने को एक-दूसरे के समीप समझते हों।
6. सार्वभौमिकता - सहयोग एक सार्वभौमिक प्रक्रिया है। मानव विकास के प्रत्येक स्तर पर यह प्रक्रिया किसी न किसी रूप में अवश्य विद्यमान रही है।
कोई समाज चाहे छोटा हो या बड़ा, सरल हो या जटिल, सभी समाजों में अधिकांश व्यक्ति सहयोग के द्वारा ही अपने उद्देश्यों को पूरा करने का प्रयत्न करते हैं। सभी समाज अपने विकास के लिए सहयोग को आवश्यक मानते हैं तथा इसे मान्यता प्रदान करते हैं।

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