|| Sheesh Mahal || Farukhnagar फौजदार खान द्वारा बनवाई गई ऐतिहासिक धरोहर।।

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मुगलशासक ने अपनी रानी के लिए बनवाया था यह शीश महल
Location :-Sheesh Mahal
Farukh Nagar, Haryana 122506
https://maps.app.goo.gl/khsS8DMWe67U5...

हरियाणा के फारुखनगर स्थित शीश महल के बारे में:--
हरियाणा के गुड़गांव जिले में स्थित फारुखनगर वैसे तो महज एक छोटा-सा कस्बा है, लेकिन इतिहास पन्नों पर इसका बहुत महत्व है। फारुखनगर की स्थापना का श्रेय मुगलशासक फौजदार खान को जाता है। इस मुगलशासक ने अपने शासन के दौरान कई ऐतिहासिक इमारतों का निर्माण कराया। फौजदार खान द्वारा बनवाई गई ऐतिहासिक धरोहरों में से एक है यहां का शीश महल शहर के बीचों-बीच बने इस शीश महल का निर्माण सन् 1711 में हुआ था। यह महल लाल बलुआ पत्थर, लाखौरी ईंटों और झज्जर स्टोन से बना हुआ है, जो मुगल शासक ने अपनी रानी के लिए बनवाया था। शीश महल के नीचे खुफिया सुरंग भी शीश महल तीन ओर 2 मंजिला इमारतों जिनमे कई कमरे हैं , से घिरा है उसके उत्तरी तरफ किसी घर की दीवारे हैं । ये खंडहर जो किले के अंदर बना है फारुख सियार ने अपनी रानी के लिए बनवाया था इसके नीचे एक ख़ुफ़िया सुरंग भी है जो किले के बाहर कुछ दूर एक बाउली में खुलती है जहाँ रानी रोज स्नान के लिए जाती थी । खत्म हो गई शीश महल की चमक
बाजार के बीच में लाल बलुआ पत्थर, लाखौरी ईंटों और झज्जर स्टोन से बना शीश महल खड़ा है। इसकी चहारदीवारी में घुसने के लिए एक मेहराबदार दरवाजे से होकर गुजरना होता है। चहारदीवारी में महल के बीचोंबीच से नहर बनी है जिसमें पानी नजदीक की बावली से आता था। महल के मेहराबों और खंभों पर नफीस पच्चीकारी थी जो अब नजर नहीं आती। बावली भी वक्त के आगोश में दफन हो चुकी है। बारादरी में शीशों के काम की वजह से इसका नाम शीश महल पड़ा था मगर इनकी चमक बीते कल की बात हो गई है। दो मंजिले शीश महल की हाल ही में कुछ हद तक मरम्मत की गई थी। लेकिन इसके पीछे और एक बगल का हिस्सा पूरी तरह घ्वस्त हो चुका है।
यह महल 1857 तक आबाद था। इसकी चहारदीवारी के अंदर गदर के शहीदों की याद में एक स्मारक भी बना है। फारुखनगर का इतिहास
हरियाणा में गुड़गांव से 20 किलोमीटर दूर फारुखनगर को फर्रुखसियर के कमांडर मोहम्मद फौजदार खान ने बसाया था। मुगल बादशाह मोहम्मद शाह रंगीला ने फौजदार खान को फारुखनगर का नवाब बनाया था। भरतपुर के महाराज ने 1757 में फारुखनगर पर हमला किया और यह कस्बा सात साल तक उसके कब्जे में रहा। बाद में बादशाह शाह आलम के वजीर गाजीउद्दीन ने नवाब को फारुखनगर वापस दिलाया। 1857 के गदर के समय फौजदार खान का वारिस अहमद अली फारुखनगर का नवाब था। उसके अंग्रेजों के खिलाफ लड़ाई में हिस्सा लेने के कारण इस कस्बे को गुड़गांव में मिला दिया गया। उस समय फारुखनगर में बड़े पैमाने पर नमक बनाया जाता था और इसलिए इस कस्बे में तभी से रेलवे स्टेशन भी है। फारुखनगर मुगलों के आलीशान स्थापत्य और उनके बाद की वास्तुकला की कई मिसालों को अपने आंचल में समेटे है। कस्बे के उथलपुथल भरे इतिहास में इन इमारतों के मालिक बदलते रहे लेकिन इनकी सुध किसी ने भी नहीं ली। आजादी मिलने के 20 साल बाद ये इमारतें सरकार के कब्जे में आईं मगर इनमें से कुछ अब भी निजी जायदाद हैं।

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