पं. रामकिंकर जी उपाध्याय : उपासना का स्वरूप (भाग-१) Pt Ramkinkar Ji Upadhyay : Upasna Ka Swaroop-1

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उपासना अपने उपास्य को प्राप्त करने की साधना है । उपासना संसार से विरक्त होकर भी की जा सकती है और संसार में रहकर भी । यह तो उपासक की रुचि और उसकी योग्यता पर निर्भर करता है । उपासना का क्रम यही है कि हम अपने उपास्य के वास्तविक स्वरूप को पूरी तरह जानें, उनमें हमारी अटूट आस्था हो और फलस्वरूप उनके प्रति हमारी सच्ची प्रीति हो, और यह भी ईश्वर की कृपा से ही संभव है । सच्ची प्रीति अर्थात जो भय और लोभ से रहित हो । जब हमें सर्वत्र ईश्वर और ईश्वर में ही सर्वत्र के दर्शन होने लगें । जब हमें ईश्वर के प्रभाव के साथ उसके स्वभाव का ज्ञान भी हो जाए । इस अंक में उपासना के इसी तत्व का प्रतिपादन किया गया है ।

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