जय गंगा मैया कथा | अंशुमन की कथा (भाग -2)

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भक्त को भगवान से और जिज्ञासु को ज्ञान से जोड़ने वाला एक अनोखा अनुभव। तिलक प्रस्तुत करते हैं दिव्य भूमि भारत के प्रसिद्ध धार्मिक स्थानों के अलौकिक दर्शन। दिव्य स्थलों की तीर्थ यात्रा और संपूर्ण भागवत दर्शन का आनंद। दर्शन दो भगवान!

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राजा सगर अपने पुत्र को राजा बना कर यजुवेंद्र को युवराज बना देता हैं। राजा सगर वन में तप करने जाने की आज्ञा ऋषि वशिष्ठ से माँगते हैं तो वशिष्ठ जी उन्हें अश्वमेघ यज्ञ करने के लिए कहते हैं। राजा सगर अश्वमेघ यज्ञ करता हैं। राजा सगर सूर्य देव की पूजा करता है सूर्य देव उसे यज्ञ करने के लिए आशीर्वाद देते हैं और यज्ञ प्रारंभ हो जाता है राजा सगर अश्वमेघ यज्ञ करता हैं। यजुवेंद्र को अश्व की सुरक्षा का दायित्व दिया जाता है। रस्ते में राजा गुणवर्धन अश्वमेध के अश्व को पकड़ लेते हैं और सगर पुत्रों को कहते हैं की तुम्हें अपने पिता पर ही आक्रमण कर देना चाहिए लेकिन यजुवेंद्र और उसके भाई उनकी बातों में नहीं आते और उनसे अश्व को छोड़ने के लिए कहते हैं। गुणवर्धन उनकी बात नहीं मानता तो उनमें युद्ध शुरू हो जाता है सगर पुत्र राजा को युद्ध में हरा देते हैं और उन्हें समस्तिपुर के राजा के पद से हटा देते हैं। सगर पुत्र अश्व को लेकर निकल पड़ते हैं। रस्ते में इंद्र देव उनके अश्व को चुरा कर कपिल मुनि जी के पास रसा तल में छोड़ आते हैं। सगर पुत्र अश्व की तलाश में रसा तल में चले जाते हैं और अश्व को कपिल मुनि जी के पास खड़ा देखते हैं। सगर पुत्र अश्व की तलाश में रसा तल में चले जाते हैं और अश्व को कपिल मुनि जी के पास खड़ा देखते हैं तो उन पर आक्रमण कर देते हैं। कपिल मुनि जी जैसे ही अपनी आँख खोलते हैं तो सभी सगर पुत्र वहीं भस्म हो जाते हैं क्योंकि विष्णु जी का उन्हें वरदान था की उनकी तपस्या भंग करने वाले पर जब उनकी दृष्टि पड़ेगी तो वह भस्म हो जाएगा। राजा सगर अपने अश्व को खोजने के लिए अपने सैनिकों को भेजता है। राजा अपने गुरु वशिष्ठ के पास जाता है और उनसे अश्व के बारे में पूछते हैं तो ऋषि वशिष्ठ उन्हें युवराज यजुवेंद्र के पुत्र अंशुमान को अश्व खोजने के लिए भेजने को कहते हैं। अंशुमान सूर्य देव से अपना मार्ग दर्शन करने को कहता है सूर्य देव उसका मार्ग दर्शन करते हैं और उसे रसा तल के समीप ले जाते हैं जिस से अंशुमन को पता चल जाता है की उसके काका और अश्व अंदर रसा तल में कहीं हैं। राजा सगर अपने अश्व को खोजने के लिए अपने सैनिकों को भेजता है। राजा अपने गुरु वशिष्ठ के पास जाता है और उनसे अश्व के बारे में पूछते हैं तो ऋषि वशिष्ठ उन्हें युवराज अंशुमान को अश्व खोजने के लिए भेजने को कहते हैं। अंशुमान सूर्य देव से अपना मार्ग दर्शन करने को कहता है तो वह रसा तल में चला जाता है और कपिल मुनि जी से तप से जगाने के लिए आदर सहित उनसे प्रार्थना करता है। कपिल मुनि जी अंशुमान को अश्व दे देते हैं। अंशुमान अपने सभी काका को भी माँगते हैं तो कपिल मुनि जी उन्हें बताते हैं की वो भस्म हो चुके हैं और उन्हें मुक्ति गंगा मैया के आने पर ही मिलेगी। अंशुमान अपने साथ अश्व को लेकर राज्य की ओर निकल जाता हैं। अंशुमान अपने साथ अश्व को लेकर पहुँच जाता है और राजा सगर अश्वमेघ यज्ञ को पूर्ण करते हैं। राजा सगर का पुत्र असमंजस राजा से कहता है की वह वन में तप करने के लिए जा रहा है और उसने गृहस्थ जीवन त्याग दिया है। अंशुमान की पत्नी उनसे कहती है की मैं अपके पौत्र को जनम देने जा रही हूँ क्या आप उसे देखे बिना ही चले जाएँगे तो असमंजस कहता है की वह अब सब कुछ त्याग चुका है अब वह मोह माया से परे हो चुका है और यह कह कर वहाँ से चला जाता है। राजा सगर को अपने राज्य अयोध्या और अपने पुत्रों की चिंता होती है तो राजा सगर ऋषि वसिष्ठ के पास जाते हैं और उनसे कहते इसका निवारण करने को कहते है। राजा सगर को ऋषि वसिष्ठ कहते हैं की तुम्हें तप करने के लिए जाना चाहिए और उस से पहले तुम्हें अपने राज्य के लिए अंशुमान को राजा बना देना चाहिए। अंशुमान की माता को अपने पति के वन में तप करने जाने की बात पर दुःख तो थी ही और अब अपने सास और ससुर के तप करने जानी बात से और दुःख होने लगता है गंगा मैया प्रतिभा को आकर समझाती है और उसे कहती हैं की तुम्हें शोक नहीं मनाना चाहिए तुम्हें अपने पुत्र के राजा बनने की ख़ुशी होनी चाहिए। गंगा मैया विष्णु जी से प्रतिभा के विषय में पूछती हैं की आपने सूर्यवंशियों को ही क्यों इस कार्य के लिए चुना तो विष्णु जी कहते हैं की सूर्यवंशी सदा से हाई मेरे भक्त रहे हैं इसलिए इन्हें ही आपके अवतरण के लिए चुना गया है। ऋषि वशिष्ठ राजा सगर को अपने पुत्रों के उद्धार के लिए गंगा मैया को पृथ्वी पर लाने के लिए कहते हैं तो वो तप करने के लिए चल पड़ते हैं। राजा सगर के साथ उनके पीछे पीछे राजा अंशुमान और उनका परिवार चलता है तो राजा सगर उन्हें वापस जाने को कह देते हैं। राजा अंशुमान अपने राजमहल में वापस आकर दुःखी हो जाता है उसे दुःखी देख ऋषि वशिष्ठ वहाँ आते हैं और उन्हें समझाते हैं। सूर्य देव से आज्ञा लेकर राजा सगर और सुमति तप करते हैं। ऋषि वसिष्ठ के समझाने पर अंशुमान को शांति मिलती है और उसे अपने पिता दादा दादी के तप पा जाने की बात से चिंता दूर हो जाती है। राजा अंशुमान की पत्नी एक पुत्र को जन्म देती है जिसका नाम दिलीप रखा जाता है।

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