Bandish Ki Kahani - Lalit | Dr. Ashwini Bhide Deshpande | Batiyan Daurawat

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बंदिश की कहानी के आज के आख्यान में आज आपको सुनाती हूँ राग ललित के तीन बंदिशों की कहानी. भोर की बेला में, जब रात का अँधियारा धीरे धीरे छँट रहा हो, परंतु सूर्यनारायण अभी अवतीर्ण नहीं हुए हो ऐसे समय पर गाया जानेवाला जानामाना, प्रचलित, प्रगल्भ राग है – ललित.

मेरे लिए ललित थोडासा अलसाया हुआ राग है... रातभर अच्छी निद्रा प्राप्त हुई है, परंतु और थोडीसी की लालच महसूस हो रही है....बिस्तर से निकलने को तो मन हो रहा है, परंतु ओढ़े हुए कंबल को दूर हटाकर तेजी से उठ खड़ा होने की इच्छा अभी प्रबल नहीं हो रही है, ऐसे समय गाया जानेवाला राग ललित...

रातभर माँ की गोद की प्रेममयी आँच में सुख की नींदरिया सोये हुए बच्चे को … हम सब के प्यारे कृष्ण कन्हय्या को जगाने की बेला अब समीप आई है; और माँ यशोदा अपने ललुवा से यह अरज कर रही है, कि,

"जागिये हो नंदलाल, कुंवर कान्हा, बीत गई रैना "

बच्चे को मनाते मनाते समय बीतता जाता है... और 'बीत गई रैना' से अब
'भोर भई अंगना' हो रहा है, और फिरभी लल्लुवा का जागने का नाम नहीं...

अब माँ यशोदा अपनी बिनती की लय बढ़ाकर, आवाज़ की पट्टी चढ़ाकर ललुवा से यह कहती है,
"कमल पंखुडी खोलो, नंदलाल
भोर भई अंगना...

कन्हय्या है कि नहीं मान रहा. अब माँ यशोदा के सहनशक्ति की मर्यादा पार हो चुकी है। उनकी असहायता, हताशा, पीड़ा, रोष परंतु ललुवा के लिए छुपा प्यार, दुलार और अनुराग भी… यह सारी भावनाएँ द्रुत बंदिश में व्यक्त होती हैं।
"अब तो जागो, कन्हय्या
तोहे मनावत हारी, तोरी यशोदा मैया।“

आइये, यशोदा मैया की इन तीन बंदिशों का आनंद उठाते हैं …

Credits:
Composition and Vocal Presentation: Dr. Ashwini Bhide Deshpande
Tabla: Siddharth Padiyar
Creative Ideation: Amol Mategaonkar
Audio Recording, Mixing: Amol Mategaonkar
Video Recording, Editing: Amol Mategaonkar, Kannan Reddy
Color Grading: Kannan Reddy
Special Thanks To: Raja Deshpande
Location Courtesy: Maya & Makund Dharmadhikari
Opening Title Photo Credit: Varsha Panwar

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