मोरपखा सिर ऊपर......अधरा न धरौंगी।raskhan। raskhan rachnavali। moroakha sir uper।

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मोरपखा सिर ऊपर......अधरा न धरौंगी ॥
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सवैया
मोरपखा सिर ऊपर राखिहौं, गुंज की माल गरे पहिरौंगी।
ओढ़ि पितम्बर लै लकुटी, वन गोधन ग्वारनि संग फिरौंगी।।
भाव तो वोहि मेरो रसखानि, सो तेरे कहे सब स्वाँग करौंगी।
या मुरली मुरलीधर की अधरान धरी अधरा न धरौंगी।।
शब्दार्थ - मोर पखा=मोर-मुकुट । पितम्बर=पीला वस्त्र । भावतो=प्रिय। अधरान=ओठ। अधरा=नीचे ।
अर्थ- कोई गोपी अपनी सखी से कहती है कि हे सखि! मैं मौर-मुकुट को अपने सिर के ऊपर पहनूॅंगी। गुंजां की माला मैं पहनूंगी। पीला वस्त्र ओढ़ कर और हाथ मे लाठी लेकर तथा ग्वालिन बनकर वन वन में गायां के पीछे फिरूँगी। कृष्ण मेरा प्रिय है और उसे प्राप्त करने के लिए तेरे कहने से सारा स्वांग भर लूंगी, किन्तु कृष्ण की मुरली को, जो वे ओठों पर रख्खे रहते हैं, नीचे नहीं धरूंगी ।

विशेष-अधरान में यमक एवं ल, अ, ग और म की आवृत्ति के कारण छेकानुप्रास अलंकार है।

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