आई खेली होरी ब्रजगोरी वा किशोरी .. दरसाई गौ

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आई खेली होरी ब्रजगोरी वा किशोरी .. दरसाई गौ।

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#रसखान।
#भक्त कवि रसखान।
#मुसलमान कृष्ण भक्त कवि रसखान।
#रसखान के सवैया।
#रसखान रचनावली।
विद्यानिवास मिश्र।
आई खेलि होरी ब्रजगोरी वा किसोरी संग।
अंग अंग अंगनि अनंग सरकाइ गौ।
कुंकुम की मार वा पै रंगति उद्दार उड़े,
बुक्का  औ गुलाल लाल लाल बरसाइगौ।
छौड़े पिचकारिन वपारिन बिगोई छौड़ै,
तोड़ै हिय-हार धार रंग तरसाइ गौ।
रसिक सलोनो रिझवार रसखानि आजु,
फागुन मैं औगुन अनेक दरसाइ गौ।। 189/274
शब्दार्थ - अनग=कामदेव। तरसाइ गौ=ललचा गया। घमारिन =होली-गीत। सलोनो सुन्दर ।
अर्थ- कोई गोपी अपनी सखी से कृष्ण की होली का वर्णन करती हुई कहती है कि आज कृष्ण ने ब्रज की गोरियो और राधा के साथ ऐसी होली खेली कि उनके अंग-अंग को रग कर कामभावना उत्पन्न कर दी। कुंकुम की मार से और उसके ऊपर अनेक प्रकार के रंगां को डालकर लाल गुलाल की मुट्ठियाँ बिखेरकर वह कृष्ण सबको ललचा गया। उसने पिचकारियॉं छोड़ी, होली के गीत गाये तथा गोपियों के हृदय के हारां को तोड़कर वह रंग की धारा बरसा गया। रसखान कहते है कि वह रसिक और सुन्दर कृष्ण थाज फागुन मे होली खेलते समय अपने अनेक अवगुणों को प्रकट कर गया ।

अलंकार=अनंग में सभंग श्लेष एक अर्थ कामदेव एवं दूसरा अर्थ अंग प्रत्यंग। लाल में यमक एक अर्थ लाल रंग दूसरा अर्थ कृष्ण। अ, ल, ह और र की आवृत्ति के कारण छेकानुप्रास अलंकार है।

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