Sangat Ep.37 | Katyayani on Poetry, Marx, Hindi Sphere Politics, Feminism & Criticism | Anjum Sharma

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हिंदी साहित्य-संस्कृति-संसार के व्यक्तित्वों के वीडियो साक्षात्कार से जुड़ी सीरीज़ ‘संगत’ के 37वें एपिसोड में मिलिए सुपरिचित कवयित्री कात्यायनी से। कात्यायनी का जन्म 7 मई 1959 को गोरखपुर, उत्तर प्रदेश में हुआ। हिंदी साहित्य में उच्च शिक्षा के बाद वह विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं से संबंद्ध रहीं और वामपंथी सामाजिक-सांस्कृतिक मंचों से संलग्नता के साथ स्त्री-श्रमिक-वंचित से जुड़े प्रश्नों पर सक्रिय रही हैं। बकौल विष्णु खरे ‘समाज उनके सामने ईमान और कविता कुफ़्र है, लेकिन दोनों से कोई निजात नहीं है-बल्कि हिंदी कविता के ‘रेआलपोलिटीक’ से वह एक लगातार बहस चलाए रहती हैं।’ कात्यायनी की प्रतिबद्धता और प्रतिपक्ष उनके जीवन और उनकी कविताओं में अभिव्यक्त होता है। उनका स्वर प्रतिरोध का स्वर है। स्वयं उनके शब्दों में—‘‘...कवि को कभी-कभी लड़ना भी होता है, बंदूक़ भी उठानी पड़ती है और फ़ौरी तौर पर कविता के ख़िलाफ़ लगने वाले कुछ फ़ैसले भी लेने पड़ते हैं। ऐसे दौर आते रहे हैं और आगे भी आएँगे।’’ उनकी कविताओं का स्त्री-विमर्श जितना निजी है उतना ही सामूहिक। उनका विमर्श हिंदी के लिए मार्क्स और सिमोन के बीच का एक पुल लिए आता है, जिस पुल से उनका वर्ग-चेतस फिर पूरी पीड़ित आबादी को आवाज़ लगाता है। भाषा के स्तर पर उन्होंने कविता में संभ्रांत और अभिजात्य के दबदबे को चुनौती दे उसे लोकतांत्रिक बनाया है। ‘चेहरों पर आँच’, ‘सात भाइयों के बीच चंपा’, ‘इस पौरुषपूर्ण समय में’, ‘जादू नहीं कविता’, ‘राख अँधेरे की बारिश में’, ‘फ़ुटपाथ पर कुर्सी’ और ‘एक कुहरा पारभाषी’ उनके काव्य-संग्रह हैं। उनके निबंधों का संकलन ‘दुर्ग-द्वार पर दस्तक’, ‘कुछ जीवंत कुछ ज्वलंत’ और ‘षड्यंत्ररत मृतात्माओं के बीच’ पुस्तकों के रूप में प्रकाशित है। उनकी कविताओं के अनुवाद अँग्रेज़ी, रूसी और प्रमुख भारतीय भाषाओं में हुए हैं। कवयित्री, लेखक, एक्टिविस्ट और प्रकाशक के तौर पर काम करते हुए कात्यायनी ने कुछ समय के लिए 'नवभारत टाइम्स' और 'स्वतंत्र भारत' से जुड़कर पत्रकारिता भी की।
कभी प्रेम कविताएँ लिखने वाली कात्यायनी अब प्रेम कविताओं को क्यों ज़रूरी नहीं मानती? अपने पिता से उनकी क्या नाराज़गी रही? साहित्य से उनका लगाव कब शुरू हुआ? मार्क्सवाद की तरफ़ उनका रुझान कैसे हुआ? क्यों उन्हें अपने परिवार से बगावत करनी पड़ी? वह ख़ुद फेमिनिस्ट के बजाय कम्युनिस्ट कहलाना क्यों पसंद करती हैं? ऐसे तमाम सवालों के जवाब और कात्यायनी के निजी जीवन से लेकर उनके रचना-संसार को जानने-समझने के लिए देखिए संगत का यह एपिसोड।


संगत के अन्य एपिसोड्स देखने के लिए दिए गये लिंक पर जाएँ :    • संगत  

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