रामानंद सागर कृत श्री कृष्ण भाग 69 - कालयवन का वध | राजा मुचुकंद को श्री कृष्ण का वरदान

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Ramanand Sagar's Shree Krishna Episode 69 - Kalayavan Ka Vadh. Raja Muchukand Ko Shri Krishna Ka Vardaan

मलेच्छ देश का राजा कालयवन जरासंध का न्यौता पाकर मथुरा पर आक्रमण करने आता है। उसके और श्रीकृष्ण के बीच तय होता है कि वह दोनों अकेले युद्ध करेंगे। इससे दोनों ओर के सैनिक व्यर्थ में मारे जाने से बच जायेंगे। वचन के अनुसार श्रीकृष्ण मथुरा के प्रवेश द्वार से अकेले और निहत्थे बाहर आते हैं और कालयवन को द्वन्दयुद्ध की चुनौती देते हैं। इस पर कालयवन रथ से नीचे उतर आता है। श्रीकृष्ण अपनी दृष्टि कालयवन की विशाल सेना पर दौड़ाते हैं और कहते हैं कि यह मुकाबला अभी भी बराबरी का नहीं है। मेरे पीछे मेरा कोई सैनिक नहीं है जो मेरी सहायता को आये जबकि आपके पीछे असंख्य सैनिक हैं जो कभी भी आपकी सहायता के लिये आगे आ सकते हैं। इसलिये यदि आपको अपनी शक्ति पर विश्वास हो तो इस सेना को यहीं छोड़कर दूर किसी ऐसे निर्जन स्थल पर चलिये जहाँ कोई दूसरा न आपकी सहायता के लिये आ सके और मेरी। कालयवन श्रीकृष्ण की चुनौती स्वीकार कर लेता है। इसके बाद श्रीकृष्ण अपना अंगवस्त्र लहराते हुए कालयवन को दूर ले जाते हैं। उनका यूँ अंगवस्त्र लहराने का उद्देश्य यह था कि कालयवन इसे अच्छी तरह पहचान ले। नगर से काफी दूर एक निर्जन स्थल पर कालयवन श्रीकृष्ण को ललकारता है। किन्तु श्रीकृष्ण युद्ध करने की बजाय रण छोड़कर भागने लगते हैं। इसी घटना के कारण बाद में श्रीकृष्ण को ‘रणछोड़’ भी कहा गया है। कृष्ण उस पर्वत की ओर दौड़ते हैं जिसकी गुफा में राजा मुचुकन्द सोये पड़े हैं। कालयवन उनका पीछा करते हुए कहता है कि अगर मैंने तुम्हें पकड़ लिया तो तुम्हारे शरीर को चीरकर दो टुकड़े कर दूँगा। श्रीकृष्ण यह कहकर उसका क्रोध और भड़का देते हैं कि अभी तो तुम दौड़ में पीछे रहकर पहला मुकाबला हार रहे हो। भागते-भागते श्रीकृष्ण अचानक कालयवन की दृष्टि से ओझल हो जाते हैं। कालयवन को एक गुफा दिखायी पड़ती है। वह सोचता है कि मुझसे बचने के लिये कृष्ण इस अंधेरी गुफा में छिप गये हैं। वह गुफा के अन्दर जाता है। यह वही गुफा थी जहाँ देवराज इन्द्र से वरदान प्राप्त कर राजा मुचुकन्द कई वर्षों से गहरी निद्रा में लीन थे। श्रीकृष्ण अपना अंगवस्त्र उनके ऊपर डाल देते हैं और एक ओट में छिप जाते हैं। जब कालयवन वहाँ पहुँचता है तो उसे लगता है कि श्रीकृष्ण भागते भागते थक गये हैं और यहाँ ओढ़नी ओढ़ कर सो गये हैं। वह उन्हें पैर से ठोकर मारता है और उठकर युद्ध करने के लिये ललकारता है। उसकी ठोकरों से मुचुकन्द की निद्रा भंग होती है। उनकी दृष्टि सामने खड़े कालयवन पर पड़ती है और वह जलकर भस्म हो जाता है। मुचुकन्द को इन्द्र को वरदान प्राप्त था कि जो कोई उसे नींद से जगायेगा, वह उनकी दृष्टि पड़ते ही भस्म हो जायेगा। इसके बाद गुफा में एक अलौकिक उजाला होता है और श्रीकृष्ण प्रकट होते हैं। राजा मुचुकन्द श्रीकृष्ण को नमन कर उनका परिचय पूछते हैं। वह कहते हैं कि आपके तेज से मुझे आभास हो रहा है कि आप कोई देवता नहीं बल्कि ब्रह्मा, विष्णु अथवा शिव में से कोई एक हैं। तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि मेरे हजारों जन्म और नाम हैं। धरती के कणों की गिनती की जा सकती है किन्तु मेरे नामों की नहीं। किन्तु तुमने कई जन्मो तक मेरी पूजा की है तो मैं तुम्हें अपने इस जनम का परिचय देता हूँ। मैं ब्रह्मा जी के कहने पर इस बार कृष्ण के नाम से मथुरा में पैदा हुआ हूँ ताकि कालनेमि असुर जो इस जन्म में कंस के नाम से पैदा हुआ था, उसका वध कर सकूँ। श्रीकृष्ण राजा मुचुकन्द को कालयवन के बारे में भी बताते हैं और उनसे वरदान माँगने को कहते हैं। मुचुकन्द कहते हैं कि उन्होंने अपना राजसी जीवन भौतिक सुख उठाते हुए व्यतीत किया है और राजा रहते हुए उन्होंने जो दान पुण्य के कर्म किये, वह भी इस कामना से कि उनका अगला जन्म भी सुखमय बने। परन्तु आज आपने जो परम अनुग्रह की वर्षा की है, उससे मेरे मोह के बन्धन टूट गये हैं। अब मैं किसी सांसारिक वस्तु के प्रलोभन में नहीं पड़ना चाहता अतएव मुझे केवल अपनी अनन्य भक्ति का वर दीजिये। राजा मुचुकन्द के वचनों से प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण उन्हें अपने चतुर्भुज रूप के दर्शन देते हैं और उनसे बद्रिकावन में कन्धमादन पर्वत पर जाकर तपस्या करने को कहते हैं। श्रीकृष्ण उन्हें मोक्ष का मार्ग दिखाते हुए कहते हैं कि तुमने क्षत्रिय जीवन जीते हुए कई पशुओं का शिकार किया है तो अब तपस्या करते हुए उस पाप को धो डालो। इसके बाद चतुर्भुज रूपधारी श्रीकृष्ण अन्तर्ध्यान हो जाते हैं।

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