Katha 56 | Shri Guru Purnima Tak Is Katha Ko Jarur Sune Bahut Labh Hoga | SSDN | 15 July |

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Katha 56
15 July 2024

Shri Guru Purnima Special Katha

गुरुमुखों
गुरु की महिमा क्या है और गुरु की ताकत क्या है
इसके बारे में हमारे रहबर जी बड़े आसान और प्यारे शब्दों में हमे समझते है
गुरु की अहमियत इतनी ज्यादा है हमारे जीवन में
बता रहे हैं कि इससे बढ़कर कुछ है ही नहीं पूरी दुनिया में
और गुरु की अहमियत गुरु अर्जुन देव महाराज जी भी बताते है
कौन बता रहे है शृष्टि के मालिक
गुरु अर्जुन देव जी महाराज
ये बात कह रहे हैं के मैंने इस सृष्टि पर नजर मार के देख ली
सब सुखों पर नजर मार के देख ली
गुरु से मिलाप से बड़ा कोई सुख नहीं है नहीं
सबसे बड़ा सुख अगर कुछ है तो वह है गुरु से मिलना
गुरु के नाम में अभेद हो जाना
आगे समझाते हैं कि कैसे होता है ???
अभेद होते कैसे हैं गुरु के नाम में
ये मिलाप होगा कैसे ??
जिस पर गुरु प्रसन्न हो जाए
उसका मिलाप वो करा देता है परमात्मा से..
बिछड़ी हुई आत्मा को परमात्मा से मिलाना ही गुरु का काम है
और ये कहते हैं
यह जो नियम है जब से सृष्टि बनी है
जब से सृष्टि की सर्जना हुई है
उस निरंकार ने यह नियम कायम कर दिया है कि अगर मुझसे मिलना है तो गुरु को प्रसन्न करना पड़ेगा
साथ चाहिए परमात्मा का तो गुरु की प्रसन्नता लेनी पड़ेगी
पर गुरु की प्रसन्नता मिले कैसे ?
इसके बारे में भी आगे बताते है
हमारे रहबर जी कहते है
मैं अपने गुरु से हाथ जोड़कर मांगता हूं कि
मुझे नाम की दात बख
और व भी ऐसी एक सेकंड के लिए भी मैं उसे ना भूलू
सिमरन चलता रहे , नाम जाप चलता रहे
चाहे बातें कर रहे हो चाहे सो रहे हो खा पी रहे हो चल रहे हो

उठत बैठते सोवत जागत ये मन तुझे ही पुकारे
यह अवस्था मांगी है

क्यों मांगी है क्योंकि गुरु की प्रसन्नता लेने का यही एक तरीका है

और यह तरीका क्यों है
क्योंकि यह तरीका बताया भी गुरु ने ही है
कि गुरु को प्रसन्न करना है तो गुरु का हुकम मान लो और गुरु का हुकम क्या है
एक नाम जाप ही हुकम है

गुरु को प्रसन्न करना है नाम जपो
उसका हुकम मानो और उसका हुकम है –नाम
सबसे जो प्रमुख हुकम है नाम नाम
143 अंग श्री गुरु ग्रंथ साब जी के ..
वाणी के स्मृतियां..
वेद शास्त्र जितने भी धार्मिक ग्रंथ है
एक ही चीज पुकार पुकार के कहते हैं
सिमरत वेद पुराण पुकार पोथया
पुकार रहे हैं क्या नाम बिना सब कुढ़ ..

चाहे कुछ भी कर ले बिना नाम के गुरु की प्रसन्नता नहीं मिलेगी और बिना गुरु की प्रसन्नता के तो गुर प्रसाद नहीं प्राप्त कर पाएगा

भाग सच्चा सोय है जिस हर धन अंतर
जिसके हृदय में नाम चल पड़े उससे बड़ा भाग्यशाली संसार में कोई नहीं है
क्यों नाम चलता है हृदय के अंदर
यह संकेत है कि गुरु प्रसाद वर्त गया है
हृदय में नाम चल गया
अब मिलाप होने की देरी है

माया के बंधनों से मोह के बंधनों से केवल वह छूटेगा जिसके हृदय में शब्द निरंतर चलेगा निरंतर बिना अंतर के कोई गैप
नहीं
एक विचार आता है दूसरा जाता है
जिसे विचारों की जंजीर कहते हैं सारी की सारी
जंजीर केवल गुरु की तरफ जा रही हो
नाम की जंजीर हो
स्वास स्वास में नाम बस जाए धड़कन में नाम बस जाए
जिसे हृदय जाप कहते हैं हृदय में नाम जप
जाए
स्वास स्वास सिमर रोम रोम की बंदगी..

केवल वही इस जंजाल से छूट पाएगा
जिसके हृदय में शब्द चलेगा
वो भी निरंतर बिना किसी अंतर के


अब बात आती है कि गुरु कौन है ? क्या करते है ? क्या कर सकते है ? गुरु की ताकत क्या है ?
इसे सरल अर्थों में समझते है
गुरु बाणी का रूप है
और बाणी गुरु रूप है
बाणी जो कहती है वह हमारे लिए हुकम है
जो वाणी के हुकम के अनुसार चलेगा पार हो जाएगा
कहने का भाव यह है
अगर गुरु की वाणी के अर्थों को समझना हो या सारे जीवन का सार समझना हो तो वह है हुकम

गुर प्रसाद को पाना है हुकम को बूझना पड़ेगा

जिसने अपने मन को समर्पित कर दिया उसके हुकम के अनुसार अपने मन की नहीं चलाई
उस गुरु की सुनी उस पर गुर प्रसाद वर्त देता है
दूसरे किसी पर नहीं ..

गुरु की प्रसन्नता को पाने का तरीका क्या है ..

कई तरीके हैं गुरुमुखों
कई पहलू है गुरु प्रसन्नता पाने के
उनमें से सबसे विशेष पहलू है यह हुकम


हुकम मानना सबसे विशेष पहलू है अगर प्रभु को पाना
है तो
हुकम मानो गुरु का
हमारे रहबर जी कहते है हुकम प्रेम से भी ऊपर है




कहते है हुकम से ऊपर प्रेम नहीं है
कैसे वह समझाते है
कहते है प्रेम में ना आदमी कभी-कभी अवेश हो जाता है अवेला कहते हैं आलसी हो जाता है
प्रेम में आदमी का मन करता है कि जो उसका मन करे वह करे व सही भी है प्रेम में सब परवान है पर हुकम में ये आलस की जगह भी नहीं है
अब यह बात कोई आम इंसान कहे तो जरा विचार
करें शायद गलत हो पर हमारे रहबर जी समझाते है
कितनी बड़ी बात है ये के उने के प्रेम से ऊपर हुकम है

कहते है गुरु का हुकम हो गया वो करना है प्रेम से ऊपर है अब जैसे भाई लैना जी ने गुरु नानक पादशाह का वह हुकम भी
माना जो दिमाग में फिट ही नहीं बैठता
आधी रात को कहते हैं सूरज निकल आया जाके
कपड़े सुखा के आ
भाई लहना जी ने यह नहीं
कहा पादशाह अभी तो रात है सूरज कहां निकला है वो चले गए कपड़े सुखाने जब वापस आए
गुरु नानक पाशा कहने लगे तूने कहा क्यों
नहीं के रात है
कहने लगा पादशाह आप कह रहे हो
कि सूरज निकल आया है
तो निकला ही होगा
मुझे नहीं दिखाई दे रहा
मेरी तुछ बुद्धि है

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