Katha 62 | Bhagwan Se Bat Kaise Kare | Shri Guru Maharaj Ji Hamari Bat sunte hai ? | SSDN |

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Katha 62
04 September 2024


गुरुमुखों सभी वेदों ने भी .. सभी शास्त्रों ने भी और सभी संतों ने अपनी वाणी में महापुरुषों की महिमा का
गायन किया है वर्णन करते हैं कि समय के पूर्ण
महापुरुष उस परमपिता परमात्मा का रूप होते हैं और
जो जो भी महापुरुष वचन फरमाते हैं जो भी रचना करते हैं लीलाएं करते हैं
वह सारी की सारी दुर दरगाही होती हैं
यह महापुरुषों की अपने सेवकों पर कितनी कृपा होती है कि अपने सेवकों की भलाई के लिए उनके हित के लिए ऐसे आलीशान दरबार की रचना करते हैं महापुरुष तो कृपा कर रहे
हैं ..हम अपने अंदर यह हृदय के अंदर विचार करें कि हम दरबार के गुरुमुख तो कहलाए क्या हम वास्तव में गुरुमुख बने
भी??
गुरुमुख बनना मतलब महापुरुषों के वचनों
को अपने हृदय में धारण करना
वही गुरुमुख बनने की असली परिभाषा है
महापुरुष वर्णन करते हैं जो भी सेवक जन
उनके वचनों की पालना करते हैं उनको किसी
प्रकार का दुख ..किसी प्रकार का क्लेश नहीं व्यापता
ये गुरमुख का असली फर्ज बन जाता है
कि महापुरुषों के वचनों को सच सच मान करके
उन्हें अपने हृदय में धारण करें
हर गुरुमुख की यही तमन्ना होती है कि
महापुरुष हमारे हृदय के अंदर विराजमान हो जाए
रोजाना हम देखते हैं श्री चरणों में
कितनी विंतिया होती हैं
कई गुरुमुख प्रेमी विनती करते हैं स्वामी जी हमारी बाजू मत
छोड़ना
कोई कहते हैं जैसे अभी साक्षात दर्शन हो रहे हैं ऐसे हृदय के अंदर भी दर्शन हो जाए और भी कई प्रकार की विंतियां होती हैं लेकिन सतगुरु दाता दयाल महाराज जी सिर्फ एक ही वचन फरमाते हैं कि दरबार के पांचों नियमों की श्रद्धा से पालना करो
और दो घंटे भजन करो आपको घट के अंदर भी
ऐसे ही दर्शन हो जाएंगे
जब महापुरुषों ने यह वचन फरमाए तो क्या हमने उनके वचनों की पालना की??
मन के धोखे में आकर के गफलत में
आकर के उन वचनों को भूल जाते हैं
फिर महापुरुषों का दर्शन हृदय के अंदर हो
ऐसी भी तमन्ना होती है
संतों ने अपनी वाणी
में वर्णन किया है
सतगुरु को जो मिलना चाहे.. कर चरणों से प्यार ...
छोड़कर तू मन मती को... गुरु मूरत हृदय धार...
मन रमा करर प्रभु ध्यान में पीले
प्रेम का जाम ...
बन जाएंगे मीत सखा तेरे सुख राशि सुख धाम..
हे जिज्ञासु अगर तू चाहता है कि महापुरुषों का ध्यान हृदय में बस जाए तो उनके चरणों से अपनी प्रीति को बढ़ा
जो महापुरुषों ने वचन फरमाए हैं अगर उनकी श्रद्धा से रोजाना पालना होती है
तो श्री चरणों से जिज्ञासु की प्रीति बढ़ती ही चली जाती है साथ में वर्णन किया मन के कहने पर आकर के
जो कर्म करते हो.. उनको छोड़ कर के गुरु मति
को अपने हृदय में धारण करो ..
जब ऐसा करोगे तो अपने आप को महापुरुषों के चरणों से
जोड़ते हुए पाओगे और जो हमारा दिल होता है
हमारे हृदय के अंदर तमन्ना होती है कि
महापुरुष हमारे हितेश बन जाए तो वह हमेशा
हमेशा के लिए हमारे हितकारी बन जाएंगे..
जैसे अभी साक्षात हमें सामने दर्शन हो रहे
हैं
जब महापुरुषों के वचनों की हृदय से पालना करते हैं तो महापुरुष ऐसे ही साक्षात 2400 घंटे हमारे अंग संग रहते हैं
जो गुरुमुख प्रेमी इस चीज का अनुभव कर चुके हैं वही बतलाते हैं दरबार के नियम निभाने से
महापुरुषों की उनको कितनी कृपा प्राप्त हुई है

तो गुरुमुखों हमारा यह परम कर्तव्य बन जाता है महापुरुषों की कृपा को
हृदय में धारण करके दरबार के नियमों की श्रद्धा से पालना करते हुए महापुरुषों के
आशीर्वाद को प्राप्त करके अपना लोक परलोक सुहेला कर ले
बोलो जय कारा बोल मेरे श्री गुरु महाराज की जय

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