Katha 33 | Garibi Dur Karne Wala Shabad | 28 April | SSDN | Satsang |

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Katha 33

28 April 2024

गुरुमुखों
एक बार एक गुरुमुख ने महापुरुषों से सवाल किया
के घर में गरीबी है और यह सवाल अनगिनत लोगों का होता है
घर में गरीबी है तकलीफ है बहुत
और आगे पूछते हैं कि कोई शब्द बताओ
की गरीबी दूर हो जाए
और तीसरा सवाल यहां पर यह है कहते हैं
यह भी बता देना दयालु की शबद कितने दिन पढ़ना है
फिर से सुनिए सवाल
के घर में गरीबी है
बहुत तकलीफ है
कोई शब्द बताइए जिसका जाप करने से गरीबी दूर हो जाए
और वह कितने दिन पढ़ना है वह भी बताइए
देखा जाए तो यह सारा सवाल ही गलत है गुरुमुखhon
इस बात को समझने के लिए
इस घटना को समझना पड़ेगा
ज्यादातर हमें अपनी गलती दिखाई नहीं देती
हर बार ज्यादातर हर किसी को अपनी गलती दिखाई नहीं देती
दूसरे की पीठ दिखाई देती है अपनी peeth दिखाई नहीं देती
आज जो दास घटना सुनाने जा रहा है यह एक ऐतिहासिक घटना है और इसको सुनने के बाद कईयों को बहुत सारे रास्ते मिलेंगे
तो दास की विनती है बड़े ध्यान से
इस बात को सुनना और समझना की कोशिश करना
के हम कहां पर गलत है इस सवाल में
गरीबी दूर करनी है जरूरी है मानते हैं
और उसका तरीका क्या होना चाहिए
बड़े ध्यान से सुनना आज
सन 18 सो 99 की घटना है या
एक महापुरुष हुए हैं कमाई वाले जिनका नाम आया है संत संगत सिंह जी कव्वाली वाले
शायद बहुत लोगों ने इसका नाम सुना भी होगा क्योंकि बहुत कमाई वाले महापुरुष हुए हैं यह
संत संगत सिंह जी कव्वाली वाले
एक गुरुद्वारे में यह प्रवचन करने गए
संगत इकट्ठी हो गई
प्रवचन करके जब बाहर निकलते हैं
तो एक आदमी सामने आकर खड़ा हो गया
हाथ जोड़कर आंखों में आंसू hai
और हाथ जोड़कर क्या कहता है महापुरुषों
हिंदी में बात करता है क्योंकि वह मुसलमान हैं
उसका नाम आया है इतिहास में अब्दुल करीम
संत शंकर सिंह जी कव्वाली वालों से हाथ जोड़कर कहता है
आंखों में आंसू है दुखी है
की है अल्लाह के बंदे
मेरी मदद कर
बहुत समय से मन तपस से भरा हुआ है
दुखी है परेशान है
आज आप के प्रवचन सुने
आपने जो कथा की संगत में
सुनकर मन को शांति मिली
आप अल्लाह के बंदे हो
मुझ पर तरस करो
संत असंग सिंह जी कव्वाली वालों ने सवाल किया भाई क्या तकलीफ है तुझे तो वह
अब्दुल करीम कहता है दर-दर भटक रहा हूं कई महीनों से
और कुछ दिनों से तो कुछ खाया भी नहीं था
घरवाली साथ में है
भीख मांग रहे हैं
इस गुरुद्वारे में मदद मिली है खाने को
मिला है रहने के लिए तीन-चार दिनों के लिए कमरा मिला है


और तीन-चार दिन के बाद यह भी खाली करवा लेंगे वो
ना मेरे पास एक टक्का है
ना मेरे पास पैसे है ना मेरे पास राशन है
ना मेरे पास रहने की जगह है
क्या मेरी किस्मत में भीख मांगना ही लिखा है
मैं भीख मांगना नहीं चाहता
मैं मांग कर नहीं खाना चाहता मैं मेहनत करके खाना चाहता हूं
काम मांगने जाता हूं काम नहीं मिलता
दर-दर भटक bhatak के थक गया हूं कोई काम नहीं देता
और आखिर में अब्दुल करीम कहता है हे अल्लाह के बंदे मुझे कोई कलाम दे दे
जिसे मैं पढूं और मेरे सारे काम बन जाए और मेरी गरीबी दूर हो जाए
वही सवाल जो किया है यहां पर कि गरीबी दूर हो जाए
यहां पर संत संगत सिंह जी कव्वाली वालों ने अब्दुलकरीम से कहा
मुझे तेरी बात बहुत अच्छी लगी तू भीख नहीं मांगना चाहता
इज्जत की खाना चाहता है और अगर सचमुच तू हक की खाना चाहता है
तो अपने सेवादार से इशारा किया कागज लाओ और कलम मंगाई
और एक कलाम लिख कर दिया एक पंक्ति लिख कर दी
उन्होंने उस अब्दुल करीम को
और कहने लगे इसे पढ़ते रहना दिन-रात छोड़ना मत
गुरु भली करेगा
तेरा अल्लाह बलि करेगा
यहां पर उन महापुरुषों ने अब्दुल करीम से एक बात कही थी
तू हक की खाना चाहता है मांग कर नहीं खाना चाहता तेरी सोच नेक है इसलिए तुझे यह कलाम लिख कर दे रहे हैं
दिन-रात पढ़ना
छोड़ना मत और यह कलाम देकर वह चले गए
अब्दुल करीम उस कलाम को दिन-रात पढ़ने लगा दिन और रात एक कर दिया उसने छोड़ा नहीं

2 दिन बीते 3 दिन बीते 4 दिन बीते
वह पंक्तियां पढ़ते जा रहा है जो संत संगत सिंह जी कव्वाली वालों ने उसको लिख कर दिया
चौथा दिन बीत गया और अब फिकर में बैठा है पढ़ भी रहा है
और फ़िक्र भी है कि आज गुरुद्वारे वाले कहेंगे कि कमरा खाली करो
कहां जाऊंगा
तो वहां पर इतिहास में लिखा है कि एक सूबेदार आया
फौजी सूबेदार
रोज गुरुद्वारे में माथा टेकने आता था उसने
यह बैठा हुआ होता है यहां पर 4 दिनों से
फौजी सूबेदार ने उसे अपने पास बुलाया कहने लगे
4 दिनों से तुम्हें बैठे देख रहा हूं यहां पर बैठे हुए हो
कौन हो तुम कहां से आए हो
तो इसने अपनी सारी हालत बयां की
तो फौजी सूबेदार कहने लगा मेरे पास काम करोगे
कहने लगा मेरे पास बहुत सारी जमीनें है
बहुत सारी जमीनें है बहुत सारे बस दूर वहां पर काम करते हैं
मुझे वहां पर एक कामा चाहिए कामा कहते हैं
A type of manager
जो मजदूरों के ऊपर नजर रखें उन से काम ले
पुराने जमाने में उसे कामा कहा जाता था
जो काम करने वालों के ऊपर ध्यान रखें
तो यह फौजी सूबेदार कहता है कि मेरे पास काम करो मैं तुम्हें रहने के लिए
घर बी दूंगा और ₹60 तनख्वाह बी दूंगा
तो मेरे पास काम करोगे
यह सुनकर अब्दुल करीम की आंखों में आंसू आ गए
समझ गया
की ये जो कलाम मुझे दी थी

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