रामानंद सागर कृत श्री कृष्ण भाग 40 - कंस का वध, कृष्ण का वसुदेव और देवकी से मिलन

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   • बजरंग बाण | पाठ करै बजरंग बाण की हनुम...  
बजरंग बाण | पाठ करै बजरंग बाण की हनुमत रक्षा करै प्राण की | जय श्री हनुमान | तिलक प्रस्तुति 🙏 भक्त को भगवान से और जिज्ञासु को ज्ञान से जोड़ने वाला एक अनोखा अनुभव। तिलक प्रस्तुत करते हैं दिव्य भूमि भारत के प्रसिद्ध धार्मिक स्थानों के अलौकिक दर्शन। दिव्य स्थलों की तीर्थ यात्रा और संपूर्ण भागवत दर्शन का आनंद।

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Ramanand Sagar's Shree Krishna Episode 40 - Kansa slaughter | Krishna meets Vasudev and Devaki

श्रीकृष्ण और बलराम कंस के चारों पहलवानों को मल्लयुद्ध में परास्त कर मौत के घाट उतार देते हैं। अब श्रीकृष्ण क्रोधित नेत्रों से कंस को देखते हैं। भयभीत कंस अपने सैनिकों से कृष्ण को मार डालने का आदेश देता है। कृष्ण की रक्षा के लिये अक्रूर और उसके सैनिक तैयार हैं और गोकुलवासी भी। वे सभी हर हर महादेव का युद्धघोष करते हुए मैदान में कूद पड़ते हैं। दोनों तरफ से तलवारें चलने लगती हैं। श्रीकृष्ण छलाँग लगाकर कंस के सिंहासन तक पहुँच जाते हैं। कंस अपनी खड्ग लहराते हुए कृष्ण का मुकाबला करने को तैयार है। कृष्ण कंस से कहते हैं कि तेरे सामने अन्तिम अवसर है। तुम अपनी खड्ग फेंककर मेरी शरण में आजा तो मैं तुझे क्षमा कर दूँगा। कंस कहता है कि मैं मरने को तैयार हूँ लेकिन झुकने को नहीं। इस लड़ाई में कंस कृष्ण के हाथों, चाणुर बलराम के हाथों और कंस का सेनापति अक्रूर के हाथों मारे जाते हैं। प्राण निकलने से पहले कंस को कृष्ण में चतुर्भुज नारायण के दर्शन होते हैं। जिस कार्य के लिये नारायण ने कृष्णावतार लिया था, वह सम्पन्न होता है। भगवान के हाथों मारे जाने के कारण कंस की आत्मा को मुक्ति प्राप्त होती है। कंस वध के उपरान्त कृष्ण व बलराम अपने माता पिता को स्वतन्त्र कराने के लिये कारागार जाते हैं। वहाँ उन्हें बेड़ियों में जकड़ा पाकर दुखी होते हैं। दोनों बालक माता पिता के चरणों में गिरकर साक्षात दण्डवत करते हैं। कृष्ण माता देवकी से कहते हैं कि हर माता का यह अधिकार होता है कि वह अपने पुत्र की बाल्यावस्था से किशोरावस्था तक उसकी बाल लीलाओं का आनन्द ले किन्तु अपनी विवशता के कारण मैं देवकी माता को यह सुख नहीं दे सका। वह यह भी कहते हैं कि इस विवशता ने मुझे भी माता की ममतामयी छाया से दूर रखा। वसुदेव इसके लिये स्वयं को दोषी बताते हैं और कहते हैं कि मुझे अपने ही हाथों से अपने पुत्र को उसकी माता से दूर करना पड़ा था। कृष्ण कहते हैं कि जो मनुष्य सामर्थ्यवान होकर भी अपने माता पिता की सेवा नहीं करता, वह महापापी है और उसके मरने पर यमदूत उसे उसका ही माँस खिलाते हैं। कृष्ण इतने वर्षों तक माता देवकी और पिता वसुदेव की सेवा न कर पाने के लिये क्षमा माँगते हैं। तभी अक्रूर और नन्दराय भी वहाँ पहुँचते हैं। नन्दराय अपने दोनों बालक देवकी और वसुदेव के सुपुर्द करते हैं और कहते हैं कि यशोदा ने कहलाया है कि यदि कृष्ण के लालन पालन में उससे कोई कमी रह गयी हो तो उसे कृष्ण की धाय समझ कर क्षमा कर दें। देवकी भावुक होती हैं और घोषणा करती हैं कि आने वाले युगों-युगों तक लोग यशोदा को ही कृष्ण की माँ कहेंगे। वो ही मेरे कृष्ण की असली माँ हैं और सदा रहेंगी। कृष्ण काल कोठरी में कैद अपने नाना उग्रसेन को भी मुक्त कराने जाते हैं। कृष्ण उन्हें प्रणाम कर अपना परिचय देवकी नन्दन के रूप में देते हैं। उग्रसेन को विश्वास नहीं होता। वह कहते हैं कि देवकी की सभी सन्तानों को कंस पहले ही मार चुका है। उसी समय अक्रूर वहाँ आते हैं और उग्रसेन को बताते हैं कि देवकी के जिस आठवीं सन्तान के हाथों कंस के मारे जाने की आकाशवाणी हुई थी, कृष्ण वही आठवीं सन्तान हैं। कंस इन्हें नहीं मार सका था और आज स्वयं कृष्ण के हाथों मारा जा चुका है। उग्रसेन अपना आपा खो देते हैं और कहते हैं कि मैंने कंस जैसे महापापी पुत्र को पैदा किया था, मैं तो उसे अपने हाथों से मारना चाहता था। कृष्ण नाना उग्रसेन की भावनाओं को समझ कर सम्बल देते हैं और कहते हैं कि आपसे मिले मनोबल के कारण ही मैं कंस को मार सका अन्यथा मेरे कोमल हाथों में इतनी शक्ति कहाँ थी। उग्रसेन कहते हैं कि कंस को मारने के बाद मथुरा के राजसिंहासन पर अब कृष्ण का अधिकार है। किन्तु श्रीकृष्ण विनयपूर्वक इसे अस्वीकार कर देते हैं और कहते हैं कि मथुरा के राजा उग्रसेन थे और सदैव रहेंगे। मन्त्रोच्चार के बीच महाराज उग्रसेन पुनः सिंहासनारूढ़ होते हैं।

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