श्रीमद्भगवद्गीता | अध्याय 3 श्लोक 42 | जैसे हम वैसी हमारी दुनिया | आचर्य प्रशांत |

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इन्द्रियाणि पराण्याहुरिन्द्रियेभ्यः परं मनः ।
मनसस्तु परा बुद्धिर्यो बुद्धेः परतस्तु सः।।


"हीन ही हैं मांस हड्डी
आंख तुम्हारी खुली रहे
चले सदा सच के पीछे
बुद्धि प्रेम में झुकी रहे"


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जिस कर्मकांड और धारणों को सनातन धर्म मान बैठे हैं वो है ही नही, वास्तविक सनातन धर्म तो गीता उपनिषद..है

आचार्य प्रशान्त के द्वारा जो हम सबों को शिक्षा / दीक्षा दी जाती है उसको मैं यह पे शेयर करता है।

अगर आप सबों को भी आचार्य प्रशान्त से जीवन जीने के बहुमूल्य उपयोगी दर्शन , श्री मद्भागवत गीता, अष्टवक्र गीता, उपनिषद सीखना है तो उनके गीता समागम सत्र से जुड़े, जीवन में आप अलग आनंद महसूस कीजिएगा।

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